मुफ्त योजनाओं के बारे में वित्त आयोग से पूछताछ, सर्वोच्च न्यायालय का बड़ा कदम

मुफ्त रेवड़ियां बांटकर सरकारी तिजोरी पर राजनीतिक पार्टियां अतिरिक्त बोझ डालती हैं। इस पर रोक लगाकर जनता के विकास के कार्यों को बल दिया जा सकता है।

107

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव के दौरान मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त में उपहार देने वाली घोषणाएं करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता खत्म करने की मांग पर सुनवाई करते हुए केंद्र से कहा है कि वह वित्त आयोग से पता लगाए कि पहले से कर्ज में डूबे राज्य में मुफ्त की योजनाओं का अमल रोका जा सकता है या नहीं। मामले की अगली सुनवाई 3 अगस्त को होगी।

कोर्ट ने 25 जनवरी को केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया था। याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दल मतदाताओं को गलत तरीके से अपने पक्ष में लुभाने के लिए मुफ्त में उपहार देने की घोषणाएं करती हैं। ऐसा करना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए एक बाधा है। ऐसा करना भारतीय दंड संहिता की धारा 171बी और 171सी के तहत अपराध है।

यह भी पढ़ें – 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी शुरू, रेस में ये दो दिग्गज कंपनियां

याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट निर्वाचन आयोग को दिशानिर्देश जारी करे कि वो राजनीतिक दलों के लिए एक अतिरिक्त शर्त जोड़े कि वो मुफ्त में उपहार देने की घोषणाएं नहीं करेंगी। याचिका में कहा गया है कि आजकल एक राजनीतिक फैशन बन गया है कि राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में मुफ्त बिजली की घोषणा करते हैं। ये घोषणाएं तब भी की जाती हैं जब सरकार लोगों को 16 घंटे की बिजली भी देने में सक्षम नहीं होते हैं। याचिका में कहा गया है कि मुफ्त की घोषणाओं का लोगों के रोजगार, विकास या कृषि में सुधार से कोई लेना-देना नहीं होता है लेकिन मतदाताओं को लुभाने के लिए ऐसी जादुई घोषणाएं की जाती है।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.