महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ढाई वर्ष के अपने कार्यकाल में सोशल मीडिया पर ही जनता से अधिक चर्चा करते रहे। लेकिन सत्तांतर होने के बाद वे राज्य के प्रमुख हिंदू त्यौहारों को भी भूल गए हैं। इन त्यौहारों पर पूर्व मुख्यमंत्री के द्वारा कोई संदेश या शुभकामनाएं भी नहीं दी गई हैं। इससे चर्चा है कि, सत्ता जाते ही उद्धव ठाकरे हिंदुओं को भूल गए हैं क्या?
भारतीय जनता पार्टी के नेता मोहित कंबोज ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा है, ‘श्री उद्धव ठाकरे @OfficeofUT जी ने इस साल 12 करोड़ महाराष्ट्र के लोगों को ना ही गणेशोत्सव की बधाई दी ना ही दही हांडी उत्सव की!
श्री उद्धव ठाकरे @OfficeofUT जी ने इस साल 12 Crore महाराष्ट्र के लोगों को ना ही गणेशोत्सव की बधाई दी ना ही दही हांडी उत्सव की !
2.5 साल के बाद हिन्दुओं ने जो उत्साह से दोनो त्योहार मनाया हैं उसके लिए @mieknathshinde जी और @Dev_Fadnavis जी को दिल से धन्यवाद !
हर हर महादेव !
— Mohit Kamboj Bharatiya – MKB 1984 🇮🇳 (@mohitbharatiya_) September 10, 2022
कितना बदल गई शिवसेना
उद्धव ठाकरे ने विधान सभा चुनाव भाजपा के साथ लड़ा था। जिसमें दोनों ही दलों के आंकड़े ऐसे आए कि सरकार का गठन बड़े ही आराम से हो जाता है। परंतु, एनसीपी और कांग्रेस को मिली सफलता ने दूसरे समीकरण की आस जगा दी। अंत में भाजपा का साथ छोड़ शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस का साथ पकड़ लिया। मुख्यमंत्री पद पर उद्धव ठाकरे बैठे, यह सरकार लगभग ढाई साल चली। लेकिन, पार्टी के अंदर विधायकों के बीच असंतोष इतना बढ़ा कि, चालीस विधायकों के एक गुट ने अपना अलग गुट स्थापित कर लिया। इस गुट ने शिवसेना के नैसर्गिक साझीदार भाजपा के साथ सरकार गठित की।
शिवसेना को हिंदुत्व का प्रखर पक्षकार माना जाता था। मुंबई हमले रहे हों या बाबरी विध्वंस शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे की एक आवाज पर हिंदू एकजुट होकर खड़ा होता रहा है। लेकिन उद्धव ठाकरे की शिवसेना में हिंदुत्व को लेकर हुए बदलाव पर असंतोष व्याप्त हो गया था।
निशाने पर ठाकरे की सत्ता
याकूब मेमन की कब्र का मजार में बदलाव होने पर उद्धव ठाकरे के नेतृत्ववाली सरकार निशाने पर है। इसके पहले पार्टी में बड़ी फूट से सत्ता हाथ से चली गई और उसके बाद उनके मुख्य प्रवक्ता संजय राऊत की प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तारी कर ली है। इस स्थिति में उद्धव ठाकरे के पास अब पार्टी का पक्ष लोगों के बीच रखनेवाले मजबूत नेताओं की कमी भी लग रही है। भ्रष्टाचार के आरोपों में निशाने पर आए नेता भी सत्ता जाने के बाद शांत बैठे हैं।