Tamil Nadu: तमिलनाडु में हिंदी विरोध का रुख,जरुरी या राजनीतिक मजबूरी?

जो तमिलनाडु और पूरे देश के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। यहां हम NEP के समर्थक दृष्टिकोण से इसके लाभों पर चर्चा करेंगे और इसे राज्य की शिक्षा नीति में समाहित करने की आवश्यकता पर बल देंगे।

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-अंकित तिवारी

Tamil Nadu: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP) ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक नई दिशा दी है, और यह सभी राज्यों के लिए समग्र और समान अवसर प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। तमिलनाडु में हालांकि NEP के खिलाफ विरोध आवाज़ें उठी हैं, लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि इस नीति में कई ऐसे पहलू हैं।

जो तमिलनाडु और पूरे देश के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। यहां हम NEP के समर्थक दृष्टिकोण से इसके लाभों पर चर्चा करेंगे और इसे राज्य की शिक्षा नीति में समाहित करने की आवश्यकता पर बल देंगे।

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NEP की आवश्यकता और लाभ
NEP 2020 का मुख्य उद्देश्य भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार करना और उसे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है। इस नीति में शिक्षा के विभिन्न पहलुओं को प्राथमिकता दी गई है, जैसे कि उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा, कौशल विकास और भाषाओं का विविधता में समावेश। यह नीति छात्र केंद्रित है और शिक्षा को अधिक समावेशी बनाने का प्रयास है।

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तीन-भाषा नीति का समर्थन क्यों?
तमिलनाडु ने अब तक दो-भाषा नीति को अपनाया है, लेकिन NEP के तहत तीन-भाषा नीति को लागू करने से कई लाभ हो सकते हैं। यह नीति छात्रों को अधिक भाषाई कौशल प्रदान करती है और उन्हें भारतीय संस्कृति और विविधता के प्रति जागरूक करती है। तमिलनाडु में हिंदी विरोध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है, लेकिन यह जरूरी है कि अब हम हिंदी को एक अनिवार्य भाषा के रूप में न देखें, बल्कि इसे एक भाषा के रूप में स्वीकार करें, जिसे छात्रों को सीखने का अवसर मिलना चाहिए।

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तीसरी भाषा के रूप में कई विकल्प
NEP में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी, तमिल, संस्कृत, या अन्य भारतीय भाषाओं को चुनने का विकल्प दिया गया है, जिससे यह छात्रों को अपनी पसंद की भाषा सीखने का अवसर प्रदान करता है। इससे भाषा की समृद्धि को बढ़ावा मिलता है और छात्रों को विभिन्न भाषाओं में पारंगत बनने का अवसर मिलता है।

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विरोध स्टालिन सरकार की मजबूरी
तमिलनाडु में NEP के समर्थन के कई कारण हैं। हालांकि वहां की एम के स्टालिन सरकार हिंदी का विरोध कर रही है। विरोध करना उसके लिए कितनी जरुरी है, इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ा जवाब उसकी राजनीतिक मजबूरी है।

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भाषाई विविधता को बढ़ावा
NEP का मुख्य उद्देश्य भारतीय भाषाओं की समृद्धि को बढ़ावा देना है। यह छात्रों को एक से अधिक भारतीय भाषाओं में पारंगत करने की दिशा में मदद करता है। तमिलनाडु को इस बहुभाषी दृष्टिकोण से फायदा हो सकता है क्योंकि यह भाषा की विविधता को मान्यता देती है और छात्रों को अलग-अलग भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करने का अवसर देती है।

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वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वृद्धि
अंग्रेजी और हिंदी जैसी प्रमुख भाषाओं का ज्ञान छात्रों को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बनाता है। तमिलनाडु के छात्र यदि हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में सक्षम होते हैं, तो वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर अवसरों का लाभ उठा सकते हैं।

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शैक्षिक असमानताओं को कम करने का प्रयास
NEP की संरचना छात्रों को विभिन्न शैक्षिक अवसर प्रदान करने के लिए है, चाहे वह शिक्षा का कोई भी क्षेत्र हो। यह नीति शैक्षिक असमानताओं को कम करने के लिए बनाई गई है, जो तमिलनाडु में वंचित वर्गों के लिए लाभकारी हो सकती है।

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कौशल विकास
NEP में कौशल आधारित शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है। यह छात्रों को रोजगार योग्य बनाने के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करने पर जोर देती है। तमिलनाडु में यह कौशल विकास पहल राज्य के युवा छात्रों के लिए विशेष रूप से लाभकारी हो सकती है, क्योंकि यह उन्हें दुनिया भर के कार्यक्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार करेगा।

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स्थानीय और राष्ट्रीय दृष्टिकोण का संतुलन
तमिलनाडु की दो-भाषा नीति में स्थानीय भाषा के साथ अंग्रेजी को प्रोत्साहित किया गया है, और NEP इसी संतुलन को बनाए रखने की कोशिश करती है। NEP में तीसरी भाषा के रूप में किसी भारतीय भाषा का विकल्प देने से स्थानीय भाषाओं की महत्ता भी बनी रहती है।

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NEP के पक्ष में राजनीतिक दलों का रुख
तमिलनाडु में, राज्य सरकार और अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच NEP को लेकर विरोध हो सकता है, लेकिन यह बात साफ है कि इस नीति में छात्रों के लिए बेहतर शिक्षा और अवसर प्रदान करने का उद्देश्य है। केंद्र सरकार का यह प्रयास है कि देश के प्रत्येक नागरिक को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके और हर राज्य अपनी खासियतों को बनाए रखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा मानकों के अनुसार एकजुट हो।

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छात्रों को मिलेगा विश्व स्तर पर अवसर
NEP को राज्य की शिक्षा नीति के साथ मिलाकर कार्यान्वित करने से तमिलनाडु को और अधिक प्रगति की दिशा में अग्रसर किया जा सकता है। NEP में जो लचीलापन दिया गया है, वह तमिलनाडु की विशेष भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखते हुए राज्य के छात्रों के लिए वैश्विक स्तर पर अवसर पैदा कर सकता है।

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समर्थन जरुरी
तमिलनाडु को अपने इतिहास और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखते हुए NEP का समर्थन करना चाहिए। यह नीति शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने और छात्रों को बेहतर भविष्य देने के लिए आवश्यक है। तीन-भाषा नीति को समझदारी से लागू किया जा सकता है, जिससे राज्य की विशिष्टता को नुकसान न हो, बल्कि उसे और अधिक मजबूती मिले। NEP को अपनाकर तमिलनाडु अपने छात्रों के लिए एक उज्जवल और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित कर सकता है।

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कहां से शुरू हुआ विवाद?
तमिलनाडु सरकार ने 2020 में जारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध किया, खासकर भाषा नीति को लेकर। NEP के तहत तीसरी भाषा को कोई भी भारतीय भाषा हो सकती है, लेकिन राज्य इसे हिंदी को अप्रत्यक्ष रूप से लागू करने की साजिश मानता है। इसके अलावा, NEP के तहत राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर एक समान मानक की बात की गई है, जो संविधान की समवर्ती सूची में आता है, और चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम के प्रस्ताव से राज्य को यह चिंता है कि इससे छात्रों की ड्रॉप-आउट दर बढ़ सकती है। तमिलनाडु का मानना है कि NEP से वंचित वर्गों के छात्रों के लिए अनुकूल परिस्थितियां नहीं बन पाएंगी।

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ताजा टकराव का कारण
15 फरवरी को केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा था कि तमिलनाडु जैसे राज्य जो NEP 2020 को लागू नहीं करेंगे, उन्हें समग्र शिक्षा योजना (Samagra Shiksha) के तहत फंड नहीं दिए जाएंगे। यही बयान तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच भाषा मुद्दे पर एक नया विवाद पैदा करने का कारण बना। मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने प्रधान के बयान का जवाब देते हुए कहा कि तमिलनाडु केंद्र के दबाव में आकर तीन-भाषा नीति को लागू नहीं करेगा। स्टालिन ने यह भी कहा कि तमिलनाडु हिंदी सीखने का विरोध नहीं कर रहा, बल्कि हिंदी को लागू करने का विरोध कर रहा है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि अगर तमिलनाडु केंद्र को टैक्स देना बंद कर दे, तो क्या होगा?

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राजनीतिक दलों की राय है
तमिलनाडु में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों का इस मामले पर एकमत रुख है, सिवाय भारतीय जनता पार्टी (BJP) के। राज्य की दो-भाषा नीति का समर्थन तमिलनाडु की सभी प्रमुख पार्टियाँ करती हैं। बीजेपी एकमात्र पार्टी है जो तीन-भाषा फार्मूला का समर्थन करती है। पार्टी का कहना है कि राज्य सरकार के स्कूलों के छात्रों को भी CBSE स्कूलों की तरह एक भारतीय भाषा सीखने का मौका मिलना चाहिए। बीजेपी का यह मानना है कि NEP में हिंदी को अनिवार्य रूप से लागू करने की कोई बात नहीं की गई है, और इसका विरोध करना गलत है।

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