शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी के संबंधों को लेकर चर्चा होती रहती है कि यह युति क्यों टूटी? यह प्रश्न शिवसेना कार्याध्यक्ष उध्दव ठाकरे के समक्ष भी है। एक मीडिया समूह से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि, शिवसेना हिंदुत्व के मुद्दे पर चुनाव लड़नेवाला पक्ष है। बालासाहेब के मतदान का अधिकार छीन लिया गया था। उस काल में शिवसेना और भाजपा दोनों ही दल अस्पृश्य थे। लेकिन दोनों ही दल साथ थे। परंतु, जब अच्छा समय आया तो अलग क्यों हो गए?
युति फिर करनी हो तो टूटी क्यों यह ढूढें
प्रमोद महाजन, गोपीनाथ मुंडे के साथ पारिवारिक संबंध थे, नरेंद्र मोदी के साथ भी अच्छे संबंध हैं। राजनीति में संबंधों को क्यों लाएं? लेकिन यदि भाजपा शिवसेना की युति फिर स्थापित करनी होगी तो भूतकाल को टटोलना पड़ेगा, अलग क्यों होना पड़ा यह ढूंढना पड़ेगा।
हममें मतभेद होते तो सरकार चलती कैसे?
तीन दलों की सरकार कभी बनेगी इसका विचार भी मेरे मन भी नहीं आया था। लेकिन इस राजनीतिक अनहोनी को साकार करना पड़ा। शिवसेना मन से काम कर रही है। भाजपा के साथ रहते हुए भी शिवसेना ने काम किया। युति से बाहर निकलने का विचार नहीं था। परंतु, अब आघाड़ी हो गई है, अच्छे कार्य करने के लिए एक साथ आना ही है, फिर युति हो या आघाड़ी। हम लोगों का हेतु जब तक स्वच्छ और स्पष्ट होगा तब तक आघाड़ी चलेगी। यदि हममें मतभेद होते तो सरकार ही नहीं चल पाती। इस सरकार के गठन के समय सबसे नया व्यक्ति मुख्यमंत्री यानि मैं था, फिर भी सरकार अच्छा कार्य कर रही है।
वडेट्टीवार को गलतफहमी हो गई
अभी भी प्रतिबंध हटाए नहीं गए हैं। हम लोगों की आपत्ति व्यवस्थापन समिति की बैठक थी। उसमें दसवीं, बारहवीं कक्षा से संबंधित निर्णय हुआ। यह निर्णय को घोषित करने के लिए कहा गया, इसी में विजय वडेट्टीवार को गलफहमी हो गई। उन्हें लगा कि प्रतिबंध हटाने को लेकर हुई चर्चा पर अंतिम निर्णय ले लिया गया है। इसलिए उन्होंने घोषित कर दिया। परंतु, प्रशासन को परिस्थिति का अंदाजा लेने को कहा गया था।
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कोरोना खतरे की घंटी
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि कोरोना खतरे की घंटी है, जिसे सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के दिमाग में बजना चाहिए। यदि वह नहीं बजी और हम इस काल में भी राजनीति करते रहेंगे, एक दूसरे पर आरोप करते रहेंगे, जनता की ओर ध्यान नहीं देंगे तो अराजकता की स्थिति बन जाएगी। हमें जनता का विचार करना चाहिए, अर्थव्यवस्था कैसे मजबूत होगी इसका विचार करना चाहिये। एक बार यह समय निकल गया तो राजनीति ही करनी है। लोगों की मौत हो रही है, कुर्सी देनेवाले ही जीवित नहीं रहेंगे तो कुर्सी पर बैठकर कोई क्या करेगा?