मुंबई। राकांपा प्रमुख शरद पवार मौनी बाबा बन गए हैं। ज्यादातर विवादास्पद मामलों में वे शांत रहते हैं। शांत रहकर ही वे सियासत में अपना शिकार करते हैं। सच कहें तो वे हर विवाद में अपना भला देखते हैं। इसी रणनीति की बदौलत उन्होंने महाराष्ट्र में अपनी पार्टी को पुनर्जीवित कर कांग्रेस, शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाई और इतिहास रच दिया। अपनी इसी खासियत के कारण दिनोंदिन वे अपना और अपनी पार्टी का भाव बढ़ाते चले जा रहे हैं तथा सरकार में शामिल सहयोगी पार्टियां शिवसेना तथा कांग्रेस का भाव अपने आप घटते चला जा रहा है। इसिलिए तो उन्हें राजनीति का चाचा चाणक्य माना जाता है। जो असंभव को संभव कर दे, उस शख्सियत का नाम शरद पवार है।
एसएसआर जांच में सेना लड़े सहयोगी शांत खड़े
मुंबई के हाई प्रोफाइल केस सुशांत सिंह राजपूत मामले में कुछ नहीं बोले, रिया मामले में भी मौन रहे। कंगना-शिवसेना विवाद पर भी चुप्पी साधे रहे। हां, जब कंगना के ऑफिस में इलिगल कन्स्ट्रक्शंस बताकर तोड़क कार्रवाई की गई तो कुछ बोल गए। लेकिन बोले तो ऐसा कि किसी को कुछ समझ में ही नहीं आया। पहले बोले, कार्रवाई गलत था। बाद में बोले कि अगर इसमें इलिगल काम हुआ था तो कार्रवाई सही था। जब सत्ता में भागीदार उनकी पार्टी शिवसेना से प्रेसर आया तो बोले कि यह कार्रवाई बीएमसी ने की है। शिवसेना का इससे कोई लेना-देना नहीं है।इसस पहले भी मुंबई और बिहार पुलिस के विवाद पर वे शांत ही रहे। फिर इसकी जांच सीबीआई को सौंपने के मामले में भी उन्होंने न मुंबई पुलिस का बचाव किया और शिवसेना का। जबकि शिवसेना सभी मामलों में आक्रामक रही। लोग आज भी समझ नहीं पाए हैं कि वे शिवसेना को इस मामले में सपोर्ट कर रहे हैं, या कंगना समर्थकों के साथ हैं। सच तो यह है कि वे किसी के साथ नहीं हैं और सबके भी साथ हैं।
सीएम और सरकार पर कंट्रोल
महाराष्ट्र में भले ही उन्हीं की बदौलत उनकी पार्टी राकांपा, शिवसेना और कांग्रेस की सरकार है। लेकिन शरद पवार का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आज भी मधुर संबंध हैं। उनकी शिवसेना के प्रबल विरोधी देवेंद्र फडणवीस से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी नहीं है। बात समझना मुश्किल नहीं है। वे अपने इस तरह के संबंध से शिवसेना और कांग्रेस को साधते रहते हैं। इन पार्टी के नेताओं को यह डर हमेशा सताते रहता है कि अगर हमारी सरकार गिर गई तो शरद पवार भाजपा के साथ मिलकर भी सरकार बना सकते हैं। इसलिए वे पवार साहब के पावर को सलाम करते हैं और उनकी दी गई हर सलाह पर अमल करना अपना धर्म समझते हैं। इसलिए कहा जाता है कि मुख्यमंत्री भले ही शिवसेना के कार्याध्यक्ष उद्धव ठाकरे हैं लेकिन रिमोट कंट्रोल तो पवार साहब के हाथ में ही है।
पवार का पॉवर गेम
शिवसेना ने कांग्रेस और राकांपा के साथ मिलकर भले ही सरकार बना ली। लेकिन इस सरकार के गठन में भी पवार क पावर का ही कमाल है। वर्ना एक दूसरे के कट्टर विरोधी पार्टियां कांग्रेस और शिवसेना को साथ लाना असंभव जैसा ही था। इस वजह से 35 साल पुराने दोस्त को तो शिवसेना को खोना ही पड़ा, साथ ही अपनी हिंदुत्व की नीति को भी ठंडे बस्ते में डालना पड़ा। ये दोनों ही मुद्दे ऐसे हैं, जिसका महाराष्ट्र की राजनीति में दूरगामी परिणाम होना तय है। भाजपा- शिवसेना दोनो की दोस्ती नेचुरल दोस्ती थी। दोनों के आचार-विचार मिलते थे लकिन शिवसेना ने जहां मुख्यमंत्री पद की अपनी जिद के कारण भाजपा से 35 साल की दोस्ती को तिलांजली दे दी, वहीं भाजपा ने भी दोस्ती का धर्म नहीं निभाया और नतीजा यह हुआ कि उसे सरकार से बेदखल होकर विपक्षी पार्टी बनना पड़ा। इस पूरे मामले में देखें तो भाजपा राकांपा की दुश्मन नंबर वन पार्टी होनी चाहिए, क्योंकि उसके नेता देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी के कद्दावर नेता और शरद पवार के भतीजे अजित पवार के साथ अन्य कथित रुप से 53 विधायकों को फोड़कर कुछ घंटो के लिए सरकार भी बना ली। हालांकि बाद में फडणवीस का दावा गलत निकलने पर उनके साथ अजित पवार की भी काफी छीछालेदर हुई। इस वजह भाजपा शरद पवार का दुश्मन नंबर वन होना चाहिए, लेकिन आज भी उनकी दोस्ती पीएम नरेंद्र मोदी से है और भाजपा के विरोध में वे ज्यादा कुछ बोलने से हमेशा बचते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि यह भी पवार का ही गेम था और उन्होंने ये गेम शिवसेना व कांग्रेस को साथ लाने के लिए खेला था।
दोनों हाथ मे लड्डू
ऐसी खूबी बहुत कम ही नेताओं में होती हैं। इसी वजह से शरद पवार का राजनीति के बाजार में भाव बढ़ा हुआ रहता है। उनके दोनों ही हाथ में लड्डू है। जबकि शिवसेना-भाजपा की लड़ाई महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से शुरू है और वह आज भी बदस्तूर जारी है। आज भी दोनों में वाक् युद्ध से लेकर राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता तक चलते रहती है। सुशांत सिंह राजपूत केस में भी भाजपा ने हमेशा से शिवसेना के विरोध में स्टैंड लिया है, चाहे उस से संबंधित रिया चक्रवर्ती से जुड़े मामले हों या कंगना रनौत का मामला हो। भाजपा ने शिवसेना की मुश्किलें हर जगह बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
सीनियर पवार के नक्शे कदम पर जूनियर पवार
ऐसा लगता है कि सीनियर पवार के भतीजे अजीत पवार भी उनके ही नक्शे कदम पर चल पड़े हैं। बताया जाता है कि आज भी उनकी महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से दोस्ती है और वे बीच-बीच में मंच भी शेयर करते रहते हैं। एक बार पुणे के एक कार्यक्रम में दोनों एक मंच पर बात करते देखे गए थे। बाद में जूनियर पवार ने कहा था कि वो फडणवीस से मौसम के बारे में बात कर रहे थे। इसी तरह हाल ही में शरद पवार और अजित पवार, केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता प्रकाश जावडेकर तथा चंद्रकांत पाटील के साथ देखे गए थे। उस दौरान अजित पवार चंद्रकांत पाटील से गले मिल रहे थे और खूब हंसी-मजाक भी कर रहे थे।
Join Our WhatsApp Community