बिहार में सियासी समर: कौन मनाएगा सत्ता की दिवाली? नीतीश, सुशील या तेजस्वी

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पटना। बिहार विधान सभा के चुनावी समर का ऐलान हो चुका है। शुक्रवार को मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने तीन चरणों में मतदान कराने के लिए तारीखों की घोषणा कर दी। उन्होंने बिहार विधानसभा के 243 सीटों के लिए 28 अक्टूबर, 3नवंबर और 7 नवंबर को मतदान कराए जाने का ऐलान कर लोगों के अनुमान पर मुहर लगा दी। मतों की गिनती के लिए 10 नंवबर की तारीख तय की गई है। राजनीति के जानकारों का मानना था कि नीतीश कुमार की अगुवाई में चल रही एनडीए की सरकार के कार्यकाल 29 नवंबर को पूरा होने से पहले बिहार विधान सभा का चुनाव करा लिया जाएगा। इसलिए चुनाव की तारीखों की औपचारिक घोषणा के पहले से ही वहां चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई थीं।
जीत की खुशी दिवाली के साथ मिलकर हो जाएगी दुगुनी
चुनावी नतीजे 10 नवंबर को यानी मतगणना के ही दिन आ जाने का अनुमान है। इसके चंद दिन बाद ही 14 नवंबर को दिवाली है। इस तरह इस चुनावी समर में जीत की खुशी दिवाली के साथ मिलकर दुगुनी हो जाएगी। बस, यूं समझ लीजिए कि इस बार की जीत जीतनेवाली पार्टियों के लिए दीवाली का उपहार होगी। लोकतंत्र के इस उपहार की बदौलत विजेताओं को पांच साल तक जश्न मनाने का मौका मिलेगा।
करतब दिखाने को बेताब राजनीति के योध्दा
चुनावी समर के ऐलान के साथ ही सियासत के मैदान में लोकतंत्र के योद्धा अपना करतब दिखाने के लिए बेसब्र होने लगे हैं। हालांकि बिहार में इसके पहले से ही चुनावी चाल चलने का सिलसिला शुरू है और कई छोटी पार्टियां अपने नये ठिकाने की तलाश में जुटी हुई हैं। बिहार में लोकतंत्र का यह पर्व दशहरे और दीवाली क बीच मनाया जाएगा। तीन चरणों में मतदान के लिए बिहार के 7 करोड़ 79 लाख मतदात अपने-अपने क्षेत्र के प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे। इनमें 3 करोड़ 79 लाख पुरूष मतदाता और 3 करोड 39 लाख महिला मतदाता हैं। इस बार मतदान के लिए एक घंटा अधिक वक्त रखा गया है। सुबह सात से शाम 6 बजे तक मतदान होगा।
मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच
फिलहाल जब चुनावी रण के लिए रणभेरी बज चुकी है तो जीत और हार का आकलन भी शुरू हो गया है। फिलहाल सबसे पहले यह देखना जरुरी है कि चुनावी समर में वास्तव में मुकाबला किसके-किसके बीच है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में एक बार फिर मुकाबला नीतीश कुमार के नेतृत्व में घोषित तौर पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी एनडीए और लालू प्रसाद यादव के छोटे सुपुत्र तेजस्वी यादव की अगुवाई में उतरनेवाले महागठबंधन के योद्धाओं के बीच है। इनमें ही छोटी-छोटी अन्य पार्टियां भी समाहित हैं। एनडीए में जेडीयू और भाजपा के साथ ही जीतन राम मांझी की पार्टी हम और रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा शामिल है।
चिराग का रुख तय नहीं
लोजपा के बारे में अभी कुछ भी कहना मुश्किल है। जिस तरह से पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से संबंध बिगाड़ रखे हैं, उससे यही लगता है कि उनकी पार्टी का इस बार एनडीए में तालमेल बैठना मुश्किल है। राजनीति के चतुर चालाक खिलाड़ी नीतीश कुमार ने पहले ही चिराग की नीयत को परखकर अपने पुराने दोस्त जीतन राम मांझी को अपने साथ कर लिया है। चिराग पासवान के प्रति भाजपा नेताओं का रवाया नरम दिख रहा है और हो सकता है कि वे उन्हें अपने साथ बनाए रखें। लेकिन जिस तरह लोजपा के नेता अभी से चिराग को मुख्यमंत्री के दावेदार के रुप में पेश कर 143 सीटों पर अलग से चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, उससे नीतीश कुमार के साथ ही भाजपा की नाराजगी भी बढ़ सकती है, क्योंकि भाजपा के बड़े नेता पीएम मोदी और अमित शाह भी मान चुके हैं कि यह चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व ही लड़ा जाएगा। वैसे अगर चिराग एनडीए से हटकर चुनावी समर में उतरते हैं तो उनक लिए राह काफी मुश्किल हो सकती है। राजनीति के कच्चे खिलाड़ी चिराग पासवान को यह बात समझ लेनी चाहिए।
रालोसपा पर नीतीश की नजर
नीतीश कुमार की नजर महागठबंधन से नाराज चल रहे रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पर बताई जा रही है। हालांकि कई बार कुशवाहा से धोखा खा चुके नीतीश उन्हें फिर से गले लगाएंगे, इस बारे में कहना मुश्किल है। हालांकि कुशवाहा ने नीतीश के मुकाबले तेजस्वी को मुख्यमंत्री के रुप में बेहद कमजोर बताकर उन्होंने एनडीए में वापसी का संकेत दिया है। वैसे, राजनीति में कुछ भी संभव है और अगर कुशवाहा एडीए के साथ आते हैं तो उनकी जाति कोइरी के पूरे के पूरे मत एनडीए को मिल सकते हैं।
उपेंद्र कुशवाहा का हाल भी चिराग जैसा
कहा जा सकता है, जो हाल चिराग का एनडीए में है, वही हाल कुशवाहा का महागठबंधन में है। अगर ये दोनों अपनी पार्टियों के बैनर तले चुनावी अखाड़े में उतरते हैं तो इनकी पार्टी मात्र वोटकटवा पार्टियां बनकर रह जाएंगी।
महागठबंधन में कौन-कौन पार्टियां?
महागठबंधन में मुख्य रुप से आरजेडी और कांग्रेस शामिल हैं। इनके आलावा उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता कि वो महागठबंधन में रहेंगे या बाहर जाएंगे। जबकि वीआईपी के नेता मुकेश सहनी की पैठ सिर्फ मल्लाह जाति तक मानी जाती है।
नीतीश और तेजस्वी के बीच मुकाबला
मुकाबला भले एनडीए और महागठबंधन में है लेकिन वास्तव में ये चुनाव नीतीश बनाव तेजस्वी हो गया है। नीतीश कुमार के अनुभव और साफ-सुथरी छवि के साथ ही सभी जातियों और समाज को साधने की उनकी कला के कारण जहां एनडीए का पलड़ा भारी दिख रहा है, वहीं तेजस्वी यादव के परिवार और पिता पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगते रहे हैं। यही वजह है कि उन्होंने इस बार अपनी पार्टी के चुनावी बैनर-पोस्टर पर अपने पिता के साथ ही मां और बहनों की तस्वीरें भी नहीं लगाई हैं। वैसे उन्हें उनकी अपनी जाति यादव समाज के एकमुश्त वोट हमेशा की तरह मिलेंगे। लेकिन बाकी जातियों के मत बटेंगे, वहीं सवर्णों का शायद ही कोई वोट उन्हें मिले।
एनडीए के साथ सवर्ण
भाजपा की वजह से सवर्णों के पूरे के पूरे वोट एनडीए को मिलेंगे और इसका फायदा नीतीश कुमार को भी होगा। जहां तक भारतीय जनता पार्टी की बात है तो बिहार में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की बात है तो वे मुख्यमंत्री बनने का सपना भी नहीं देखते होंगे। उन्होंने नीतीश कुमार के नेतृत्व में अपना पूरा भरोसा जताया है और वे एनडीए की जीत तथा उपमुख्यमंत्री बनकर ही खुश हो लेंगे। वास्तव में इस चुनाव में मुकाबला नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव में ही है और फिलहाल नीतीश तेजस्वी से बीस दिख रहे हैं। लेकिन राजनीति उम्मीदों का खेल है। सबको अपनी जीत का भरोसा है।

 

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