संसद के मानसून सत्र में पारित कृषि सुधार विधेयकों को लेकर गठबंधन के दलों के तीव्र विरोध को लेकर महाराष्ट्र सरकार ने यू टर्न ले लिया है। राज्य सरकार ने पहले अध्यादेश लाकर कृषि सुधार संशोधन को केंद्र सरकार के पास कराने के पहले ही महाराष्ट्र में लागू कर दिया था। लेकिन अब इसे रद्द कर दिया है।
7 अगस्त को हुआ था अध्यादेश जारी
वास्तव में, महाराष्ट्र शासन पणन (मार्केंटिंग) विभाग के उपसचिव श्री वल्वी ने 7 अगस्त 2020 को ही मार्केटिंग निदेशक सतीश सोनी को अध्यादेश जारी कर इस पर अमल करने के लिए कहा था। उसके तहत मार्केटिंग निदेशक ने 10 अगस्त को ही राज्य की सभी मंडियों को आदेश जारी किया कि राज्य में प्रस्तावित कानून के तीनों अधिनियमों को सख्ती से लागू किया जाए। इसके जरिये सभी कृषि उत्पादों, पशुधन मंडी समितियों (एपीएमसी) और कृषि जिला सहकारी समितियों को आदेश जारी करके किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (प्रचार व सुविधा) अधिनियम 2020, किसान (सशक्तिकरण व संरक्षण) आश्वासन व किसान सेवा अधिनियम 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 को लागू किया गया है। महाराष्ट्र के सबसे बड़े एपीएमसी मार्केट नवी मुंबई में यह नियम पूरी तरह से लागू है। यहां आने वाला किसान यदि अपने उत्पाद मंडी के बाहर बेचता है तो उसे एपीएमसी का शुल्क नहीं भरना पड़ेगा।
30 सितंबर 2020 को रद्द
महाराष्ट्र सरकार ने कृषि सुधार कानूनों की सिफारिशों को संसद की मजूरी के पहले ही राज्य में लागू कर दिया था। लेकिन जब इसे लेकर विपक्षी दल और उसमें भी प्रमुख रूप से कांग्रेस ने हल्ला मचाना शुरू किया तो इसे लागू करने के लिए लाए गए अध्यादेश को रद्द कर दिया गया। सरकार की ओर से मिली जानकारी के अनुसार विधायकों की अनुशंसा पर इस अध्यादेश को रद्द कर दिया गया जबकि पणन सचिव ने विरोध इसका विरोध किया था।
अजित पवार का प्रपंच?
संसद में बिल पारित होने के बाद उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने कहा था कि इस बिल का विरोध राज्य और देश के सभी किसान कर रहे हैं। इसलिए इस पर अंतिम निर्णय लेने से पहले सरकार विशेषज्ञों से राय लेगी। वहीं, शिवसेना नेता व कृषि मंत्री दादासाहेब भुसे कृषि सुधार विधेयकों को किसानों के हित में बताया है।
शरद पवार का पाखंड?
इसके बावजूद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सुप्रीमो शरद पवार ने केंद्र सरकार द्वारा पारित किसान बिल के विरोध में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एक दिन उपवास रखने का ऐलान किया था। इस तरह के ड्रामेबाजी कर शायद वो यह साबित करना चाहतें थे कि वास्तव में उनकी पार्टी इस बिल का विरोध कर रही है। जबकि सच्चाई यह है कि महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक उनकी पार्टी ने इस बिल का अप्रत्यक्ष रुप से समर्थन किया। इसका प्रमाण यह है कि जब राज्य सभा में यह बिल लाया जा रहा था तो रांकांपा के सांसद वॉक आउट कर गए थे। बाद में सीनीयर पवार ने कहा था कि एनडीए सराकर ने बिल उनकी पार्टी के सांसदों को धोखे में रखकर पास करा लिया है। उनकी पार्टी के सांसद चाय-पान करने गए थे और उसी दरम्यान किसान बिल पास करा लिया गया। महाविकास आघाड़ी सरकार में शामिल कांग्रेस को भी यह मालूम है कि महाराष्ट्र में किसान बिल पहले से ही लागू हो गया है तो फिर वह विरोध क्या सिर्फ इसलिए कर रही है कि विरोधी पार्टी का सरकार के हर अच्छे-बुरे फैसले का विरोध करना धर्म है।