बिहार में नहीं बजी ‘तुतारी’

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बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार फिर शिवसेना का खाता नहीं खुल पाया और पार्टी की उम्मीदों पर पानी फिर गया। यहां तक कि ज्यादातर सीटों पर पिछली बार की तरह ही उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। पार्टी ने बिहार में 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार चुनावी अखाड़े में उतारने की तैयारी की थी, लेकिन बाद में सिर्फ 22 सीटों पर लड़ने का निर्णय लिया।

एक नगरसेवक तक चुनाव प्रचार करने नहीं गया
कहा जा रहा था शिवसेना के कार्यध्यक्ष उद्धव ठाकरे,आदित्य ठाकरे और संजय राऊत जैसे शिवसेना के बड़े मंत्री- नेता चुनाव प्रचार करने बिहार जाएंगे, लेकिन जब चुनाव प्रचार का वक्त आया तो पार्टी का एक नगरसेवक तक बिहार नहीं गया। इसका कारण भी समझना मुश्किल नहीं है। पार्टी नेताओं को मालूम था कि बिहार में उनकी पार्टी का जनाधार शून्य है। इस हाल में वहां जाकर चुनाव प्रचार करने का कोई फायदा नहीं होगा। इसलिए चुनाव से पहले पार्टी के सांसद संजय राऊत समेत अन्य नेताओं ने जो हवा बनाई थी, उसे जमीनी स्तर पर जरा भी उतारा नहीं गया और नतीजा वही निकला, जिसकी उन्हें और सबको उम्मीद थी।

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नहीं पसंद आया बिस्कुट
शुरुआत में चुनाव आयोग ने शिवसेना को बिस्कुट चुनाव चिह्न दिया था, लेकिन यह पार्टी नेताओं को पसंद नहीं आया और उन्होंने इस पर ऐतराज जताया। उसके बाद आयोग ने उनकी मांग मानते हुए तुरही चुनाव चिह्न प्रदान किया। शिवसेना के लिए शर्मनाक बात तो यह है कि पार्टी के उम्मीदवारों को 21 सीटों पर नोटा से भी कम वोट प्राप्त हुए।

तेजस्वी को लेकर राऊत का बड़ा बयान
अपनी पार्टी के उम्मीदवारों की करारी हार पर शिवसेना सांसद संजय राऊत को कोई मलाल नहीं है। उन्होंने कहा है, ’15 वर्षों का जंगल राज का अंत हो गया है। बिहार में अब मंगलराज का शुभारंभ हुआ है। वहां अब तेजस्वी लहर है। उन्हें जनता ने अपना समर्थन दिया है। 30 साल के इस युवक ने केंद्र को चुनौती दी है।’

बिहार में सोनिया-सेना को नोटा से भी कम वोट मिले हैं। चुनाव चिह्न के रुप में बिस्कुट ही अच्छा था। अनायास तुतारी की लाज लूट गई।

अतुल भातखलकर, बीजेपी विधायक

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