डॉ. भागवत ने छत्रपति के स्वराज को बताया संघ का हिंदू राष्ट्र, राजनीतिक पार्टियों को दी ये सलाह

492

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक को 350 वर्ष पूरे हो रहे हैं। छत्रपति द्वारा स्थापित स्वराज ही संघ का हिंदू राष्ट्र है।

नागपुर के रेशमबाग में आयोजित संघ के तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सरसंघचालक ने बताया कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने राष्ट्र की स्वतंत्रता की घोषणा की थी और उसी से हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की थी। शिवाजी महाराज ने देश के प्राचीन मूल्यों को जगाया। गोहत्या बंद कराई। मातृभाषा में व्यवहार करने लगे। स्वराज्य में मजबूत नौसेना की स्थापना की। उन्होंने जनता को एकजुट किया। उन लोगों की रक्षा की, जो देश के प्रति वफादार थे।

औरंगजेब को पत्र भेजकर दी थी चेतावनी
औरंगज़ेब द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर को नष्ट करने के बाद, शिवाजी ने औरंगजेब को पत्र भेजा था। उस पत्र मे शिवाजी ने कहा था कि राजा को धर्म के आधार पर प्रजा में भेदभाव नहीं करना चाहिए। सभी के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। छत्रपति ने औरंगजेब को चेताया था कि यदि प्रजा के साथ धार्मिक आधार पर भेदभाव हुआ तो वे तलवार लेकर उत्तर भारत पहुंचेंगे।

हिंदू राष्ट्र की अवधारणा की जडे़ं शिवाजी महाराज के स्वराज में समाहित
भागवत ने बताया कि अपनी भाषा, संस्कृति और प्राचीन मूल्यों को बचाए रखते हुए देश को मातृभूमि मानने वाले सभी लोगों का स्वराज्य में स्थान और संरक्षण था। बतौर डॉ भागवत संघ के हिंदू राष्ट्र की अवधारणा की जडे़ं शिवाजी महाराज के स्वराज में समाहित है।

ठाकरे परदेश में, देश में मुख्यमंत्री और पवार की भेंट! क्या है संकेत?

सत्ता की होड़ गलत नहीं
इस अवसर पर नेताओं और राजनीतिक पार्टियों पर विचार रखते हुए डॉ भागवत ने कहा कि राजनीतिक दलों के बीच सत्ता के लिए होड़ गलत नहीं है। प्रतियोगिता का अर्थ है संघर्ष लेकिन हमें इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि हम क्या करते हैं, क्या कहते हैं, कहां और कैसे कहते हैं। सत्ता के लिए राजनीतिक मतभेदों और प्रतिस्पर्धा को भी सीमा की आवश्यकता होती है।

राजनेताओं को सलाह
सरसंघचालक ने कहा कि राजनेताओं को सावधानी बरतनी चाहिए। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके क्रियाकलापों से देश का नाम खराब न हो। सरसंघचालक ने आह्वान किया कि अपनी छोटी सी धार्मिक पहचान बरकरार रखने के लिए बेवजह की जिद करना ठीक नहीं। बाहरी मुल्कों से भारत में आए धर्मों के अनुयायियों को यह वास्तविकता स्वीकारनी चाहिए कि उनके पुर्खे यहीं के हैं। जो बाहर से आए थे, वह चले गए। अब जो शेष बचे हैं वह सभी हमेशा से हमारे अपने हैं।

संघ की सेवा निःस्वार्थ
सरसंघचालक ने कहा कि हमे इस सत्य को स्वीकार कर आपसी संघर्ष छोड़ना होगा। भागवत ने बताया कि संघ 1925 से निरंतर रूप से देश और समाज के हित में काम कर रहा है। संघ को किसी से कुछ नहीं चाहिए। संघ किसी कार्य का श्रेय भी लेना नहीं चाहता। समाज और स्वयंसेवक मिलकर अच्छा काम कर रहे हैं। इसी तर्ज पर देश के सभी लोगों के इकट्ठा होने से हमारी तरक्की होगी। बतौर भागवत सभी के प्रयासों से देश आगे बढ़ेगा इसके अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है।

संघ का कार्य राष्ट्रीय कार्य
इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विश्ववीरी कडसिद्धेश्वर स्वामी ने कहा कि संघ का कार्य राष्ट्रीय कार्य है और जो कुछ भी देश और समाज के उत्थान के लिए आवश्यक है वह कार्य संघ और स्वयंसेवक द्वारा किया जाता है। इस अवसर पर उन्होंने देश के साधु-संतों से संघ के कार्यों में योगदान देने और देश को परम वैभव प्राप्त करने में सहयोग करने का आह्वान किया।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.