भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में बड़ी राजनैतिक उठापटक हुई है। देश की सबसे बड़ी नेता ऑन्ग सान सू की, राष्ट्रपति विन म्यांत और सत्तधारी पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं को हिरसत में लिया गया है। इसके साथ ही सेना द्वारा तख्तापलट करने की खबर है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सेना ने सत्ता को एक साल के लिए अपने नियंत्रण में लिया है। सेना ने कहा है कि सेना प्रमुख मिन आंग लाइंग को सत्ता सौंप दी गई है। राजधानी नेपीटाव और मुख्य शहर यंगुन में सड़कों पर सैनिकों का पहरा है।
टकराव का कारण
म्यांमार में हाल ही में हुए चुनाव के बाद सेना और सत्ताधारी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी में संघर्ष शुरू हो गया है। सेना ने चुनाव में बड़े पैमाने पर गड़बडी किए जाने का आरोप लगाया है। बता दें कि नवंबर में हुए चुनाव में सू की पार्टी ने 83 प्रतिशत सीटों पर जीत हासिल की थी।
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सेना के हाथ में सत्ता
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक म्यांमार में एक बार फिर सत्ता सेना के हाथ में आ गई है। इस देश के लिए ये नया नहीं है। यहां के इतिहास पर नजर डालें तो कभी यहां भी अंग्रेजों का शासन हुआ करता था। यह भी जानना दिलचस्प है कि 1937 में ब्रिटिश शासन ने इसे भारत के राज्य के रुप में ही घोषित किया था। लेकिन बाद में इसे भारत से अलग कर दिया गया और यह एक उपनिवेश बना दिया गया। तब इसका नाम बर्मा हुआ करता था। 80 के दशक तक इसे इसी नाम से बुलाया जाता था। लेकिन बाद में इसका नाम बदलकर म्यांमार कर दिया गया।
1948 को मिली आजादी
म्यांमार( बर्मा) 4 जनवरी 1948 को ब्रिटिश शासन से मुक्त हुआ था। 1962 तक इस देश में लोकतंत्र था और इसी व्ववस्था के तहत सरकार चुनी जाती थी। मगर 2 मार्च 1962 को सेना के जनरल विन ने सरकार का तख्तापलट कर दिया और सत्ता पर सेना का कब्जा हो गया। इस सैन्य शासन ने संविधान को रद्द कर दिया। उसके बाद लंबे समय तक इस देश में सैन्य शासन रहा। सैन्य सरकार को यहां मिलिट्री जुंटा के नाम से कहा जाता था। 26 वर्षों तक सैन्य शासन चला, इस दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन के कई मामले उजागर हुए। संयुक्त राष्ट्र ने भी इसे लेकर सैन्य शासन की आलोचना की थी।
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1988 में बर्मा हो गया म्यांमार
1988 तक देश में सिर्फ सेना के अधिकारी को ही सत्ता पर काबिज होने का अधिकार प्राप्त था। यहां की सेना बर्मा सोशलिस्ट प्रोग्राम पार्टी को सपोर्ट करती थी। 1988 में सैन्य अधिकारी सॉ मांग ने नई सैन्य परिषद का गठन किया। इस परिषद ने देश में लोकतंत्र की मांग करनेवाले आंदोलन को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसी परिषद ने देश का नाम बदलकर म्यांमार कर दिया। लेकिन 2010 के आम चुनाव के बाद देश से मिलिट्री जुंटा का खात्मा हो गया।
1974 में बनाया गया दूसरा संविधान
सैन्य सरकार को तीन भागों में बांटा गया था- पहला यूनियन पार्लियामेंट, दूसरा चैंबर ऑफ नेशनलिटीज और तीसरा चैंबर ऑफ डिप्टीज। म्यांमार का जो पहले संविधान था, वो युगोस्लाविया के संविधान के अनुसार बनाया गया था। 1974 में म्यांमार का दूसरा संविधान बनाया गया। इसके तहत पीपल्स असेंबली का गठन किया गया। यहां सरकार का कार्यकाल चार साल का था। लेकिन इस दौरान सत्ता शिखर पर पर जनरल विन ही रहे।
2008 में कराया गया जनमत संग्रह
1988 में सैनिक सरकार ने स्टेट लॉ एंड ऑर्डर रेस्टोरेशन काउंसिल को रद्द कर दिया था। उसने 1993 में कंस्टीट्यूशन कंवेशन का आह्वान किया था। 1996 में इसका ऑन्ग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने विरोध और बाद में बहिष्कार किया। 2004 में कंस्टीट्यूशन कंवेशन का फिर आह्वान किया गया। 2008 तक म्यांमार में कोई संविधान नहीं था। 2008 में देश की सैन्य सरकार ने जिस संविधान का प्रस्ताव रखा, उस पर देश में जनमत संग्रह कराया गया। उसके बाद लोकतंत्र का रास्ता प्रशस्त हो गया। इसके बाद देश में लोकतंत्र की बहाली हुई।
ऑन्ग सान सू की के पिता ने लड़ी थी आजादी की लड़ाई
फिलहाल हिरासत में ली गई ऑन्ग सान सू की के पिता ऑन्ग सान ने म्यांमार आर्म्ड फोर्स का गठन कर देश को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के लिए कड़ा संघर्ष किया था। लेकिन देश को आजाद होने से छह माह पहले ही उनकी हत्या कर दी गई थी। उन्हें आधुनिक म्यांमार का पिता कहा जाता है। एक समय म्यांमार दक्षिण-पूर्व एशिया के अमीर देशों में से एक था। लेकिन आजादी के बाद सरकार की गलत नीतियों और सत्ता संघर्ष के कारण इसकी अर्थव्वयस्था खराब होती गई और फिलहाल इसे गरीब देश माना जाता है।