राज्य विधान सभा का बजट सत्र चल रहा है। इस बीच राज्य में कानून व्यवस्था और आत्महत्याओं को लेकर बड़ा बवाल मचा हुआ है। सड़क पर पहले से मचा हंगामा अब संसद की कार्यवाही में शोर मचा रहा है। विपक्ष, मुकेश अंबानी के घर के पास बरामद जिलेटन लदी कार और उसके बाद कार मालिक की मौत पर कार्रवाई की मांग कर रहा है। विपक्ष की इस मांग पर मचे हंगामे को शांत करने के लिए मंगलवार सुबह विधान सभा में सर्वदलीय बैठक हुई। लेकिन वहां भी समझौते की बात बनते-बनते बिगड़ गई।
इस बैठक में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, उपमुख्यमंत्री अजीत पवार, मंत्री अनिल परब, गृह मंत्री अनिल देशमुख, नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस उपस्थित थे। बात शुरू हुई कि सदन की कार्यवाही को कैसे आगे बढ़ाया जाए। विपक्ष ने मांग रखी की कार के मालिक की मौत के मामले में पुलिस अधिकारी सचिन वाझे को निलंबित किया जाए। सूत्रों के अनुसार इस पर अजीत पवार भी सहमत हो गए। गृह मंत्री अनिल देशमुख ने भी सहमति दे दी। इस बैठक में मौजूद सभी नेता सहमत थे। नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने भी इस पर सदन की कार्यवाही शुरू करने में शांति स्थापित करने का विश्वास दिलाया। लेकिन तभी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने एक कड़ा स्टैंड ले लिया।
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सीएम की वो बात और मच गया हंगामा
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पुलिस अधिकारी सचिन वाझे पर कार्रवाई करने से इन्कार कर लिया। इससे एक बार फिर गतिरोध की स्थिति जस की तस पर आ गई। इसके बाद सभी नेता सदन में आए तो कार्यवाही हंगामे के कारण लगातार स्थगित की जाती रही।
‘अंदर’ की बात पर पहले भी हो चुका है विवाद
वैसे भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के मध्य तकरार का बड़ा कारण पहले भी ये ‘अंदर’ की ही बात रही है। जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 18 फरवरी, 2019 को शिवसेना कार्याध्यक्ष उद्धव ठाकरे से मिलने मातोश्री निवास स्थान पर गए थे। इस बैठक के बाद भाजपा और शिवसेना में सहमति बनीं और दोनों दलों ने लोकसभा और उसके बाद विधान सभा के चुनाव गठबंधन में लड़ा।
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चुनाव परिणाम के बाद शिवसेना मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोंकने की शुरुआत की और भाजपा को अमित शाह और उद्धव ठाकरे के बीच मातोश्री निवासस्थान के अंदर हुए समझौते की याद दिलाने लगी। इस बीच भाजपा ने ऐसी किसी बात से इन्कार कर दिया। अंततोगत्वा चुनाव परिणामों ने वो समीकरण बना दिये थे कि शिवसेना, भाजपा के बगैर भी सत्ता स्थापना कर लेती और हुआ भी वही। राज्य में महाविकास आघाड़ी का गठन हुआ। भाजपा को सत्ता से दूर करने के लिए चिर प्रतिद्वंदी कांग्रेस और शिवसेना एक टेबल पर बैठ गए और एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना की राज्य में सत्ता स्थापित हो गई।
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