सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि वह आपराधिक मामले में सजायाफ्ता लोगों (convicted persons) को आजीवन चुनाव न लड़ने देने की मांग पर अलग से सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली बेंच ने साफ किया कि इन नेताओं का मुकदमा तेजी से निपटाने की मांग पर आदेश सुरक्षित रखा जा चुका है। सजायाफ्ता को चुनाव लड़ने से रोकने पर भी जल्द सुनवाई की जाएगी।
आजीवन प्रतिबंध के पक्ष में एमिकस क्यूरी
सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त एमिकस क्यूरी (amicus curiae) ने अपनी रिपोर्ट में दोषी करार दिए गए राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाए जाने का समर्थन किया है। अभी जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के मुताबिक सजा की अवधि पूरे हो जाने के बाद अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर ही रोक है। एमिकस क्यूरी का कहना है कि चुनाव लड़ने की अयोग्यता को इतने वक़्त तक सीमित करना समानता के अधिकार का हनन है, ऐसे राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाना चाहिए।
देश भर में लंबित हैं 5175 केस
सांसदों और विधायकों के खिलाफ कुल कितने केस लंबित हैं, इसकी जानकारी भी एमिकस क्युरी की ओर से पेश रिपोर्ट में दी गई है। विभिन्न हाई कोर्ट की ओर से उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक नवंबर 2022 तक देश भर में जनप्रतिनिधियों के खिलाफ 5175 केस लंबित हैं। इनमे सबसे ज्यादा 1377 केस यूपी में लंबित हैं। इसके बाद नंबर बिहार का है, जहां 546 केस लंबित हैं।
बीजेपी नेता ने दायर की है याचिका
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट सजायाफ्ता नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है। यह याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सांसदों और विधायकों को दोषी पाए जाने पर उनके आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की गई है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत जघन्य अपराधों में दोषी आए जाने पर सांसदों या विधायकों को केवल छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक है।
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