समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रमुख शिवपाल यादव एक बार फिर एक हो गए हैं। चाचा ऐसे समय में भतीजे के पास लौट हैं जब उनकी बहू डिंपल यादव मैनपुरी चुनाव में रिकॉर्ड बढ़त के साथ जीत रही हैं। गौर करने वाली बात यह है कि जब से शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी बनाई उसके बाद से वह कहीं पर भी चुनाव नहीं जीते। इसके बाद यह अंदेशा जताया जा रहा था कि चाचा अपनी पार्टी का सपा में विलय कर सकते हैं। आखिर हुआ भी वहीं और चाचा अपने भतीजे के पास वापस आ गए।
बहू को जिताने के लिए की दिन रात मेहनत
गौरतलब है कि सपा ने जब से डिंपल को मैनपुरी से चुनाव में उतारा था, तब से शिवपाल यावद की अखिलेश से नजदीकियां बढ़ती गईं। उन्होंने अपनी बहू को जिताने के लिए दिन रात मेहनत की। चुनाव प्रचार में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। हालांकि, उन्हें इसमें सफलता भी मिल गई। उनका अपनी पार्टी को सपा में विलय करना यह दर्शाता है कि उनसे कुछ हो नहीं पा रहा था।
शिवपाल ने खेले कई खेल
शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी से अलग होकर जब नई पार्टी बनाई होगी तो बड़ी उम्मीदें की होगी, लेकिन वह अपनी ही उम्मीदों पर पानी फेरते चले गए। हालांकि, इस दौरान शिवपाल ने कई खेल खेले। बीच में इस बात को लेकर चर्चा जोरों पर थी कि प्रसपा प्रमुख शिवपाल यावद भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इसके लिए वह भाजपा से लगातार नजदीकियां भी बढ़ा रहे थे। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद ऐसा लग रहा था कि यादव कुनबा एक बार फिर एक हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसके बाद फिर चाचा और भतीजे में खटपट शुरू हो गई। इसके बाद ही शिवपाल यादव भाजपा के करीब आने की कोशिश की, लेकिन भाजपा ने उन्हें भाव नहीं दिया। आखिर थक हार कर जब उन्हें कोई और रास्ता नहीं सूझा तो वह अपने भतीजे अखिलेश यादव के पास वापस चले गए। सैफई के एसएस मेमोरियल स्कूल में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रगतिशीन समाजवादी पार्टी का समाजवदी पार्टी में विलय कराया। इस दौरान भतीजे ने चाचा को सपा का चुनाव चिन्ह भेंट किया।