US politics: कनाडा में भारत का दांव ट्रंप इन, टूडो आउट

एक समय पर ग्लोबल मीडिया के चहेते और "सनी वेज़" (सुखद रास्ते) के वादे के साथ सत्ता में आए ट्रूडो का पतन न केवल उनकी घरेलू राजनीति में विफलताओं का परिणाम है

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-अंकित तिवारी

US politics: कनाडा के प्रधानमंत्री (Canadian Prime Minister) जस्टिन ट्रूडो (Justin Trudeau) ने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा (resignation from post) देने की घोषणा की, जिससे उनके नेतृत्व और उनकी राजनीति का एक युग समाप्त हो गया।

एक समय पर ग्लोबल मीडिया के चहेते और “सनी वेज़” (सुखद रास्ते) के वादे के साथ सत्ता में आए ट्रूडो का पतन न केवल उनकी घरेलू राजनीति में विफलताओं का परिणाम है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके विवादास्पद रुख और निर्णयों ने भी उनके करियर को गहरा नुकसान पहुंचाया।

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इस्तीफे की नौबत
ट्रूडो की नेतृत्व शैली और निर्णयों के प्रति बढ़ते असंतोष ने उनकी स्थिति को कमजोर कर दिया। उनकी सरकार के उप प्रधानमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने दिसंबर में इस्तीफा देकर उनकी विफलताओं की ओर सार्वजनिक रूप से इशारा किया। फ्रीलैंड ने ट्रूडो पर आर्थिक मुद्दों, विशेषकर अमेरिका द्वारा कनाडाई वस्तुओं पर टैरिफ लगाने के मुद्दे को गंभीरता से न लेने का आरोप लगाया।

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ट्रडो सरकार, खिसका जनाधार
इसके बाद न्यू डेमोक्रेट्स और ब्लॉक क्यूबेकॉइस जैसी पार्टियों ने अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे लिबरल सरकार का राजनीतिक आधार कमजोर हो गया। विपक्षी कंजर्वेटिव्स ने इस मौके का फायदा उठाकर अपनी स्थिति मजबूत की, और ट्रूडो को उनकी पार्टी के लिए एक बोझ के रूप में देखा जाने लगा।

आर्थिक और घरेलू नीतियों में असफलता
ट्रूडो की नीतियां कोविड-19 महामारी के बाद कनाडा की जनता को राहत देने में विफल रहीं। बढ़ती बेरोजगारी, आसमान छूती महंगाई और जीवन-यापन की बढ़ती लागत ने जनता के विश्वास को बुरी तरह हिला दिया। जनता और उनकी पार्टी के सदस्यों ने उनकी क्षमताओं पर सवाल उठाना शुरू कर दिया, और राजनीतिक दबाव बढ़ता गया।

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राजनीतिक सहयोगियों ने बनाई दूरी
उनकी लोकप्रियता गिरने के साथ-साथ उनके राजनीतिक सहयोगियों ने भी उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी। उनकी दो महीने की बिक्री कर छुट्टी और सी$250 की छूट जैसी योजनाओं को आलोचकों ने “राजनीतिक नौटंकी” करार दिया, जो उनकी नेतृत्व क्षमता की गंभीर कमी को दर्शाती हैं।

अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर असफल
विदेश नीति के मोर्चे पर भी ट्रूडो को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। विशेष रूप से, भारत-कनाडा संबंधों में आई गिरावट ने ट्रूडो की नेतृत्व क्षमता पर गंभीर सवाल उठाए।

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खालिस्तान समर्थकों के प्रति नरम रुख
ट्रूडो के नेतृत्व में कनाडा ने खालिस्तानी चरमपंथियों के प्रति नरम रुख अपनाया, जिससे भारत के साथ संबंधों को गहरा आघात पहुंचा। ट्रूडो ने खालिस्तानी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप भारतीय सरकार पर लगाया, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया। ट्रूडो की सरकार ने भारतीय सरकार के बार-बार किए गए अनुरोधों के बावजूद चरमपंथियों के खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार किया।

कनाडा बन गया नया पाकिस्तान
उनके इस रवैये ने कनाडा को भारतीय विदेश नीति के परिप्रेक्ष्य में “नया पाकिस्तान” बना दिया। भारत के साथ संबंधों में आई खटास को ट्रूडो की नीतियों और राजनीतिक चालबाजियों का परिणाम माना जा रहा है।

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क्या सुधरेंगे भारत-कनाडा संबंध?
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रूडो का इस्तीफा भारत-कनाडा संबंधों को सुधारने के लिए आवश्यक था। 2015 में स्थापित रणनीतिक साझेदारी, जिसे पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन हार्परके कार्यकाल में मजबूत किया गया था, अब खस्ताहाल स्थिति में है। ट्रूडो के उत्तराधिकारी को इन संबंधों को पुनर्जीवित करने और विश्वास बहाल करने के लिए काफी मेहनत करनी होगी।

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राजनीति से सबक
जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा उनकी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय नीतियों की असफलताओं का परिणाम है। उनके पतन से यह स्पष्ट होता है कि वैश्विक राजनीति में केवल आकर्षक छवि और वादे पर्याप्त नहीं होते। मजबूत और दूरदर्शी नेतृत्व की आवश्यकता होती है, जो केवल अपने देश की ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय साझेदारों की अपेक्षाओं को भी समझे और पूरा करे। ट्रूडो का जाना कनाडा के लिए बदलाव का मौका है। अब यह उनके उत्तराधिकारी पर निर्भर करेगा कि वे कैसे अपने देश को घरेलू स्थिरता और वैश्विक विश्वसनीयता की ओर ले जाते हैं।

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