पुणे के भीमा कोरेगांव दंगा मामले में पुणे पुलिस के खुलासे से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार के दावे का दम निकल गया है। इससे यह सवाल उठता है कि दंगों में पवार के गंभीर आरोपों के पीछे वास्तव में मकसद क्या था?
संभाजी भिड़े दंगे में शामिल नहीं – पुणे पुलिस
1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हुए दंगों के बाद पुणे पुलिस ने सबसे पहले शिव प्रतिष्ठान के मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े के खिलाफ मामला दर्ज किया था, हालांकि, पुणे पुलिस ने बाद में दंगों में नक्सली कनेक्शन पाया और आनंद तेलतुम्बडे, गौतम नवलखा, कवि वरवरा राव, स्टेन स्वामी, सुधा भारद्वाज और वर्नोन गोंजाल्विस को गिरफ्तार कर लिया। शिवसेना के भाजपा से अलग होने के बाद शिवसेना और कांग्रेस के साथ मिलकर महाविकास आघाड़ी सरकार के संस्थापक शरद पवार ने भीमा कोरेगांव मामले में भड़की हिंसा के लिए शिव प्रतिष्ठान के मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े को जिम्मेदार ठहराया था। पवार ने कहा था कि मामले में तथ्यों और पुणे पुलिस की जांच के बीच एक बड़ा विरोधाभास है। इसलिए इसकी जांच होनी चाहिए। तब राज्य सरकार को एक विशेष जांच समिति का गठन करना था, लेकिन केंद्र ने पहले ही इस मामले को एनआईए के हवाले कर दिया था। भिड़े के खिलाफ भीमा कोरेगांव दंगा मामले में 2018 में केस दर्ज किया गया था। हालांकि, पुणे पुलिस ने अब न्यायालय से कहा है कि जांच में भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में संभाजी भिड़े की संलिप्तता नहीं पाई गई है। पुणे ग्रामीण पुलिस ने राज्य मानवाधिकार आयोग को भी इस बारे मे सूचित किया है। इसलिए शरद पवार का दावा झूठा साबित हुआ है।
यह है मामला
1 जनवरी 2018 को नगर रोड पर भीमा-कोरेगांव में विजय स्तंभ को सलामी दी जा रही थी, तभी सनसवाड़ी में अज्ञात व्यक्तियों ने सड़क पर वाहनों पर पथराव कर दिया। कई लोग घायल हो गए। इस घटना का असर राज्य के अन्य शहरों में भी महसूस किया गया। स्थानीय निवासी अनीता सावले ने पुणे ग्रामीण पुलिस में संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे समेत अन्य के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। हालांकि बाद में भीमा कोरेगांव मामले की जांच एनआई को सौंप दी गई है, लेकिन राज्य सरकार द्वारा गठित जांच आयोग की जांच सेवानिवृत्त न्यायाधीश जे.एन. पटेल की अध्यक्षता में जारी है।