महाराष्ट्र की राजनीति में आया भूचाल सरकार के गृह मंत्री अनिल देशमुख के त्याग पत्र देने के बाद थमा हुआ भले ही दिख रहा हो, लेकिन यह एक बड़े तूफान आने से पहले की शांति हो सकती है। एक-एक कर भारतीय जनता पार्टी की सभी दिली इच्छाएं पूरी होती दिख रही हैं और उसकी अंतिम इच्छा यही है कि किसी भी तरह से वह तीन पहिए की प्रदेश की महाविकास आघाड़ी सरकार को उखाड़ फेंके और अपनी सरकार बनाए। उसकी यह इच्छा तभी पूरी हो सकती है, जब सरकार में शामिल तीनों पार्टियों में से कोई एक उसके साथ आ जाए।
महाराष्ट्र की वर्तमान राजनीति को देखते हुए भाजपा की पुरानी सहयोगी पार्टी शिवसेना के साथ आने की तो कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। दूसरी पार्टी कांग्रेस का भी उसके साथ आने या समर्थन देने का सवाल नहीं उठता। अब बची तीसरी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी। इस पार्टी को साथ आने की उम्मीद तो की ही जा सकती है।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से पवार की दोस्ती
राकांपा से भाजपा नेताओं को उम्मीद होने के पीछे कई कारण हैं। राकांपा प्रमुख शरद पवार से भाजपा के वरिष्ठ नेताओं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक की अच्छी दोस्ती है। राजनैतिक मतभेद के बावजूद इनके बीच एक सम्मानजनक रिश्ता है। इसलिए ये पार्टी का नाम लेकर तो एक दूसरे पर हमला करते हैं, लेकिन व्यक्तिगत हमले करने से प्रायः बचते हैं। यहां तक कि 2014 में हुए महाराष्ट् विधानसभा चुनाव के बाद राकांपा ने बिना शर्त भाजपा को समर्थन देने की घोषणा कर दी थी। इसके साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी शरद पवार के गृह नगर बारामती में जाकर पवार की आतिथ्य सेवा का भी लाभ उठाया था। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ ही अन्य राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के भाजपा नेता भी शरद पवार पर कोई भी टिप्पणी काफी सोच समझकर करते हैं।
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रविशंकर प्रसाद ने साधा उद्धव ठाकरे पर निशाना
भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मुंबई उच्च न्यायालय द्व्रारा मुंबई के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह की याचिका पर सीबीआई जांच को हरी झंडी देने के बाद सीएम उद्धव ठाकरे पर जमकर हमले किए। यहां तक कह दिया कि उन्हें अपनी जिम्मेदारी लेते हुए सीएम पद से त्याग पत्र दे देना चाहिए, लेकिन शरद पवार के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा, जबकि अनिल देशमुख राकांपा के कोटे से गृह मंत्री थे और उन्हें पवार का वरद हस्त प्राप्त था।
चर्चा में शाह-पवार मुलाकात
हाल ही में शरद पवार और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की खूब चर्चा हुई। महाराष्ट्र से दिल्ली तक इस बारे में तरह-तरह की बातें कही गईं,लेकिन शाह ने इस बारे में खुलकर कोई बात नहीं कही। यहां तक कि खुद पवार ने भी इस बारे में खुलकर कोई सफाई नहीं दी। हालांकि बाद में राकांपा सांसद और पवार की पुत्री सुप्रिया सुले ने यह दावा किया कि शाह और पवार की ऐसी कोई मुलाकात नहीं हुई है।
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प्रदेश भाजपा नेताओं के मीठे बोल
अब जरा 5 अप्रैल के मुंबंई उच्च न्यायालय के अनिल देशमुख प्रकरण में परमबीर सिंह के आरोप की सीबीआई जांच की मुहर लगने के बाद महाराष्ट्र के भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बयान पर गौर करते हैं। विधानसभा में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ ही अनिल देशमुख पर खुलकर निशाना साधा लेकिन शरद पवार को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया। हालांकि इन दोनों नेताओं ने पवार का कई बार नाम लिया लेकिन बहुत ही सम्मान के साथ। यही नहीं, उनके नाम के आगे अनुभवी, वरिष्ठ लगाना नहीं भूले।
शिवसेना से बढ़ती दूरी
शिवसेना से राकांपा की बढ़ती राजनैतिक दूरियां भी किसी से छिपी नहीं है। शिवसेना सांसद संजय राऊत अनिल देशमुख को एक्सीडेंटल गृह मंत्री बताकर देशमुख के साथ ही शरद पवार पर भी अप्रत्यक्ष रुप से निशाना साध चुके हैं। ऐसे में महाराष्ट्र की राजनीति में अगले कुछ महीनों में भाजपा और राकांपा की सरकार दिखे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। वैसे भी राजनीति संभावनाओं का खेल है। सभी नेता और पार्टियां संभावना तलाशते रहते हैं।
सबसे बड़ा आश्चर्य
महाराष्ट्र में सबसे बड़ा आश्चर्यजनक घटना तो तब घटी थी, जब नवंबर 2019 में शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस की सरकार बनी थी और 105 सीटों पर जीत हासिल कर भी भाजपा विपक्ष में बैठने पर मजबूर हो गई थी।