महाराष्ट्र: महाविकास आघाड़ी गठबंधन में असंतोष के ये तीन कारण… कहीं सरकार अस्थिर न कर दें!

महाविकास आघाड़ी सरकार के घटक दलों में सबकुछ अच्छा चल रहा है, इसको लेकर शंकाएं उत्पन्न होती रहती हैं। कोविड-19 लॉकडाउन के बीच सत्ता चलती रही है, जो अब मिशन बिगिन अगेन में डावांडोल हो जाए तो आश्चर्यजनक नहीं होगा।

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महाराष्ट्र में सरकार के तीन घटक दलों में असंतोष पनप रहा है क्या? इसका उत्तर अब नासिक का संग्राम दे रहा है, जो न्यायालय तक पहुंच गया है। इसके साथ ही शिवसेना मुखपत्र के माध्यम से कांग्रेस को बीमार बताया जाना और ईडी के निशाने पर शिवसेना नेताओं के आने से असंतोष भी पनपा है।

नासिक बना विवाद की नव्ज
नासिक में शिवसेना के विधायक और एनसीपी कोटे से मंत्री छगन भुजबल के बीच संग्राम छिड़ा हुआ है। नांदगाव में छगन भुजबल के पुत्र पंकज भुजबल को हरानेवाले शिवसेना विधायक सुहास कांदे एनसीपी को स्वीकार नहीं हैं। छगन भुजबल से उनकी अनबन लंबे समय से चल रही है। इसकी झलक देखने को मिली उस समय जब नासिक जिले के पालक मंत्री छगन भुजबल बाढ़ से हुई क्षति का मुआयना करने आए। इस दौरे में उनकी बैठक में सुहास कांदे भी थे, जहां बाढ़ग्रस्तों को तत्काल सहायता देने के मुद्दे पर भुजबल और कांदे में बहसबाजी हो गई। इसके बाद विकास निधि को लेकर कांदे ने भुजबल पर निधि ठेकेदारों को बेचने का आरोप लगाया और इस पर याचिका लेकर उच्च न्यायालय पहुंच गए। छगन भुजबल अब भले ही कह रहे हों कि दोनों नेताओं के बीच सबकुछ ठीक है परंतु, शिवसेना और एनसीपी के बीच विकास निधि की तकरार नई नहीं है, जो अब न्यायालय के दर तक पहुंच चुकी है, हो सकता है ये आनेवाले दिनों में दबा भी दी जाए, परंतु महाविकास आघाड़ी के लिए नासिक, विवाद की नव्ज साबित हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।

मुखपत्र की सीख पड़ सकती है भारी
शिवसेना जो नहीं बोल पाती वो उसका मुखपत्र बोलता है। ऐसा आरोप सर्वविदित है। पिछली सरकार तक शिवसेना का मुखपत्र जैसा लेखन भाजपा शिवसेना के बीच कर रहा था, अब महाविकास आघाड़ी में भी उसी मार्ग पर स्थिति पहुंच गई है। राहुल गांधी के बगल में बैठकर कान लगाकर बातें सुनते कार्यकारी संपादक संजय राऊत ने संपादकीय में अब कांग्रेस को बीमार बताया है। यह पहली बार नहीं है, जब सामना के माध्यम से कांग्रेस को आईना दिखाने का प्रयत्न हुआ हो, परंतु ‘सत्ता में भागीदार और पीछे से बुराई जारी’ वाला स्वभाव सब सह लें ऐसा भी नहीं है। इससे हासिल क्या होगा यह तो नहीं कह सकते परंतु, गठबंधन में इससे असंतोष पनप रहा है इसकी आशा अधिक है।

ईडी के निशाने पर शिवसेना नेता
प्रवर्तन निदेशालय की जांच के दायरे में महाराष्ट्र के जितने नेता इस समय हैं, उनमें सबसे अधिक संख्या शिवसेना नेताओं की है। कल तक जिस सरनाईक के लड़ाका प्रताप से मीरा-भायंदर के बड़े-बड़े भाजपा नेता पीछे हट जाते थे (नरेंद्र मेहता से विवाद का वीडियो भी कर चुके हैं जारी), वे सरनाईक अब शांत हैं। उन्होंने पत्र लिख दिया कि भाजपा से युति कर ली जाए। सरनाईक के बाद भी जांच के दायरे में आनेवालों का क्रम टूटा नहीं है, इसके बाद कैबिनेट मंत्री अनिल परब, सांसद भावना गवली जैसे नेता भी जांच की आंच सह रहे हैं। इसके पहले शिवसेना सचिव मिलिंद नार्वेकर के अवैध बंगले पर बवाल हो चुका है। स्वयं पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनकी पत्नी रश्मी ठाकरे फार्म हाउस की भूमि और बंगले की खरीदी के प्रकरण में भाजपा नेता किरिट सोमैया के सवालों के निशाने पर हैं। इस बीच मुख्यमंत्री के सरकारी निवास के सामने से भावना गवली का खाली हाथ लौटना शिवसेना नेताओं की भावनाओं को ग्लानि तक पहुंचा सकता है, जो मनोबल को कमजोर कर सकता है।

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