संसद भवन उद्घाटन का विरोध, क्या है विपक्ष के कदम के सियासी मायने?

संसद भवन के विरोध को लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच तीखी नोकझोंक चल रही है।

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संसद भवन

लेखक- कमलेश पांडेय
राजनीति में कभी कोई किसी का सगा नहीं होता। पक्ष और विपक्ष तो एक-दूसरे के लिए कभी नहीं। दोनों एक-दूसरे को घेरने के मौके की ताक में रहते हैं। ऐसा ही कुछ नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह को लेकर हो रहा है। इससे हमारे जनप्रतिनिधियों के बौद्धिक स्तर और स्वार्थ लोलुपता दोनों का पता चलता है। यह बिलकुल साफ है कि इसे आम चुनाव 2024 के दृष्टिगत मुद्दा बनाया जा रहा है। भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल सभी दल एक जुट हैं। कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) में शामिल दलों और उनके संभावित सहयोगियों में परस्पर विरोधी रुख है।

विपक्ष का बहिष्कार
भाजपा नीत गठबंधन 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों करवाने पर एकजुट है और विपक्ष को संसदीय इतिहास का आईना दिखा रहा है। संप्रग के समर्थक दलों ने इसके खिलाफ मोर्चा खोलते हुए इसे राष्ट्रपति और लोकतंत्र का अपमान बताया है। संप्रग के 19 विपक्षी दलों ने साफ कहा है कि वे उद्घाटन समारोह में नहीं जाएंगे और सामूहिक बहिष्कार करेंगे।

सुर्खियों के मद में कुछ भी…
इस पूरे प्रकरण पर दोनों दलों के महत्वपूर्ण नेताओं के बयान पर गौर किया जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि अपनी राजनीतिक हठधर्मिता के चलते ये लोग इतिहास और वर्तमान से लोगों गुमराह कर रहे हैं। इसका मकसद मीडिया की सुर्खियां बटोरना नजर आता है। कुछ लोग इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का संवैधानिक हक छीनने की कोशिश कह रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है यह सर्वोच्च संवैधानिक पद का अपमान है। संसद अहंकार की ईंटों से नहीं, बल्कि संवैधानिक मूल्यों से बनती है।

बौखलाहट किसलिये
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि सभी को समान मौका देना सच्ची संसदीय परम्परा है। जहां विपक्ष का मान नहीं, वो सच्ची संसद नहीं हो सकती। उल्लेखनीय है कि ये वही लोग हैं जब सत्ता में थे तो सभी राजनीतिक मर्यादाओं को तार-तार कर दिया गया था। किसी ने अपने प्रधानमंत्री को नीचा दिखाया तो किसी ने अपने चाचा को। विपक्षियों की बौखलाहट पर केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने सधा हुआ बयान देकर यह स्पष्ट कर दिया कि लोकसभा अध्यक्ष संसद के संरक्षक हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री को उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया है। इसलिए इसमें कोई गलत बात नहीं है।

याद दिलाया इतिहास
असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने कहा कि विपक्ष ने यह कभी नहीं सोचा था कि नया संसद भवन इतनी जल्दी बन जाएगा। यह उनके लिए ‘बाउंसर’ जैसा है। मतलब अब उन्हें सियासी चोट लग रही है तो वो क्या करें? विपक्ष के नहले पर दहला फेंकते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि यह पहली बार नहीं है जब देश के प्रधानमंत्री इस प्रकार के किसी उद्घाटन कार्यक्रम के साक्षी बन रहे हों। बल्कि इससे पहले पार्लियामेंट एनेक्सी का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी द्वारा किया जा चुका है। पार्लियामेंट लाइब्रेरी का शिलान्यास पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा किया गया था। इसके अलावा और भी कई उदाहरण हैं। योगी ने कहा कि नया संसद भवन आज की आवश्यकताओं के अनुरूप है।

ऐतिहासिक क्षण को धूमिल करने का प्रयास
यह आगामी 100 वर्ष के विजन को लेकर बना है और इसमें परंपरा और आधुनिकता का समावेश है। यह दूरदर्शी तरीके के साथ बनाया गया है। हर एक पार्लियामेंटेरियन को उचित स्थान और हर प्रकार की सुविधा मिल सके, इस बात को ध्यान में रखा गया है। महत्वपूर्ण यह है कि इतने उदाहरण होने के बावजूद विपक्ष द्वारा जिस प्रकार इस गरिमामयी कार्यक्रम का साक्षी बनने के ऐतिहासिक क्षण को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है, उसे देश कतई स्वीकार नहीं करेगा। 19 विपक्षी दलों ने साझा बयान जारी कर उद्घाटन समारोह का सामूहिक बहिष्कार करने की घोषणा की है। इन दलों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, जदयू, आम आदमी पार्टी, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, राजद, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे),माकपा, भाकपा, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, झामुमो, नेशनल कांफ्रेंस, केरल कांग्रेस (एम), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, विदुथलाई चिरुथिगल काटची (वीसीके), एमडीएमके और रालोद शामिल हैं।

एकता और जन कल्याण का काल
राजग में शामिल दलों के नेताओं ने विपक्ष के इन नेताओं से फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। इन नेताओं ने अपने साझा बयान में विपक्ष के फैसले को अपमानजनक और देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मान्यताओं पर हमला करार दिया है। नेताओं ने कहा कि हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। यह समय हमें बांटने का नहीं, बल्कि एकता व लोगों के कल्याण के लिए एक साझा प्रतिबद्धता दिखाने का है। इन नेताओं में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा, नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो, सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग, मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथंगा, हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, केंद्रीय मंत्रीगण पशुपतिनाथ पारस, अनुप्रिया पटेल, रामदास अठावले, तमिल मनीला कांग्रेस के जी.के वासन, अन्नाद्रमुक के इ.पलानीसामी, आईएमकेएमके के देवनाथन, आजसू के सुदेश महतो जैसे क्षेत्रीय दलों के एनडीए नेता शामिल हैं।

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भाजपा को रोकने की राजनीति
समझा जा रहा है कि इस आग्रह के बाद वाईएसआर कांग्रेस, बीजद, शिरोमणि अकाली दल, बसपा, लोजपा (रामविलास), टीडीपी, बीआरएस आदि दल उद्घाटन समारोह में शामिल हो सकते हैं। बहरहाल, विपक्षी नेताओं के रुख से स्पष्ट है कि कभी देशवासियों को कांग्रेस मुक्त भारत के सपने दिखाने वाली भाजपा को के अश्वमेघ रथ को आगे बढ़ने से रोकने के लिए लामबंद हो रहे हैं। कर्नाटक चुनाव से इनकी भुजायें फड़कने लगी हैं। विपक्ष ने कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी है। मुद्दे को देश की सबसे बड़ी अदालत में ले जाया गया। अदालत की चौखट से इन नेताओं को निराशा हाथ लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति से उद्घाटन कराने की मांग पर सुनवाई से ही इनकार कर दिया है।

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