New Delhi: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) ने गुरुवार 8 फरवरी को कहा कि चैतन्य महाप्रभु (Chaitanya Mahaprabhu) कृष्ण प्रेम के प्रतिमान थे। उन्होंने आध्यात्म और साधना को जन साधारण के लिए सुलभ बनाया। उन्होंने हमें बताया कि ईश्वर की प्राप्ति केवल संन्यास से ही नहीं, उल्लास से भी की जा सकती है। प्रधानमंत्री प्रगति मैदान (Pragati Maidan) के भारत मंडपम (Bharat Mandapam) में श्रील प्रभुपाद की 150वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने आचार्य श्रील प्रभुपाद की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की और उनके सम्मान में एक स्मारक टिकट और एक सिक्का जारी किया। गौड़ीय मिशन के संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपाद ने वैष्णव आस्था के मूलभूत सिद्धांतों के संरक्षण और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रधानमंत्री ने कहा कि चैतन्य महाप्रभु जैसी शख्सियतें समय के साथ किसी न किसी तरह से अपने काम का प्रचार करती हैं, श्रील प्रभुपाद इस विश्वास के प्रतीक थे। उन्होंने कहा कि श्रील प्रभुपाद के जीवन ने हमें सिखाया कि ध्यान के साथ कुछ भी कैसे हासिल किया जाए और अर्थ से लेकर सभी के कल्याण तक का मार्ग रोशन किया। प्रधानमंत्री ने वैष्णव भाव से गुजरात के संबंध को रेखांकित किया। उन्होंने गुजरात में भगवान कृष्ण की लीलाओं और गुजरात में मीरा बाई के ईश्वर में लीन होने का उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि इसने कृष्ण और चैतन्य महाप्रभु की परंपरा को मेरे जीवन का स्वाभाविक हिस्सा बना दिया है।
श्रील प्रभुपाद जी जैसे संतों का देश इसलिए सदैव ऋणी रहेगा… pic.twitter.com/iLX1PCmmEd
— Narendra Modi (@narendramodi) February 8, 2024
गौरवशाली परंपरा
प्रधानमंत्री ने भारत की आध्यात्मिक चेतना पर अपने विचारों को याद किया, जो उन्होंने 2016 में गौड़ीय मिशन के शताब्दी वर्ष में दिए थे। उन्होंने जड़ों के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि किसी की जड़ों से दूरी की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति उसकी क्षमताओं और शक्तियों को भूलना है। उन्होंने कहा कि भक्ति की गौरवशाली परंपरा के साथ भी ऐसा हुआ है। उन्होंने कहा कि कई लोग भक्ति, तार्किकता और आधुनिकता को विरोधाभासी मानते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि भक्ति हमारे ऋषियों द्वारा दिया गया एक भव्य दर्शन है। उन्होंने कहा, “जब भक्ति की बात आती है, तो कुछ लोग सोचते हैं कि भक्ति, तर्क और आधुनिकता ये विरोधाभासी बातें हैं लेकिन असल में ईश्वर की भक्ति हमारे ऋषियों का दिया हुआ महान दर्शन है। भक्ति हताशा नहीं, आशा और आत्मविश्वास है। भक्ति भय नहीं, उत्साह है।” उन्होंने कहा कि भक्ति हार नहीं बल्कि प्रभाव का संकल्प है। उन्होंने कहा कि भक्ति में स्वयं पर विजय पाना और मानवता के लिए काम करना शामिल है। उन्होंने कहा कि इसी भावना के कारण भारत ने अपनी सीमा के विस्तार के लिए कभी दूसरों पर आक्रमण नहीं किया। उन्होंने लोगों को भक्ति की महिमा से पुनः परिचित कराने के लिए संतों को श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री ने कहा, “आज आजादी के अमृत काल में देश ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्ति’ का संकल्प लेकर संतों के संकल्प को आगे बढ़ा रहा है।”
Mumbai: एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा के घर आईटी रेड
आध्यात्मिक नेताओं के महत्वपूर्ण योगदान
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने में आध्यात्मिक नेताओं के महत्वपूर्ण योगदान की सराहना की। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम और इसके राष्ट्रीय लोकाचार को आकार देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। मोदी ने कहा कि हमारे भक्ति मार्गी संतों ने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में बल्कि हर चुनौतीपूर्ण चरण में राष्ट्र का मार्गदर्शन करने में भी अमूल्य भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री मोदी ने याद किया कि आजादी के संघर्ष के दौरान स्वामी विवेकानन्द और श्रील प्रभुपाद जैसे आध्यात्मिक विभूतियों ने जनता में असीम ऊर्जा का संचार किया और उन्हें धार्मिकता के मार्ग पर अग्रसर किया। उन्होंने कहा कि नेताजी सुभाष और महामना मालवीय जैसी हस्तियों ने श्री प्रभुपाद से मार्गदर्शन मांगा।