चलकर भी लड़खड़ा गईं ममता! भाजपा को भारी पड़े पांव?

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच टक्कर रही। लेकिन उस लड़ाई में वामपंथी दलों का सफाया हो गया, कांग्रेस के युवराज ने तो दूरी बनाई ही थी। जिसके कारण वे और दूर हो गए। कभी वामपंथियों के गढ़ रहे बंगाल विधान सभा में प्रतिनिधि भी नहीं पहुंच पाया है।

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व्हील चेयर पर चली चुनाव की राजनीति, मत परिणामों के साथ अपने पैरों पर खड़ी हो गई। एक नारा प्रसिद्ध हुआ था ‘खेला होबे’ इसे जिस भारतीय जनता पार्टी ने लगाया वह तीन सीट से अस्सी सीट के पार पहुंच गई। जबकि खेला कर दिया ममता बनर्जी ने, वे तीसरी बार पुन: सत्ता में आ गई हैं। चुनावों के समय जो पैर लड़खड़ाए थे वो परिणामों में संभल गए, लेकिन दीदी के हिस्से तो फिर भी चलकर लड़खड़ाना ही लिखा है। जिस नंदीग्राम से ‘आमर ग्राम, तोरे ग्राम! नंदिग्राम-नंदीग्राम!!’ की गूंज में तृणमूल कांग्रेस प्रफुल्लित हुई थी वहां ममता बनर्जी को हार का मुंह देखना पड़ा।

पश्चिम बंगाल क्रांति की भूमि है। इस विधान सभा चुनाव में नई क्रांति के प्रयत्न के अंकुर फूटे तो प्रांतीयता का मुद्दा प्रफुल्लित हो गया। इसने एक इतिहास का स्मरण करा दिया है। ये बात दिसंबर 2006 की है। ममता बनर्जी तृणमूल की सत्ता जमाने के लिए जमीन तलाश रही थीं। इस बीच उन्हें लेफ्ट फ्रंट की सरकार ने एक ऐसा मुद्दा दे दिया कि मां, मातृभूमि और मानुष (मां, माटी, मानूष) का नाम लेकर 26 दिनों की भूख हड़ताल पर ममता बैठ गईं। यह आंदोलन विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) के अंतर्गत सलीम ग्रुप को केमिकल हब की स्थापना के लिए दी गई भूमि के विरोध में था। औद्योगिकरण के विरोध में कभी यूनियन के माध्यम से नौकरी करनेवालों को अधिकार दिलाने के नाम पर अपनी जड़ें जमानेवाली वामपंथी सरकार अब उसी जाल में खुद फंस गई थी। वर्ष 2007 में नंदीग्राम में दंगा हुआ, 14 ग्रामीण मारे गए। इसकी जांच में सीबीआई ने बुद्धदेब भट्टाचार्य सरकार को जिम्मदेरा ठहराया। लेकिन तब तक तृणमूल कांग्रेस ने नंदीग्राम में अपनी पैठ जमा ली थी।

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उसी नंदीग्राम में 2021 के चुनाव प्रचार में ममता बनर्जी के पैर लड़खड़ा गए थे। वोट बैंक को चोट लगने के भय में प्रांतवाद का राग ममता बनर्जी ने छेड़ दिया। जय श्री राम के नारे का उत्तर बंगाल की अति पूजनीय मां काली के चंडी पाठ से दिया जाने लगा। दीदी घायल पांव से व्हील चेयर के सहारे प्रचार करतीं, चंडी पाठ करतीं और अंत में खेला होबे का उत्तर देने के लिए बंगाली भाइयों के प्रिय खेल फुटबॉल को चुनावी मैदान में उछाल दिया।

भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत स्टार प्रचारकों की पूरी टीम ने प्रचार की कमान संभाली थी। मोदी जी के दीदी शब्द के उच्चारण से ममता बनर्जी को घृणा हो गई थी। इधर से जय श्रीराम का घोष होता तो उधर मंच से चंडी पाठ पढ़कर ममता उत्तर देतीं। भाजपा ने खेला होबे कहा तो तृणमूल ने फुटबॉल ही उछाल दी मैदान। परिणाम सबके सामने हैं, भाजपा दो सौ सीटों का दावा कर रही थी, लेकिन अस्सी के आसपास अंटक गई, जबकि तृणमूल दो सौ के आंकड़े को पार करके तीसरी बार सत्ता स्थापना की ओर बढ़ गई है।

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भाजपा को खुशी है कि वह तीन विधान सभा सीटों से अस्सी के ऊपर पहुंची है लेकिन लोकसभा चुनावों में मिली सफलता के अनुसार उसे कम से कम 120 सीटें मिलनी अपेक्षित थीं, जिसके लिए उसे आत्म-परीक्षण करना पड़ेगा। आखिर प्रचारों में घायल पैर, चुनाव परिणामों के साथ कैसे दौड़ने लगे ये किसी किशोर वयीन की युक्ति नहीं बल्कि स्व-निरीक्षण का विषय है, अन्यथा भाजपा को पैर ऐसे ही भारी पड़ते रहेंगे… कल महाराष्ट्र में पड़ा था, आज बंगाल में पड़ा और कल किसी प्रदेश में पड़ा सकता है।

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