रणजीत सावरकर ने नेहरू के कुकर्मों को प्रमाण सहित किया उजागर

स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष और वीर सावरकर के पौत्र रंजीत सावरकर ने कहा, "मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बगावत नहीं क्रांति की है।"

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स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मारक के कार्याध्यक्ष और वीर सावरकर के पौत्र रणजीत सावरकर ने प्रमाण के साथ नेहरू के कुकर्मों का पर्दाफाश किया। उन्होंने कहा कि जब लॉर्ड बैटन ने देश के विभाजन का फैसला किया, तो लॉर्ड बेटन, उनकी पत्नी लेडी माउंटबेटन और बेटी नेहरू के साथ शिमला गए, जिसके बाद नेहरू ने देश के विभाजन की अनुमति दे दी। एक महिला के कहने पर नेहरू ने बिना सोच- विचार के देश के विभाजन की अनुमति दे दी। इस कारण 20 लाख हिंदुओं का नरसंहार हुआ। लेडी माउंटबेटन को नेहरू हर रात सभी घटनाओं की सूचना देने के लिए पत्र लिखते थे। इसलिए अंग्रेजों को जासूसी के लिए किसी स्वतंत्र व्यक्ति को नियुक्त करने की आवश्यकता नहीं थी।

शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे को उनके स्मृति दिवस के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के सावरकर सभागृह में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। उस वक्त मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, गजानन कीर्तिकर, रामदास कदम, मंत्री दीपक केसरकर, मंत्री उदय सामंत, राहुल शेवाले, भाजपा नेता प्रसाद लाड मंच पर मौजूद थे।

नेहरू ने दिया देश को धोखा 
जब वीर सावरकर जेल से बाहर आए, गांधी एक लोकप्रिय नेता बन गए। द्वितीय विश्व युद्ध के बादल दुनिया भर में छाए हुए थे। अंग्रेज भारत छोड़ना चाहते थे, लेकिन इससे पहले वे भारत का विभाजन करना चाहते थे। वास्तव में ब्रिटिश 1939 में भारत छोड़ने वाले थे, क्योंकि उन्होंने उस समय आईसीएस की नियुक्ति रोक दी थी। तब वीर सावरकर ने ‘ अखंड हिंदुस्तान’ के लिए आंदोलन शुरू करने का फैसला किया और एक प्रमुख पार्टी के रूप में हिंदू महासभा का गठन किया। मुहम्मद अली जिन्ना जब नस्लवादी बने तो महात्मा गांधी उनके साथ खड़े रहे। यह देश के साथ विश्वासघात का इतिहास है। 1921 में नेहरू लोगों को इनकम टैक्स न देने, स्कूल कॉलेज न जाने, असहयोग का विरोध करने के लिए कह रहे थे, लोगों ने उनकी बात मान ली, लेकिन दूसरी तरफ जवाहरलाल नेहरू ने अपने पिता को पत्र लिखा ‘आयकर भरो’ आयकर नहीं भरना देशद्रोह है।स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष और वीर सावरकर के पौत्र रणजीत सावरकर ने कहा कि यह देश के साथ विश्वासघात है।

इसलिए सावरकर ने हिंदुत्व को प्राथमिकता दी
जब हम वीर सावरकर और शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे के बारे में सोचते हैं, तो हमें 100 साल पीछे जाना पड़ता है। बालासाहेब का हिंदुत्व वीर सावरकर का हिंदुत्व था, जिसमें सभी के साथ समान व्यवहार की अपेक्षा थी, राष्ट्रीयता का हिंदुत्वथा। 1921 में जब वीर सावरकर को अंडमान से भारत के रत्नागिरी लाया गया तो उन्हें भी एक छोटे से कमरे में रखा गया। वीर सावरकर का हिंदुत्व यहीं से शुरू हुआ, हिंदुत्व किताब वहीं लिखी गई, क्योंकि जब वीर सावरकर अंडमान में थे, मोहमेमद अली और शौकत अली ने 1919 में भारत में खिलाफत आंदोलन शुरू किया। उस आंदोलन के कुछ सत्याग्रही जेल गए, और वीर सावरकर को यह महसूस हुआ। यह आंदोलन वास्तव में तुर्केस्तान में था, इस आंदोलन को महात्मा गांधी का समर्थन प्राप्त था। उस समय मुसलमानों ने हिंदुओं का नरसंहार किया, महिलाओं पर अत्याचार किया, हिंदुओं की लाशों से कुएं भर गए, फिर भी गांधी ने मोपलाओं की ‘मेरे बहादुर मोपला भाई’ कहकर प्रशंसा की। उस समय गांधी ने कहा था कि क्योंकि हमने उन्हें शांति नहीं सिखाई, वे हिंसा को अपना धर्म समझते हैं, इसलिए वे कुछ गलत नहीं कर रहे हैं। तब वीर सावरकर का हिंदुत्व जागा, उन्होंने सवाल उठाया कि इतने अत्याचार के बावजूद 80 प्रतिशत हिंदू चुप क्यों रहे? फिर वीर सावरक ने हिंदुत्व को परिभाषित किया। उन्होंने कहा, वे सभी हिंदू हैं, जिनके पूर्वज इस भूमि पर पैदा हुए थे और जिनका धर्म या पंथ इसी भूमि पर उत्पन्न हुआ था। इस परिभाषा के कारण, भारत में ईसाई, यहूदी और मुसलमानों को छोड़कर सभी धार्मिक संप्रदाय हिंदू हैं। रणजीत सावरकर ने यह भी कहा कि जेल में रहने के बावजूद वीर सावरकर ने हिंदू समुदाय को संगठित किया।

उद्धव ठाकरे के विचार हिंदुत्व नहीं

1992 में जब हिंदुओं का कत्लेआम हो रहा था तो बालासाहेब ने आदेश दिया और रातोंरात स्थिति बदल गई। मस्जिद पर लगे हरे झंडे उतर गए और सफेद झंडे लग गए। रणजीत सावरकर ने कहा कि उद्धव ठाकरे, जो कहते हैं कि हम बाला साहेब की विरासत संभाल रहे हैं, लेकिन वे अपने बेटे को राहुल गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए भेजते हैं, यह हिंदुत्व नहीं है। जब वीर सावरकर रत्नागिरी में रह रहे थे, तब सभी कैदियों को गुजारा भत्ता दिया जाता था, ऐसा भत्ता देना अनिवार्य था, उस समय के कांग्रेस नेताओं को 150 रुपये प्रति माह मिलते थे, वीर सावरकर को केवल 60 रुपये मिलते थे। सावरकर 13 साल तक कैद में रहे, उन्हें 5-6 साल ही भत्ता मिला। रणजीत सावरकर ने यह भी कहा कि ऐसे में यह आरोप लगाना हास्यास्पद है कि जिस व्यक्ति ने अपना जीवन स्वतंत्रता संग्राम में बिताया और अपनी जवानी का दाह संस्कार कर दिया, वह 5-6 हजार रुपये के लिए ऐसा काम करेगा।

गांधी जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे
1942 में महात्मा गांधी ने मेहमम्द अली जिन्ना से कहा था, “आप भारत के प्रधानमंत्री बनिए, हम आपका समर्थन करेंगे।1989 में, जब देश के गृह मंत्री मुसलमान थे, तो उनकी बेटी का अपहरण कर लिया गया और बदले में 22 आतंकवादी रिहा कर दिए गए। उसके बाद महीनों कश्मीर में हिंदुओं का नरसंहार किया गया और कश्मीरी पंडितों को पलायन के लिए मजबूर कर दिया गया। अगर जिन्ना देश के प्रधानमंत्री होते तो क्या होता?”

एकनाथ शिंदे ने बगावत नहीं, यह क्रांति की है!

स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष और वीर सावरकर के पौत्र रंजीत सावरकर ने कहा, “मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बगावत नहीं क्रांति की है। हम ढाई साल दुखी रहे, आपने क्रांति करके बालासाहेब की शिवसेना को पुनर्जीवित किया। हमने ढाई साल देखा कि अगर कोई आपदा आती है तो क्या हुआ। अगर कल केंद्र में कोई बदलाव होता है तो पिछले 10 वर्षों में किया गया सब कुछ बर्बाद हो जाएगा। इसलिए ‘जो हिंदू हित की बात करेगा, वही देश पर राज करेगा।”

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