Rashtriya Swayamsevak Sangh: संघ ने बांग्लादेश के हिन्दुओं को लेकर जताई चिंता, सरकार से किया यह आग्रह

संघ की तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बेंगलुरु के चन्नेनहल्ली स्थित जनसेवा विद्या केंद्र में चल रही है। बैठक के दूसरे दिन शनिवार को सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने प्रतिनिधि सभा द्वारा पारित प्रस्तावों पर मीडिया को जानकारी दी। इ

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Rashtriya Swayamsevak Sangh: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों द्वारा हिन्दू समाज विशेष रूप से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के खिलाफ बढ़ती हिंसा और लक्षित उत्पीड़न पर गहरी चिंता व्यक्त की है। इसके साथ ही संघ ने वैश्विक समुदाय से हिन्दू समाज के साथ एकजुटता से खड़े रहने और निर्णायक कार्रवाई का आग्रह किया है।

संघ की तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बेंगलुरु के चन्नेनहल्ली स्थित जनसेवा विद्या केंद्र में चल रही है। बैठक के दूसरे दिन 22 मार्च को सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने प्रतिनिधि सभा द्वारा पारित प्रस्तावों पर मीडिया को जानकारी दी। इस दौरान उनके साथ अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर भी मौजूद थे। सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने कहा कि भारत सरकार ने बांग्लादेश में हिंदुओं और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए सराहनीय कदम उठाए हैं। बांग्लादेश सरकार के साथ कूटनीतिक प्रयास भी किए हैं और कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इस मुद्दे को उठाया है, लेकिन अगर अत्याचार जारी रहा या बढ़ा तो आगे और कार्रवाई की आवश्यकता हो सकती है।

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा द्वारा बांग्लादेश के हिंदू समाज के साथ एकजुटता से खड़े रहने का आह्वान शीर्षक वाले प्रस्ताव पर उन्होंने कहा कि संघ बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों के हाथों हिन्दू समाज विशेष रूप से अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति पर बढ़ती हिंसा, उत्पीड़न और लक्षित उत्पीड़न पर गहरी चिंता व्यक्त करता है। बांग्लादेश की स्थिति पर अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा द्वारा पारित प्रस्ताव में धार्मिक संस्थानों पर व्यवस्थित हमलों, क्रूर हत्याओं, जबरन धर्मांतरण और हिन्दुओं की संपत्तियों को नष्ट करने का आह्वान किया गया। बयान में कहा गया कि हिंसा के चक्र ने बांग्लादेश में हिन्दू समुदाय के लिए अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है। प्रतिनिधि सभा के प्रस्ताव में धार्मिक असहिष्णुता और मानवाधिकारों के उल्लंघन के इन कृत्यों की कड़ी निंदा की गई है और वैश्विक समुदाय से निर्णायक कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है।

अरुण कुमार ने कहा कि मठ-मंदिरों पर हमले, देवी-देवताओं की अपवित्रता, संपत्तियों की लूट और जबरन धर्म परिवर्तन निंदनीय है, लेकिन संस्थागत उदासीनता और सरकारी निष्क्रियता के कारण इन अपराधों के अपराधियों का हौसला बढ़ गया है। उन्होंने बांग्लादेश में हिन्दू आबादी में लगातार हो रही गिरावट पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 1951 में 22 प्रतिशत से आज सिर्फ़ 7.95 प्रतिशत रह गई है। यह इस संकट की गंभीरता को दर्शाता है। हिन्दुओं का ऐतिहासिक उत्पीड़न, खास तौर पर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच एक सतत मुद्दा बना हुआ है। हालांकि, पिछले साल संगठित हिंसा का स्तर और सरकार की निष्क्रिय प्रतिक्रिया बेहद चिंताजनक है।

अरुण कुमार ने कहा कि प्रतिनिधि सभा बांग्लादेश में बढ़ती भारत विरोधी बयानबाजी के बारे में भी चिंता जताती है, जो दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक रूप से गहरे संबंधों को प्रभावित करने का खतरा पैदा करती है। प्रस्ताव में पाकिस्तान और डीप-स्टेट तत्वों सहित अंतरराष्ट्रीय ताकतों के हस्तक्षेप की चेतावनी दी गई है, जो सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देकर और अविश्वास को बढ़ावा देकर इस क्षेत्र को अस्थिर करना चाहते हैं। प्रस्ताव में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत और उसके पड़ोसी देश एक समान सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत साझा करते हैं और क्षेत्र के एक हिस्से में किसी भी तरह का सांप्रदायिक विवाद पूरे उपमहाद्वीप को प्रभावित करता है।

परिसीमन के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि जो लोग इस मुद्दे को उठा रहे हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या उनका कोई राजनीतिक एजेंडा है या वे वाकई जन कल्याण के बारे में सोच रहे हैं। अरुण कुमार ने नए भाजपा अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भाजपा और संघ के बीच किसी भी तरह के मतभेद से इनकार किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ भाजपा के अंदरुनी मामलों पर चर्चा नहीं करता और भाजपा और संघ के बीच कोई मतभेद नहीं है। भाषा विवाद को लेकर अरुण कुमार ने राष्ट्रीय एकता में संघ की आस्था पर जोर दिया। उन्होंने कहा संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से लिखा है ‘हम भारत के लोग’, जिसका अर्थ है कि धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। काम करते समय सभी को यही दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने बताया कि अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के दौरान संगठनात्मक कार्यों के विश्लेषण, विकास, प्रभाव और समाज में परिवर्तन पर चर्चा की गई। उन्होंने मीडिया को संघ की यात्रा के बारे में जानकारी दी और एक शाखा से लेकर पूरे देश में इसके क्रमिक विस्तार का विवरण दिया। उन्होंने कहा कि संघ का लक्ष्य ‘सर्वस्पर्शी, सर्वव्यापी’ होना है, जो समाज और राष्ट्र के सभी पहलुओं को छूता है। संघ आज देश के सुदूर और आदिवासी इलाकों में काम करता है। उदाहरण के लिए ओडिशा के कोरापुट और बलांगीर के आदिवासी इलाकों में 1031 शाखाएं हैं, जिनमें इन समुदायों के कार्यकर्ता शामिल हैं। संघ परामर्श और आपसी सहमति से काम करता है और समाज के विभिन्न हितधारकों के साथ हजारों बैठकें आयोजित की जाती हैं।

पिछले वर्ष के दौरान महिला सशक्तीकरण पर किए गए कार्यों की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि लगभग 1.5 लाख पुरुष और महिला हस्तियों से संपर्क किया गया और उनके साथ बातचीत आयोजित की गई। उन्होंने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती के अवसर पर देशभर में लोकमाता अहिल्याबाई के योगदान को उजागर करने के लिए 22,000 कार्यक्रम और शिखर सम्मेलन आयोजित किए गए, जिनमें सभी वर्गों के लोगों ने हिस्सा लिया। इसी उत्सव के तहत महिलाओं की भागीदारी और समाज में उनके योगदान को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस संबंध में वर्षभर में 472 महिला-केंद्रित एक दिवसीय शिखर सम्मेलन आयोजित किए गए, जिनमें 5.75 लाख महिलाओं ने भाग लिया।

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संघ हर उस समस्या के समाधान की दिशा में काम करता है जो सामने आती है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में ऐसे दिव्यांग बच्चे थे, जिनकी उपेक्षा की गई थी और उनके पास सामान्य जीवन जीने के लिए कोई रास्ता नहीं था। संघ कार्यकर्ताओं ने ऐसे बच्चों की पहचान की और न केवल उनके लिए चिकित्सा सहायता की व्यवस्था की, बल्कि सम्मानजनक जीवन जीने के लिए आजीविका के विभिन्न साधन भी मुहैया कराए। उन्होंने कहा कि संघ कार्य के विस्तार का मतलब संघ की संख्यात्मक ताकत में वृद्धि नहीं है, बल्कि यह समाज की सकारात्मक ताकत में वृद्धि को दर्शाता है।

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