डोनाल्ड की “डक” वाणी

156

बड़बोले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चुनावों से पहले अंतिम प्रेसिडेंशियल डिबेट में भारत और रुस पर जमकर अपनी भड़ास निकाली। उन्होंने कहा कि भारत, चीन और रुस में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब है। ये देश अपनी हवा के प्रदूषण रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाते। ट्रंप ने कहा कि अमेरिका हमेशा से एयर क्वालिटी का ध्यान रखता है। उन्होंने पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को हटने का कारण बताते हुए कहा कि इससे अमेरिका गैर-प्रतिस्पर्धी राष्ट्र बन गया है।

भारत की हवा बेहद खराबः ट्रंप
ट्रंप ने अपने प्रतिस्पर्धी और डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बिडेन के साथ आखिरी डिबेट के दौरान कहा, “चीन को देखो, वहां कितनी गंदी हवा है। रुस को देखो, भारत को देखो, वहां की हवा कितनी गंदी है। मैं पेरिस समझौते से बााहर इसलिए हो गया, क्योंकि हमें खरबों डॉलर कमाने थे। पेरिस समझौता कर मैं लाखों लोगों की नौकरियों और हजारों कंपनियों का बलिदान नहीं करूंगा। यह बहुत अनुचित है।” इससे पहले दोनों नेताओं ने कोरोना संक्रमण के कारण एक-दूसरे से हाथ मिलाने की परंपरा का पालन नहीं किया और हाथ नहीं मिलाया। आम तौर पर प्रेसिडेंशियल डिबेट शुरु होने से पहले दोनों कैंडिडेट गर्मजोशी से हाथ मिलाते रहे हैं।

ये भी पढ़ेंः “अनमास्क” से भी मनी! पहन कर रहना रे बाबा…

 

 पेरिस समझौता काफी अहम
वर्ष 2019 में अमेरिका ने औपचारिक रुप से पेरिस जलवायु समझौते से बाहर होने की घोषणा की थी और संयुक्त राष्ट्र को इसकी सूचना दी थी। बता दें कि जलवायु परिवर्तन की दिशा में पेरिस समझौता एक अहम और वैश्विक समझौता है। इसे लागू कराने में ट्रंप से पहले के अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस समझौते का मकसद वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस तक कम करना है।

तथ्यों से परे ट्रंप की दलील
दरअस्ल डोनाल्ड ट्रंप अपने बड़बोलेपन के लिए दुनियाभर में मशहूर हैं। कई बार आधारहीन जानकारी देने के लिए वे मजाक के पात्र बन चुके हैं। शुक्रवार को राष्ट्रपति के दोनों उम्मीदवारों की बहस के दौरान भी ट्रंप द्वारा दी गई दलीलों की आलोचना की जा रही है। बताया जा रहा है कि उनकी बातों मे ज्यादा दम नहीं है और वे काफी कुछ आधारहीन बातें बोल रहे हैं।

चीन और अमेरिका फैलाता है सबसे ज्यादा प्रदूषण
इस सदी में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन काफी बढ़ गया है। यूरोपियन यूनियन के आंकड़ों को देखने पर पता चलता है कि विश्व स्तर पर चीन सबसे ज्यादा कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन करता है। इस मामले में उसकी हिस्सेदारी 30 फीसदी है। अमेरिका दूसरे क्रमांक पर है। विश्व में प्रदूषण फैलाने में उसकी हिस्सेदारी 13.43 फीसदी है। ग्लोबल कार्बन फुटप्रिंट में भारत की हिस्सेदारी 6.83 फीसदी है। यह रुस और जापान जैसे देशों से अधिक है।

अमेरिका का कोई लक्ष्य नहीं
वर्ष 2018 में अमेरिका ने 6.7 बिलियन टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन किया। एक ओर जहां यूरोपियन यूनियन ने 2050 और चीन ने 2060 तक ऐसी गैसों का उत्सर्जन जीरो करने का लक्ष्य रखा है, वहीं अमेरिता का ऐसा कोई मकसद नहीं है।

अमेरिका का प्रदूषण बहुत अधिक
अगर दुनिया भर के देशों की आबादी के हिसाब से प्रदूषण फैलाने के आंकड़े को देखें तो अमेरिका टॉप पांच देशों में आता है। अमेरिका का हर व्यक्ति एक वर्ष में औसतन 16.56 मीट्रिक टन कार्बन डायऑक्साइड फैलाता है। इस मामले में सऊदी नबंर एक है। वहां हर व्यक्ति सलाना 18.56 मीट्रिक टन कार्बन डायऑक्साइड फैलाता है। भारत इस सूची में 21वें क्रमांक पर है। यहां प्रति व्यक्ति एक साल में मात्र 1.96 मीट्रिक टन कार्बन डाय ऑक्साइड के लिए जिम्मेदार है।
इसके आलावा प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि कम आबादी के बावजूद अमेरिका वर्षों से चीन और भारत से ज्यादा कार्बन डाय ऑक्साइड हवा में छोड़कर वायुमंडल को प्रदूषित करने में आगे रहा है।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.