Modi-Jinping talks: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 23 अक्टूबर को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय वार्ता में सीमा पर शांति के लिए विवादों को सुलझाने पर जोर दिया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने करीब साढ़े चार वर्ष बाद कज़ान में 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के अवसर पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय वार्ता की।
समझौते का स्वागत
प्रधानमंत्री ने वार्ता में भारत-चीन सीमा पर पूर्वी लद्दाख में सैनिकों को अग्रिम मोर्चे से पीछे हटाने तथा वर्ष 2020 में पैदा हुए मसलों के समाधान संबंधी समझौते का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि भारत और चीन को अपने मदभेदों और विवादों को समुचित रूप से सुलझाना चाहिए ताकि सीमा पर शांति और सामान्य स्थिति विपरीत रूप से प्रभावित न हो।
दोनों नेता सहमत
विदेश मंत्रालय के अनुसार वार्ता में दोनों नेताओं ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि सीमा पर शांति और सामान्य स्थिति के प्रबंधन पर गौर करने तथा सीमा संबंधी मुद्दों पर विचार करने के लिए दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधि शीघ्र मिलेंगे। इस बैठक में सीमा संबंधी मुद्दों के निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान तलाशने पर विमर्श होगा।
इसके साथ ही इस पर पर भी सहमति बनी कि विदेश मंत्रियों और अन्य अधिकारियों के स्तर पर प्रासंगिक संवाद तंत्र का उपयोग द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर और दोबारा सामान्य करने के लिए भी किया जाएगा।
दोनों नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि भारत और चीन के बीच स्थिर और सोहार्द्रपूर्ण संबंधों से क्षेत्रीय ही नहीं बल्कि विश्व शांति और समृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। दो पड़ोसी और दुनिया के दो सबसे बड़े देशों के बीच बेहतर संबंधों से बहुध्रुवीय एशिया और बहुध्रुवीय विश्व को बल मिलेगा।
इस बात पर जोर
दोनों नेताओं ने इस बात पर भी बल दिया कि द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक और दीर्घगामी दृष्टिकोण से आगे बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए रणनीतिक आपसी संपर्क और विकास संबधी चुनौतियों का सामना करने के लिए सहयोग के उपाय तलाशने चाहिए।
2019 में की थी वार्ता
वर्ष 2019 के अक्टूबर में महाबलिपुरम में शिखरवार्ता के बाद यह पहला अवसर था, जब दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय वार्ता की। मई–जून 2020 में पूर्वी लद्दाख गलवान घाटी क्षेत्र में सैनिक झड़प के बाद से ही वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव और टकराव की स्थिति थी। कजान शिखरवार्ता के ठीक पहले दोनों देशों ने टकराव के मुद्दों का समाधान करने के लिए एक समझौता किया था, जिसके आधार पर क्षेत्र में सैनिक गश्त के तौर-तरीकों पर सहमति बनी थी।