केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों को वापस लिये जाने के पश्चात एक नया राजनीतिक पैंतरा सामने आया है। पंजाब के तीस से अधिक किसान यूनियन के नेता अब एक वर्ष तक चले अपने आंदोलन की समाप्ति के बाद राजनीतिक हाथ आजमाने की जुगाड़ में लग गए हैं। वैसे कहा यह भी जा रही है कि यह नेता अपने केंद्र सरकार के एक निर्णय के बाद आपने अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद किसान यूनियन के नेताओं से आंदोलन का एक बड़ा अस्त्र ही छिन गया है। चुनावों के लिए जो रणनीति बनाई गई थी, वह अब फेल हो चुकी हैं, ऐसी स्थिति में यह नेता अब अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने में लगे हैं, इस प्रयत्न में उन्हें एक-दूसरे के विरोध से भी परहेज नहीं है।
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अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग
किसान यूनियन के नेता अपने राजनीतिक हितों की रक्षा करने में लगे हुए हैं। आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने अपना अलग राजनीतिक दल बना लिया है। संयुक्त संघर्ष पार्टी के नाम से वो पंजाब की 117 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारेंगे।
चढूनी का मिशन पंजाब
‘हिन्दूस्थान पोस्ट’ से बात करते हुए गुरुनाम सिंह चढूनी ने कहा कि राजनीतिक दलों से लोगों का मोहभंग हो गया है। इसलिए उन्होंने मिशन पंजाब शुरू किया है। दरअसल, गुरनाम सिंह चढूनी हरियाणा के शाहबाद के गांव गढ़ी जाट्टान के रहने वाले हैं। पंजाब विधानसभा चुनावों में अकेले किसान मतदाताओं के बलबूते वो पंजाब की राजनीति में क्या कोई बड़ा करिश्मा कर पाएंगे यह सबसे बड़ा सवाल है? इधर, किसान यूनियन आंदोलन से जुड़े दूसरे नेता गुरुनाम सिंह चढूनी के साथ चलने को तैयार नहीं है।
राजेवाल को भी राजनीतिक छांव की खोज
बलबीर सिंह राजेवाल भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक नेताओं में से एक हैं। बलबीर सिंह पंजाब के खन्ना जिले के राजेवाल गांव से हैं। लुधियाना के आसपास के गांवों में उनका प्रभाव माना जाता है। बलवीर सिंह राजेवाल आम आदमी पार्टी में अपनी संभावनाएं तलाशने में लगे हैं। सूत्रों के अनुसार आम आदमी पार्टी में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उनकी चर्चा चल रही है। लेकिन, पंजाब की कई किसान यूनियनों ने पंजाब में चुनावी राजनीति में हिस्सा लेनेवालों की खिलाफत की है।
उगरहां का विरोध
जोगिंदर सिंह उगराहां किसान संगठनों को चुनावी राजनीति से दूर रहने की नसीहत देते हैं। जोगिंदर सिंह उगराहां किसान आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक रहे हैं, वो संगरूर जिले के सुनाम शहर के रहने वाले हैं। भारतीय सेना से सेवानिवृत्ति के बाद, उन्होंने 2002 में भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) का गठन किया। पंजाब का मालवा क्षेत्र इस संगठन का गढ़ माना जाता है।
इन्हें भी राजनीतिक आस
समराला के गुरमिंदर सिंह ग्रेवाल, भारत पाकिस्तान की सीमा से लगे पंजाब के फिरोजपुर जिले के करमा गांव के रहने वाले भारतीय किसान यूनियन डकौंदा के नेता डॉ.दर्शनपाल, सरवन सिंह पधेर अपनी – अपनी राजनीतिक संभावनाएं तलाश रहे हैं। अब सवाल ये है कि क्या किसान यूनियन विधानसभा चुनावों में वोट बैंक को एकजुट कर पाएगा? या फिर महज राजनीतिक दलों का मोहरा ही बनेंगे?