वर्तमान में महाराष्ट्र में राजनैतिक संकट जारी है। शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस को मिलाकर बनी महाविकास आघाड़ी सरकार का भविष्य अधर में है। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के असंतुष्ट विधायक एमवीए सरकार के लिए परेशानी का कारण बने हुए हैं। इसके साथ ही वे शिवसेना के अस्तित्व के लिए भी खतरा पैदा कर रहे हैं। फिलहाल पिछले कुछ वर्षों में मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी इस तरह का पॉलिटिकल ड्रामा देखा जा चुका है।
मध्य प्रदेश में वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हैं। 20 मार्च 2020 से पहले तक इस प्रदेश में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी और कमलनाथ सरकार के नाथ यानी मुख्यमंत्री हुआ करते थे। अल्पमत में आने के बाद 20 मार्च 2020 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। 15 साल बाद राज्य में सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार 15 महीनों में ही चारों खाने चित हो गई थी।
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सरकार गिरने के लिए कौन जिम्मेदार?
दरअस्ल कमलनाथ सरकार के गिरने के लिए भाजपा या किसी और को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है। राजनीति में हर पार्टी मौके की तलाश में रहती है। भाजपा इससे अलग नहीं है। कांग्रेस की अंतर्कलह ने भाजपा को मौका दिया और धुरंधरों ने चौका लगाकर कांग्रेस के राजनीति के खिलाड़ियों को आउट कर दिया।
वर्चस्व की लड़ाई में गई कमलाथ हो गए अनाथ
प्रदेश में कांग्रेस सरकार के गिरने के पीछे के कई कारण हो सकते हैं लेकिन मुख्य रूप से कमलनाथ और माधव राव सिंधिया के बीच जारी खींचतान ही इसका मुख्य कारण माना जाता है। अधिकांश मुद्दों पर दोनों की असहमति के कारण सरकार डगमगाने लगी थी और एक दिन वह ध्वस्त हो गई।
यहां से शुरू हुआ टकराव
दरअस्ल टीकमगढ़ की एक सभा में शिक्षकों की कुछ मांगों को मानने की बात कही थी। उनके इस वादे पर मीडिया ने सवाल पूछा था कि अगर सरकार उनकी मांगों को नहीं मानेगी तो वे क्या करेंगे। इस पर सिंधिया ने कहा था कि इस स्थिति में वे सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे। सिंधिया ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बयान देकर विवाद पैदा कर दिया था।
बात बढ़ी और कमलनाथ से पूछा गया कि ज्योतिरादित्य ने सिंधिया सड़क पर उतरने की घोषणा की है, इसके जवाब में कमलनाथ ने कहा कि तो उतर जाएं। इसके बाद ही पार्टी में विवाद बढ़ता चला गया।
11 विधायक अचानक हो गए लापता
11 विधायकों के लापता होने की खबर काफी सुर्खियों में रही। बताया गया कि वे मानेसर और बेंगलुरू के होटल में ठहरे हुए हैं। इसके बाद प्रदेश मे शुरू हुआ पॉलिटिकल ड्रामा इतना बढ़ गया कि कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गईऔर कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने पर बेबस होना पड़ा।
महत्वपूर्ण घटनाक्रम
-6 मार्च 2020 को 11 में से 6 विधायक सामने आए और कमलनाथ को अपना समर्थन जताया। इनमें हरदीप सिंह डंग, रघुराज सिंह कंसाना, बिसाहूलाल सिंह और निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा शामिल थे।
-7 मार्च को सिंधिया समर्थक विधायक महेंद्र सिंह सिसोसदियया ने कहा कि अगर कमलनाथ सरकार ने सिंधिया की उपेक्षा की तो यह संकट में आ जाएगी।
-8 मार्च को लापता विधायक बिसाहूलाल सिंह लौट आए, लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि जब तक उन्हें मंत्री नहीं बनाया जाता , तब तक उनकी नाराजगी दूर नहीं होगी।
-9 मार्च से असली ड्रामा शुरू हुआ। सिंधिया समर्थक 19 विधायक गाब हो गए। इनमें 6 मंत्री भी थे।
-10 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया दिल्ली में अपने आवास से सीधे अमित शाह से मिलने पहुंचे और इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की। इस मुलाकात के कुछ देर बाद सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।
-11 मार्च को वे भाजपा में शामिल हो गए। इसी दिन शाम में कंग्रेस के विधायक दल की बैठक हुई, जिसमें केवल 93 विधायक ही पहुंचे। इससे साफ हो गया कि कमलनाथ सरकार खतरे में है।
-16 मार्च को फ्लोर टेस्ट होना था लेकिन राज्यपाल के अभिभाषण के बाद विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने कोरोना का कारण बताकर सदन को स्थगित कर दिया।
-17 मार्च को मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गया।
-19 मार्च को न्यायालय ने फ्लोर टेस्ट कराने का निर्णय सुनाया।
-20 मार्च को कमलनाथ सरकार को फ्लोर टेस्ट से गुजरना था, लेकिन उससे पहले ही कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। राजभवन जाकर उन्होंने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
-23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।