सर्वोच्च न्यायालय ने शिवसेना विवाद मामले में महाराष्ट्र के राज्यपाल पर सवाल उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा वह मामले में राज्यपाल की भूमिका को लेकर चिंतित है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा राज्यपाल को इस तरह विश्वास मत नहीं बुलाना चाहिए था।
कोर्ट ने कहा कि नया राजनीतिक नेता चुनने के लिए फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि किसी पार्टी में नीति संबंधी मतभेद है, तो क्या राज्यपाल विश्वास के वोट को साबित करने को कह सकते हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि उनको खुद यह पूछना चाहिए था कि तीन साल की सुखद शादी के बाद क्या हुआ। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने कैसे अंदाजा लगाया कि आगे क्या होने वाला है।
शिंदे गुटे के वकील हरीश साल्वे ने राज्यपाल के फैसले को ठहराया था सही
14 मार्च को एकनाथ शिंदे गुट की ओर से पेश वकील हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच से कहा था कि केवल सुप्रीम कोर्ट आ जाने से सबकुछ नहीं सुलझ सकता है। उन्होंने कहा था कि फ्लोर टेस्ट बुलाकर राज्यपाल ने कुछ भी गलत नहीं किया। लोकतंत्र को सदन के पटल पर ही चलने दें।
साल्वे ने कहा था कि अब कोर्ट इस्तीफा देने वाले मुख्यमंत्री को वापस पदासीन होने के लिए निर्देश नहीं दे सकता है। उन्होंने कहा कि जब भी कोई इस तरह की स्थिति हो तो राज्यपाल को विश्वास मत के लिए बुलाना चाहिए और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। एसआर बोम्मई मामले में भी यही स्थिति रखी गई है। फ्लोर टेस्ट बुलाकर राज्यपाल ने कुछ भी गलत नहीं किया। लोकतंत्र को सदन के पटल पर ही चलने दें।
शिंदे गुट की तरफ से वकील नीरज किशन कौल ने दलीलें देते हुए कहा था कि इस मामले में कानूनी तर्क यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट संविधान में दिए गए विधानसभा स्पीकर की शक्तियों को दरकिनार कर विधायकों की अयोग्यता पर फैसला दे सकता है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक पार्टी और विधायक दल दोनों आपस में जुड़े भी हैं और स्वतंत्र भी हैं। इसलिए दोनों को अलग भी नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि असहमति लोकतंत्र का हिस्सा है लेकिन इसके लिए यह तर्क देना भ्रामक है कि शिंदे गुट के विधायक सिर्फ विधायक दल का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं शिवसेना पार्टी का नहीं। कौल ने कहा कि चुनाव आयोग, राज्यपाल और विधानसभा स्पीकर इन तीनों संवैधानिक संस्थाओं के क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण उद्धव गुट की मंशा है, जो कि सही नहीं है।
शिंदे गुट के वकील महेश जेठमलानी ने उठाई थी शिवसेना में मतभेद की बात
शिंदे गुट की तरफ से वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि जबसे महाविकास आघाड़ी सरकार बनी, तबसे शिवसेना के अंदर इसका विरोध शुरू हो गया था। यह असंतोष 21 जून को गठबंधन के सहयोगियों के साथ लंबे समय से चले आ रहे वैचारिक मतभेद विभाजन के स्तर पर चला गया।
22 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना के चुनाव चिह्न के मामले में निर्वाचन आयोग के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि उद्धव ठाकरे गुट अस्थायी नाम और चुनाव चिह्न का इस्तेमाल जारी रख सकता है। कोर्ट ने एकनाथ शिंदे गुट और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने कहा था कि शिंदे गुट अभी ऐसा कुछ नहीं करेगा, जिससे उद्धव समर्थक सांसद और विधायक अयोग्य हो जाएं।
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