राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने दृढ़ विश्वास के साथ कहा कि हमारा देश 21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए सक्षम हो रहा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 युवा भारतीयों को अपनी विरासत से जोड़ने और 21वीं सदी में अपने पैर पसारने में काफी मदद करेगी।
राष्ट्रपति कोविन्द ने 24 जुलाई को राष्ट्र के नाम अपने विदाई संबोधन में जलवायु संकट का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रकृति मां गहरी पीड़ा में है। जलवायु संकट इस ग्रह के भविष्य को खतरे में डाल सकता है। जलवायु परिवर्तन का संकट हमारी धरती के भविष्य के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है। हमें अपने बच्चों की खातिर अपने पर्यावरण, अपनी जमीन, हवा और पानी का संरक्षण करना चाहिए। अपने दैनिक जीवन और नियमित विकल्पों में, हमें प्रकृति के साथ-साथ अन्य सभी जीवित प्राणियों की रक्षा के लिए अधिक सावधान रहना चाहिए।
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राष्ट्रपति ने देशवासियों और जनप्रतिनिधियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की
राष्ट्रपति ने देशवासियों और जनप्रतिनिधियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि पांच साल पहले आपने मुझ पर अपना विश्वास जताया और मुझे राष्ट्रपति के रूप में चुना। 25 जुलाई मेरा कार्यकाल पूरा हो रहा है। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने कार्यकाल के दौरान समाज के सभी वर्गों से पूर्ण सहयोग, समर्थन और आशीर्वाद मिला। उन्होंने कहा, “कानपुर देहात जिले के परौंख गांव के अति साधारण परिवार में पला-बढ़ा रामनाथ कोविन्द 25 जुलाई आप सभी देशवासियों को संबोधित कर रहा है। इसके लिए मैं अपने देश की जीवंत लोकतांत्रिक व्यवस्था की शक्ति को शत-शत नमन करता हूं।”
परंपरा को आगे बढ़ाने की अपील
राष्ट्रपति ने अपने कार्यकाल के दौरान अपने पैतृक गांव के दौरे का स्मरण करते हुए कहा कि अपने विद्यालय में वयोवृद्ध शिक्षकों का आशीर्वाद लेना उनके जीवन के सबसे यादगार पलों में शामिल रहेंगे। अपनी जड़ों से जुड़े रहना भारतीय संस्कृति की विशेषता है। उन्होंने युवा पीढ़ी से अपने गांव या नगर तथा अपने विद्यालयों और शिक्षकों से जुड़े रहने की इस परंपरा को आगे बढ़ाने की अपील की।
भारत का संविधान, हमारा प्रकाश-स्तम्भ
आजादी के नायकों को भुला देने का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि अब उनकी वीर-गाथाओं को आदर सहित याद किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संविधान सभा के सदस्यों के अमूल्य योगदान से निर्मित भारत का संविधान, हमारा प्रकाश-स्तम्भ रहा है। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे पूर्वजों और हमारे आधुनिक राष्ट्र-निर्माताओं ने अपने कठिन परिश्रम और सेवा भावना के द्वारा न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता के आदर्शों को चरितार्थ किया था। हमें केवल उनके पदचिह्नों पर चलना है और आगे बढ़ते रहना है।