पृथ्वीराज चव्हाण महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। राज्य में महाविकास अघाड़ी के सत्ता में होने के बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री को न तो मंत्रालय में शामिल किया गया है और न ही उन्हें संगठन में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। लोग सोच रहे होंगे कि पृथ्वीराज चव्हाण (बाबा), जैसे दबंग और बेदाग वरिष्ठ नेता को कांग्रेस ने इतने लंबे समय से हाशिये पर क्यों फेंक रखा है? लेकिन इसके पीछे की असली वजह का शायद उन्हें अंदाजा नहीं होगा।
दरअस्ल पृथ्वीराज चव्हाण का राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार का विरोध है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष नाना पटोले के इस्तीफे के बाद कांग्रेस विधानसभा का अध्यक्ष पद पृथ्वीराज चव्हाण को सौंपने की इच्छुक थी, लेकिन, राकांपा और शरद पवार की नाराजगी के कारण उन्हें विधानसभा अध्यक्ष नहीं बनाया गया।
इसलिए राकांपा ने किया चव्हाण का विरोध
जब राज्य में गठबंधन की सरकार थी और पृथ्वीराज चव्हाण मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने सबसे ज्यादा परेशान राकांपा को किया था। उन्होंने अजित पवार और सुनील तटकरे को मुश्किल में डाल दिया था, इसलिए अगर पृथ्वीराज चव्हाण विधानसभा अध्यक्ष बनते तो एनसीपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। पता चला है कि इस कारण खुद पवार ने उनके नाम का विरोध किया था। साथ ही राकांपा की नजर भी विधानसभा अध्यक्ष पद पर है। जानकारी मिली है कि एनसीपी इस पद के बदले में मंत्री पद छोड़ने की तैयारी कर रही है। राजस्व मंत्री बालासाहेब थोरात ने भी हाल ही में शरद पवार से मुलाकात की थी। बताया जा रहा है कि बैठक के दौरान इस मुद्दे पर भी चर्चा हुई।
पवार-चव्हाण में 22 साल पुराना विवाद
पृथ्वीराज चव्हाण और शरद पवार के बीच विवाद नया नहीं है बल्कि 1999 से चल रहा है। जब पवार ने कांग्रेस छोड़ दी थी और 1999 में राकांपा का गठन किया था, तो पहली बार लोकसभा चुनाव में, एनसीपी ने एक नया उम्मीदवार श्रीनिवास पाटील को मैदान में उतारा। इस नए उम्मीदवार ने पृथ्वीराज चव्हाण को बड़े अंतर से हराया। उसके बाद जब पृथ्वीराज चव्हाण राज्य के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने राकांपा को परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ा। उन्होंने राकांपा पर हमला करते हुए कहा कि गृह विभाग राकांपा को देने का निर्णय गलत था और कानून व्यवस्था बिगड़ने के कारण मुंबई में बम विस्फोट हुआ। इसके साथ ही उन्होंने राज्य के कोऑपरेटिव बैंकों पर राकांपा के दबदबे की भी आलोचना की थी। सिंचाई पर श्वेत पत्र की घोषणा के बाद उन्होंने जल संसाधन विभाग के राकांपा के प्रबंधन पर भी संदेह जताया था।
अजित पवार ने की थी आलोचना
अजित पवार ने सवाल किया था कि साढ़े तीन साल से निर्णय लेने की प्रक्रिया में देरी करने वाले सीएम चव्हाण ने चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले निर्णय लेने में क्यों तेजी दिखानी शुरू कर दी। यदि निर्णय लेने थे, तो वे पहले क्यों नहीं लिए गए? अजित पवार के इस तरह के सवाल के बाद सियासी माहौल गरमा गया था।