पिछड़ा वर्ग को अपने पाले में करने को लेकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच तल्खियां बढ़ती जा रही हैं। वहीं तल्खियां बढ़ने का एक कारण और है, भविष्य में सीट बंटवारे को लेकर दोनों पार्टियां अधिकतम सीटें अपने पाले में रखना चाहती हैं। यह भी संभव है कि सीट को लेकर दोनों में तारतम्य न बन पाए।
अखिलेश यादव ने कांग्रेस को घेरा
अभी 5 नवबंर को एक तरफ अखिलेश यादव ने जातीय जनगणना न होने देने का आरोप कांग्रेस पर लगाया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ओबीसी आरक्षण न देने में भी कांग्रेस हाथ रहा है। वहीं ओबीसी को अपने पाले में लाने की रणनीति के तहत कांग्रेस ने जातिगत जनगणना कराने के लिए पूरे प्रदेश में हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया। ‘इंडिया’ गठबंधन की दोनों पार्टियां यह बताने में लगी हैं कि वे स्वयं ओबीसी के सर्वाधिक करीब हैं। उनके दुख-दर्द में वे सहभागी हैं। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस समाजवादी पार्टी के लोगों को भी तोड़ने में लगी हुई हैं। दोनों का मुख्य वोटर का आधार ओबीसी ही है। ऐसे में कैसे गठबंधन कायम रह पाएगा। यह आने वाला समय ही बताएगा।
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लोकसभा चुनाव में दोनों होंगी आमने-सामने
दूसरी तरफ दोनों पार्टियों ने अपने-अपने कार्यकर्ताओं को प्रदेश के सभी अस्सी लोकसभा सीटों पर चुनावी तैयारी के लिए बोल दिया है। समाजवादी पार्टी के मुखिया ने तो कह दिया है कि गठबंधन की स्थिति में भी हम उप्र की 56 सीटों पर अवश्य चुनाव लड़ेंगे। वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय भी सभी सीटों पर चुनावी तैयारी की घोषणा कर दी है।
कांग्रेस के पास दो विकल्प
राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह का कहना है कि कांग्रेस दो आप्शन लेकर चल रही है। एक तरफ सपा का साथ जगजाहिर है। वहीं दूसरी तरफ वह यह भी दिखाने की कोशिश में है कि यदि सपा का साथ नहीं मिला तो वह बसपा के साथ गठबंधन कर सकती है। यह दबाव बनाने की रणनीति है। वह इसमें सफल होती भी दिख रही है। यही कारण है कि न चाहते हुए भी अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ रहने को मजबूर दिख रहे हैं, क्योंकि यदि कांग्रेस बसपा के साथ चली गयी तो सबसे ज्यादा समाजवादी पार्टी को ही घाटा उठाना पड़ेगा।