प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट: सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को 12 दिसंबर तक जवाब दाखिल करने का समय दिया

12 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर 31 अक्टूबर तक जवाब दाखिल करे। 9 सितंबर को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।

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प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जवाब देने के लिये केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से और वक्त दिए जाने की मांग की। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अभी सरकार में उच्च स्तर पर विमर्श जारी है। उसके बाद कोर्ट ने सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 12 दिसंबर तक का वक्त दिया। मामले की अगली सुनवाई जनवरी के पहले हफ्ते में होगी।

12 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर 31 अक्टूबर तक जवाब दाखिल करे। 9 सितंबर को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने जमीयत उलेमा ए हिंद की कानून के समर्थन में दाखिल याचिका पर भी नोटिस जारी किया था।

बता दें कि 8 सितंबर को काशी नरेश विभूति नारायण सिंह की बेटी कुमारी कृष्ण प्रिया ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली नयी याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि काशी रियासत के पूर्व शासक काशी में सभी मंदिरों के मुख्य संरक्षक थे, इसलिए काशी शाही परिवार की तरफ से उनके पास इस अधिनियम को चुनौती देने का अधिकार है।

एक याचिका वकील करुणेश कुमार शुक्ला ने दायर की है। करुणेश कुमार शुक्ला अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर में पुजारी भी रह चुके हैं। करुणेश शुक्ला कृष्ण जन्मभूमि मामले में मुख्य याचिकाकर्ता हैं और रामजन्मभूमि मामले में भी मुख्य भूमिका निभा चुके हैं। करुणेश शुक्ला के पहले प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को कई याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। एक याचिका 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ने वाले रिटायर्ड कर्नल अनिल कबोत्रा ने याचिका दाखिल की है।

याचिका में कहा गया है कि यह कानून विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा अवैध तरीके से पौराणिक पूजा, तीर्थस्थलों पर कब्जा करने को कानूनी दर्जा देता है। याचिका में कहा गया है कि हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध को अपने धार्मिक स्थलों पर पूजा करने से रोकता है। इसके पहले मथुरा के धर्मगुरु देवकीनंदन ठाकुर ने भी याचिका दायर कर प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को चुनौती दी है। 26 मई को वकील रुद्र विक्रम सिंह ने भी याचिका दायर कर कहा है कि 15 अगस्त 1947 की मनमानी कटऑफ तारीख तय कर अवैध निर्माण को वैधता दी गई। याचिका में कहा गया है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा 2, 3 और 4 असंवैधानिक है। ये धाराएं संविधान की धारा 14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करती हैं। ये धाराएं धर्मनिरपेक्षता पर चोट पहुंचाती हैं जो संविधान के प्रस्तावना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

बता दें कि 25 मई को वाराणसी के स्वामी जितेंद्रानंद ने याचिका दायर कर इस एक्ट को चुनौती दी है। स्वामी जीतेंद्रानंद ने कहा है कि सरकार को किसी समुदाय से लगाव या द्वेष नहीं रखना चाहिए। लेकिन उसने हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख को अपना हक मांगने से रोकने का कानून बनाया है।

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली एक याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने भी याचिका दायर की है। 12 मार्च 2021 को मामले में अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी हुआ था। याचिका में कहा गया है कि 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 वाली बनाए रखने को कहता है। यह हिंदू , सिख , बौद्ध और जैन समुदाय को अपने पवित्र स्थलों पर पूजा करने से रोकता है। इस एक्ट में अयोध्या को छोड़कर देश मे बाकी धार्मिक स्थलों का स्वरूप वैसा ही बनाए रखने का प्रावधान है, जैसा 15 अगस्त 1947 को था।

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हिंदू पुजारियों के संगठन विश्व भद्र पुजारी महासंघ ने भी इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। विश्व भद्र पुजारी महासंघ की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। विश्व भद्र पुजारी महासंघ की याचिका का विरोध करते हुए जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। एक याचिका सुब्रमण्यम स्वामी ने भी दायर की है।

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