12 जनवरी को महाराष्ट्र की दुकानों और प्रतिष्ठानों के बोर्ड मराठी भाषा में अनिवार्य किए जाने को लेकर प्रदेश में राजनीति शुरू हो गई है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना इस मुद्दे को प्रदेश की महाविकास आघाड़ी के पास जाते देख और इसका श्रेय उसे मिलते देख आक्रामक हो गई है। उसने एक ट्वीट कर इसका विरोध करने वाले व्यापारियों को चेतावनी देते हुए कहा है, “मराठी बोर्ड का विरोध करने वाले व्यापारियों से एक ही सवाल है कि बोर्ड बदलना ज्यादा महंगा है या दुकान का शीशा बदलना?”
ज्या व्यापारांचा मराठी पाटी ला विरोध आहे त्यांना एकच प्रश्न आहे पाटी बदलण्याचा खर्च जास्ती आहे की दुकानाच्या काचा बदलण्याचा??
— Sandeep Deshpande (@SandeepDadarMNS) January 14, 2022
बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के दुकानों और प्रतिष्ठानों में मराठी में बोर्ड लगाना अनिवार्य करने का निर्णय लिया है। उसने 12 जनवरी को कैबिनेट की बैठक में पूर्व के अधिनियम में संशोधन करते हुए यह निर्य लिया है। सरकार के इस निर्णय के बाद मनसे भी इसका श्रेय लेने की होड़ में जुट गई है।
व्यापारियों ने किया विरोध
हालांकि व्यापारियों ने सरकार के इस निर्णय को वोट पॉलिटिक्स बताते हुए विरोध किया है। फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन के नेता वीरेन शाह ने इस बारे में एक बयान जारी कर कहा है कि सरकार का यह निर्णय बॉम्बे उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ है, जिसमें उसने बोर्ड लगाने के बारे में निर्णय लेने का अधिकार दुकान के मालिकों को दिया है।
वोट की राजनीति
वीरेन शाह ने अपने बयान में कहा है कि मुंबई जैसे महानगर में इस तरह का निर्णय लेना उचित नहीं है। उन्होंने इसे आने वाले मुंबई महानगरपालिका के चुनाव से जोड़ते हुए वोट पॉलिटिक्स बताया है। उन्होंने कहा है कि यह व्यापारियों के अधिकारों का उल्लंघन है और सरकार को यह फैसला वापस लेना चाहिए। शाह ने कहा कि इससे पहले 2001 में भी इस तरह का निर्णय लिया गया था, जिस पर दायर याचिका में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सरकार के इस निर्णय के खिलाफ फैसला दिया था। न्यायालय ने बोर्ड किस भाषा मे लगाना है, यह तय करने का अधिकार व्यापारियों को दिया था।
कोरोना संकट से व्यापारी परेशान
वीरेन शाह ने कहा कि पिछले दो साल से अधिक समय से कोरोना के कारण व्यापारी पहले से ही परेशान हैें और आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में वोट पॉलिटिक्स के लिए सरकार ने इस तहर का निर्णय लेकर उनकी परेशानी बढ़ाने का काम किया है। उन्होंने कहा कि व्यापारी सरकार के इस निर्णय को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।
दुकानांच्या पाट्या मराठीत असण्याबाबत 'महाराष्ट्र दुकाने व आस्थापना (नोकरीचे व सेवाशर्तीचे विनियमन) अधिनियम २०१७' हा अधिनियम लागू होत असल्याने दहापेक्षा कमी कामगार असलेल्या आस्थापना व दुकाने नियमातून पळवाट काढत असल्याचे आढळून आले. pic.twitter.com/fHO1kAxBrK
— Subhash Desai (@Subhash_Desai) January 12, 2022