दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 17 मार्च को दिल्ली के जंतर मंतर पर केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। उनके साथ पार्टी के कई मंत्री, सांसद, विधायक और नेता भी मौजूद थे। केजरीवाल केंद्र सरकार द्वारा संसद में पेश किए गए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम-2021 को लेकर नाराज हैं।
केजरीवाल ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा बिल लाकर दिल्ली की चुनी हुई सरकार को कमजोर करके जनता के काम को रोकने की साजिश की जा रही है। केजरीवाल ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए बिल के अनुसार सरकार का मतलब एलजी होगा, तो दिल्ली की जनता का क्या होगा, मुख्यमंत्री का क्या होगा, फिर दिल्ली में चुनाव कराये ही क्यो गए थे?
केजरीवाल का वादा
केजरीवाल ने घोषणा करते हुए कहा कि दिल्ली की सत्ता जनता के हाथ में वापस देकर रहेंगे। साथ ही मेरा वादा है कि कोई भी विकास काम हम रुकने नहीं देंगे। चाहे इसके लिए किसी का पैर पकड़ना पड़े या हाथ जोड़ने पड़े।
बिल में क्या है?
गृह मंत्रालय की ओर से हाल ही में लोकसभा में एक बिल पेश किया गया है। यह बिल दिल्ली के उपराज्यपाल को व्यापक शक्तियां प्रदान करता है। नए बिल के अनुसार दिल्ली सरकार का मतलब एलजी होगा। विधानसभा में पारित किसी भी विधेयक को वह मंजूरी देने का पावर रखेगा। इसके साथ ही बिल में कहा गया है कि दिल्ली सरकार को शहर से जुड़े किसी भी निर्णय लेने से पहले उपराज्यपाल से मंजूरी लेनी होगी। साथ ही दिल्ली सरकार खुद कोई कानून नहीं बना सकेगी।
ये भी पढ़ेंः पश्चिम बंगाल चुनावः जानिये… क्या कहते हैं ओपिनियन पोल?
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय ने 4 जुलाई 2018 को अपने फैसले में कहा था कि सरकार के कामकाज में उपराज्यपाल को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। न्यायालय ने कहा था कि उपराज्यपाल का काम राज्य सरकार की सहायता करना है। वे मंत्री परिषद में सलाहकार के रुप में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।
केजरीवाल का आरोप
इस बिल को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि इस बिल के माध्यम से भाजपा पर्दे के पीछे रहकर सत्ता हथियाना चाहती है। केजरीवाल ने आरोप लगाया कि यह बिल सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के विपरीत है। केजरीवाल ने ट्वीट करते हुए कहा,’दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भाजपा मात्र 8 सीट और सीएमडी के उपचुनाव में एक भी सीट न पाकर जनता द्वारा नकार दी गई। भाजपा अब पर्दे के पीछे से सत्ता पर कब्जा करना चाहती है। इसलिए उसने इस तरह का बिल लोकभा में पेश किया है।’
ये भी पढ़ेंः जानिये… केजरीवाल के दावे पर क्या है सबसे बड़ा सवाल?
सिसोदिया ने कही ये बात
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी इस बिल को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की है। उन्होंने लिखा, ‘भाजपा संसद में नया कानून लेकर आई है। भाजपा अपने घोषणापत्र में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात करती है और इस तरह का बिल लाकर सरकार के सारे अधिकार एलजी को देने की साजिश करती है।’
पहले भी आमने-सामने रहे हैं केजरीवाल और एलजी
- वर्ष 2016 में दिल्ली के उपराज्यपाल ने केजरीवाल द्वारा नियुक्त किए गए डीआईआरसी चेयरमैन कृष्ण सैनी की नियुक्ति रद्द कर दी थी
- दिल्ली मेट्रो का किराया बढ़ाने के लेकर केंद्र और केजरीवाल के बीच विवाद बढ़ गया था, क्योंकि केजरीवाल किराया बढ़ाने के पक्ष मे नहीं थे।
- गेस्ट टीचर की नौकरी स्थाई करने पर भी एलजी और केजरीवाल के बीच मतभेद बढ़ गया था। केजरीवाल ने आरोप लगाया था कि शिक्षकों की फाइल दबा दी गई।
- दिल्ली के सीलिंग विवाद में भी केजरीवाल और एलजी के बीच तकरार बढ़ गया था।
- जब कोरोना फैला तो केजरीवाल ने कहा था कि दिल्ली के अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली के लोगो का इलाज होगा। एलजी ने इस फैसले का विरोध किया था और उन्होंने कहा था कि दिल्ली के अस्पतालों में सबका इलाज होगा।
- दिल्ली सरकार ने जब पूर्व सैनिक रामकिशन ग्रेवाल के परिवार को एक करोड़ रुपए का मुआवजा देने का ऐलान किया था तो एलजी ने वो फाइल लौटा दी थी।
- आईएएस अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर 2018 की गर्मियों में मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपने कैबिनेट में प्रमुख मंत्रियों के साथ उपराज्यपाल के घर के बाहर धरना दिया था।
अन्य केंद्र शासित प्रदेशों पर भी होगा असर
बता दें कि अगर केंद्र में यह बिल पास हो जाता है तो इसका असर देश के अन्य केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर, लद्दाख, पुडुचेरी आदि में भी पड़ेगा। फिलहाल केंद्र शासित प्रदेशों में सरकार और एलजी के बीच तकरार कोई नई बात नहीं है। हाल ही में पुडुचेरी में तत्कालीन एलजी किरण बेदी और नारायणसामी सरकार में भी टकराव बढ़ गया था।