कृषि कानूनों की वापसी योग्य या अयोग्य? सर्वोच्च न्यायालय की कमेटी सदस्य ने बताई वो रिपोर्ट

केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानून लाए थे, जिनसे प्रलंबित कृषि सुधारों को गति दी जा सके। परंतु, किसान यूनियन द्वारा इसका विरोध किया जाने लगा, जो पिछले एक वर्ष से जारी है।

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केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानूनों के वापस लेने की घोषणा कर दी है। इस बीच सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित तीन सदस्यीय कमेटी के सदस्य ने अचानक बड़ा खुलासा किया है, जिससे सरकार के निर्णय पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस कमेटी के सदस्य एनिल जे. धनवट ने कृषि सुधार कानूनों का समर्थन किया है।

शेतकरी संगठन के अध्यक्ष अनिल जे.धनवट ने कहा है कि, केंद्र सरकार द्वारा तीनों कृषि कानून वापस लेना दुर्भाग्यपूर्ण है। किसान पिछले चालीस वर्षों से कृषि सुधारों की मांग कर रहे हैं। वर्तमान कृषि प्रणाली पर्याप्त और उचित नहीं है। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि, तीनों कृषि कानूनों पर विचार के लिए सभी राज्यों के विपक्षी दलों और किसान नेताओं को शामिल करते हुए एक कमेटी बनाई जाएगी।

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मार्च में सौंपी है रिपोर्ट
सर्वोच्च न्यायालय ने तीन कृषि कानूनों के अध्ययन के लिए एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने कानूनों का आध्ययन करके 19 मार्च को अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंप दी है। यह रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं की गई है। हालांकि, अनिल धनवट के अनुसार उन्होंने 1 सितंबर को एक पत्र लिखकर रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की है। इस पत्र में स्पष्ट किया गया है कि, ‘सुझाव, वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन का हल निकालने का मार्ग प्रदान करेंगे’

ऐसे होगी रिपोर्ट सार्वजनिक
अनिल जे. धनवट महाराष्ट्र की शेतकरी संगठन के अध्यक्ष हैं, उन्होंने पीटीआई को बताया कि, ‘सरकार द्वारा तीनों कृषि कानून रद्द किये जाने का निर्णय लिये जाने पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से गठित तीन सदस्यीय कमेटी की 22 नवंबर को बैठक हुई। हमने रिपोर्ट को सार्वजनिक किये जाने पर विस्तृत चर्चा की। कमेटी के अन्य दोनों सदस्यों ने मुझे इस विषय में निर्णय लेने का सर्वाधिकार दिया है। मैं कानूनी पहलुओं पर विचार करने के बाद इस पर निर्णय लूंगा।’

तीन सदस्यीय कमेटी में कौन-कौन
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित तीन सदस्यीय कमेटी के सदस्यों में शेतकरी संगठन के अनिल जे.धनवट, कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस के अध्यक्ष अशोक गुलाटी, साउथ एशिया एट इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट के निदेशक प्रमोद कुमार जोशी का समावेश था।

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