दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं को कौन नियंत्रित करेगा, ऐसा सवाल पिछले कई वर्षो से उठता रहा है। इस कारण अरविंद केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल के बीच वर्षों तक खींचतान चली आ रही थी। लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि प्रशासनिक सेवाओं पर यानी अधिकारियों की नियुक्तियां और तबादले का अधिकार चुनी हुई केंद्र शासित प्रदेश सरकार का है। इसे एलजी और केंद्र सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
किन बातों को लेकर थीं केजरीवाल सरकार और एलजी में संघर्ष, आईए जानते हैं 10 बिंदू
1-भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस बात पर विचार कर रही थी कि राष्ट्रीय राजधानी में सिविल सेवकों के स्थानांतरण और पोस्टिंग पर प्रशासनिक नियंत्रण केजरीवाल सरकार या केंद्र सरकार का होना चाहिए?
2 -इस मामले की जड़ें 2018 से जुड़ी हुई थीं, जब अरविंद केजरीवाल सरकार न्यायालय में गई थी। उसका तर्क था कि उसके फैसलों को उपराज्यपाल द्वारा लगातार ओवरराइड किया जा रहा था, जो दिल्ली में केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं। दिल्ली सरकार ने न्यायालय को बताया था कि 3 नौकरशाहों की नियुक्तियां रद्द कर दी गईं, फाइलों को मंजूरी नहीं दी गई और बुनियादी निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न की गई।
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4 -अगले साल एक ऐतिहासिक फैसले में, शीर्ष न्यायालय ने कहा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार बॉस है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था से जुड़े मुद्दों को छोड़कर, उपराज्यपाल के पास संविधान के तहत “कोई स्वतंत्र निर्णय लेने के अधिकार नहीं हैं”।
5- न्यायालय ने कहा कि उपराज्यपाल का काम निर्वाचित सरकार की सहायता करना और सलाह देना है। वह केंद्र शासित प्रदेश की सरकार के फैसले पर रोक नहीं लगा सकता।
6 बाद में, एक नियमित पीठ ने सेवाओं सहित व्यक्तिगत पहलुओं से संबंधित अपीलों पर विचार किया। उसके बाद तीन जजों की बेंच ने केंद्र के अनुरोध पर इस मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया।
7- जनवरी 2023 में संविधान पीठ द्वारा सुनवाई के दौरान, जब केंद्र ने तर्क दिया था कि केंद्र शासित प्रदेश होने का उद्देश्य यह था कि केंद्र प्रशासनिक सेवाओं पर अपना अधिकार रखना चाहता है। इस पर न्यायालय ने केंद्र से पूछा था कि फिर दिल्ली में चुनी हुई सरकार का क्या मतलब है।
8- संविधान पीठ द्वारा अपना फैसला सुरक्षित रखने से ठीक पहले केंद्र ने मामले में एक बड़ी पीठ के समक्ष सुनवाई की मांग की थी। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इस तरह का अनुरोध शुरुआत में ही किया जाना चाहिए था और अगर ऐसा किया गया होता तो वह इस मामले को अलग तरह से देखते।
9- 2014 में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने के बाद से ही प्रशासन पर अधिकार को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच संघर्ष जारी है।
10-अधिकारियों के तबादले और नियुक्तियां केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव के बिंदुओं में से एक थी। केजरीवाल अक्सर शिकायत करते थे कि वे एक “चपरासी” भी नियुक्त नहीं कर सकते या किसी अधिकारी का तबादला नहीं कर सकते। उन्होंने यह भी कहा कि नौकरशाहों ने उनकी सरकार के आदेशों का पालन नहीं किया, क्योंकि उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय से नियंत्रित किया जाता है।
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