स्वामी विवेकानंद की मूर्ति का 3 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद अनावरण हुआ। इस अवसर पर जेएनयू छात्रों का एक धड़ा प्रधानमंत्री द्वारा मूर्ती के अनावरण किये जाने के कार्यक्रम का विरोध कर रहा था। स्वामी विवेकानंद जी की मूर्ति के आसपास एक वर्ग विशेष ने टिप्पणियों से भरी बातें लिखीं। आखिर स्वामी विवेकानंद से और देश के प्रधानमंत्री से इनका क्या विरोध हो सकता है? क्या ये विरोध देश, संस्कृति और संस्कारों को शीर्ष वरीयता देनेवाले सभी विचारों का था? क्या इनके लिए देश के प्रधानमंत्री मात्र एक कुंद वैचारिक क्षमता के मानव हैं? आखिर जो यूनिवर्सिटी इन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्वच्छ वातावरण, अनुदानित – शिक्षा, छात्रावास और भोजन उपलब्ध कराती है और जिन नागरिकों की गाढ़ी कमाई से इन्हें ये छूट मिलती है, उनके प्रधानमंत्री तथा उस देश के महापुरुषों का खुला विरोध करने का अधिकार इन्हें किसने दिया है। ये किस शिक्षा को ग्रहण कर रहे हैं, जो उन्हें अफजल गुरु का समर्थन करना और ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे विचारों को सार्वजनिक करने का विचार देता है। आम जनमानस इन्हें भारत का भविष्य मानकर खर्च करता है लेकिन इनके रगों में इतना जहर क्यों है, ये सबसे बड़ा प्रश्न है।
मूर्ति को लेकर 3 वर्षों से था विवाद
12 नवंबर को जिस स्वामी विवेकानंद की मूर्ति का अनावरण की गई, वह आदमकद प्रतिमा लगभग तीन साल से ढंकी हुई थी। मूर्ति तैयार होने को लेकर उसके अनावरण तक ये लगातार विवादों में रही। आम तौर पर विवेकानंद को दक्षिणपंथियों के साथ ही वामपंथी भी महान शख्सियत मानते हैं। तो फिर विवाद की वजह क्या है?
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विवाद की शुुरुआत
दरअस्ल मूर्ति को लेकर विवाद उसके बनने के साथ ही शुरू हो गया था। तब खुद यूनिवर्सिटी की एग्जीक्यूटिव काउंसिल ने इस बात की पहल की थी। उसका कहना था कि कैंपस में विवेकानंद जैसी महान शख्सियत की मूर्ति लगाना उचित नहीं है। इसके साथ ही छात्रों ने भी सवाल उठाया था कि मूर्ति बनवाने के पैसे कहां से आए। उनका ये आरोप था कि शायद पैसे लाइब्रेरी या किसी दूसरे फंड से काटे गए हैं। हालांकि विश्विद्यालय ने इस बात से इनकार किया था। उसने कहा था कि फंड पूर्व के छात्रों से मिला है।
2019 में हुआ बड़ा विवाद
इस बारे में आरटीआई भी डाली गई थी। बवाल को हवा 2019 में मिली। जब मूर्ति को ढंके हुए केसारिया रंग के कपड़े पर भी अपशबद लिखे मिले। जो कथित रुप से पार्टी विशेष के बारे में थे। यहां तक कि विवेकानंद को एक पार्टी की विचारधारा से जोड़ दिया गया। लेकिन यह पता नहीं चल पाया था कि ऐसा किसने किया।
जेएनयू रही है वामपंथियों का अड्डा
जेएनयू में लेफ्ट का दबदबा रहा है, लेकिन धीरे-धीरे दक्षिणपंथी संगठन अपनी पैठ जमा रहे हैं। जब दो परस्पर विरोधी विचारधारा आमने-सामने आती हैं तो जेएनयू प्रायः विवादों का केंद्र बन जाता है। इस वर्ष जनवरी में कुछ ऐसा ही देखने को मिला। कई दर्जन नकाबपोश लोग घुस गए और हमला बोल दिया। विपक्ष और लेफ्ट पार्टियों ने आरोप लगाया था कि यह हमला बीजेपी की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद( एबीवीपी) ने कराया है। हालांकि एबीवीपी ने इस आरोप को बेबुनियाद बताया था। इस मामले में कई आरोपी अब तक पुलिस गिरफ्त से दूर हैं। यह घटना दिखाती है कि विचारधारा की लड़ाई में देश की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में हिंसक घटना होने लगी है।
अफजल गुरु के समर्थन में लगे थे नारे
अफजल गुरू के समर्थन में जेएनयू के कई छात्र बोलते रहे हैं। 2016 में उसे फांसी दिए जाने के खिलाफ कई छात्रों ने प्रदर्शन किया था। इसके साथ ही कुछ छात्रों ने ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारे भी लगाए थे। ये वही अफजल गुरु है, जिसे 2001 में संसद पर किए गए हमले में दोषी पाए जाने के बाद 9 फरवरी 2013 को तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया था।
सीआरपीएफ के जवानों के नरसंहार पर मनाया था जश्न
वर्ष 2010 में जेएनयू कैंपस के भीतर नक्सलियों के समर्थन और सीआरपीएफ के 76 जवानों के नरसंहार का जश्न मनाए जाने का आरोप लगा था। जब एनएसयूआई और एबीवीपी जैसे धुर विरोधी संगठन एक ओर खड़े थे और माओवादियों के समर्थकों के खिलाफ सरकार से कार्रवाई करने की मांग कर रहे थे। इसके साथ ही जेएनयू छात्रों पर लेफ्ट से अलग विचारधारा के छात्रों, शिक्षकों को धमकाने के आरोप बार-बार लगते रहे हैं।
लगाया गया था जिन्ना का पोस्टर
इसी वर्ष जेएनयू में मोहम्मद अली जिन्ना रोड का पोस्टर पाया गया था। एबीवीपी का दावा था का पोस्टर जेएनयूएसयू की करतूत है। वहीं जेएनयूएसयू ने दावा किया था कि पोस्टर एबीवीपी ने नफरत फैलाने के लिए लगाया गया है।
पीएम का राजनैतिक गुणा-गणित
फिलहाल लगभग तीन साल बाद मूर्ति के अनावरण और पीएम मोदी के वर्चुअल संबोधन को कई तरह से देखा जा रहा है। इसमें ये गणित भी लगाया जा रहा है कि शायद ये जेएनयू की वामपंथी विचारधारा को कमजोर करने की कोशिश है। पीएम जिस ( बीजेपी) पार्टी से संबंधित हैं, उसमें स्वामी विवेकानंद को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। खुद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी विवेकानंद के विचारों से प्रेरित माना जाता है। इसलिए माना ज रहा है कि पीएम मोदी वाम संगठनों के गढ़ में दक्षिणपंथी विचारधाराओं की अपनी पार्टी की पैठ बनाना चाहते हैं।
2021 में प. बंगाल एलेक्शन से कनेक्शन
इसके साथ ही इसे 2021 में होनवाले प. बंगाल के चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। स्वामी विवेकानंद का जन्म प. बंगाल के कोलकाता में हुआ था। इस वजह से उन्हें प. बंगाल में देश के अन्य राज्यों से ज्यादा महत्व दिया जाता है। इसलिए पीएम मोदी के इस कदम को प. बंगाल विधानसभा चुनाव की तैयारी की शुरुआत के रुप में देखा जा रहा है।