Veer Savarkar: आज, 26 फरवरी को हम स्वातंत्र्यवीर सावरकर जी की पुण्यतिथि मना रहे हैं, एक महान योद्धा और राष्ट्रप्रेमी जिन्होंने अपने संघर्ष और त्याग से भारतीय समाज को एक नई दिशा दी। उनका स्वर्णिम इतिहास कभी भी उन कांग्रेस के दरबारी इतिहासकारों और मुग़ल प्रेमी नेताओं से प्रभावित नहीं रहा जो देश के वास्तविक नायक को नकारने की कोशिश करते हैं।
यदि आज हम गर्व से कह सकते हैं कि महाराणा प्रताप महान थे और अकबर एक आक्रांता था, अगर आज हम छत्रपति शिवाजी महाराज को देवतुल्य मानते हैं और औरंगजेब को एक अत्याचारी, तो इसके पीछे उस महान नायक की नींव है, जिसका नाम हम आज और हमेशा वीर सावरकर जी के रूप में जानेंगे।
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नकली ठेकेदारों से संघर्ष
यह संघर्ष उस दौर में हुआ जब स्वतंत्रता संग्राम के कई तथाकथित ठेकेदार धर्मनिरपेक्षता के नकली सिद्धांतों को बढ़ावा दे रहे थे। स्वातंत्र्यवीर सावरकर जी ने पहले अंग्रेजों से और फिर उनके बाद उन नकली ठेकेदारों से संघर्ष किया, जो असली हिंदुत्व को मिटाने की कोशिश कर रहे थे। पर सावरकर जी अडिग रहे, हिमालय की तरह। उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी कि उन्होंने न सिर्फ ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया, बल्कि धर्म विरोधियों के खिलाफ भी मजबूती से खड़ा हो गए। आज, उनके पुण्यतिथि पर हम उस महास्तंभ को याद करते हैं, जिसने न केवल हमें स्वतंत्रता दिलाई, बल्कि हमें अपने इतिहास और संस्कृति के असली नायकों से भी परिचित कराया।
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वीर सावरकर जी का जीवन परिचय
वीर सावरकर जी का जन्म 28 मई 1883 को नासिक जिले के भागूर ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर और मां का नाम राधाबाई था। वे एक महान क्रांतिकारी और हिन्दुत्व के प्रबल समर्थक थे। सावरकर जी ने अपनी शिक्षा पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से पूरी की।
गांधी हत्या प्रकरण और वीर सावरकर
गांधी जी की हत्या में जिन आठ लोगों पर आरोप लगाए गए थे, उनमें वीर सावरकर जी का नाम भी था, लेकिन उन्हें अदालत से बरी कर दिया गया। जबकि उस समय के कई प्रमुख नेता अंग्रेजों के साथ बैठकर चाय-पानी कर रहे थे, वीर सावरकर जी पर अंग्रेजों के खिलाफ षड्यंत्र का आरोप लगा था, और उन पर कार्रवाई भी की गई थी।
1909 में मदनलाल ढींगरा ने ब्रिटिश अधिकारी सर विलियम कर्जन वाइली की हत्या कर दी थी। वीर सावरकर जी पर आरोप था कि उन्होंने ढींगरा को इस योजना में मदद दी थी। बाद में यह भी सामने आया कि उन्होंने ढींगरा को ट्रेनिंग दी थी। यह उस समय का एक प्रमुख संघर्ष था, जैसा कि आज हम सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में जानते हैं।
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कालापानी की सजा
वीर सावरकर जी को कालापानी की सजा दी गई, जो एक अत्यंत कठोर सजा थी। उन्हें कोल्हू में जानवरों की तरह काम करने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन इस सबके बावजूद, जब भी उनका नाम लिया जाता है, तब हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है। इस जेल में वीर सावरकर जी ने दीवारों पर नाखून से राष्ट्रप्रेम और धर्मनिरक्षता की इबारत लिखी, जो आज भी हमारे इतिहास में अमिट हैं। जहां वे कैद थे, वहां कुल 693 कमरे थे, और छोटे से सेल में उन्हें जंजीरों में जकड़ कर रखा जाता था। उनकी यातनाएं अत्यंत कड़ी थीं, फिर भी उनका संघर्ष निरंतर जारी रहा।
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सावरकर जी का संदेश
सावरकर जी ने हमेशा हिंदू समाज के सैन्यकरण का समर्थन किया। उनका मानना था कि हिंदू समाज को भारत की सुरक्षा में योगदान देना चाहिए। उन्होंने कहा था कि हिंदुओं को थलसेना, नौसेना, और वायुसेना में बड़ी संख्या में शामिल होना चाहिए और युद्ध के सामान बनाने वाले कारखानों में काम करना चाहिए। 26 फरवरी, 1966 को 82 वर्ष की आयु में वीर सावरकर जी ने इस दुनिया को अलविदा कहा। उनके इस महान बलिदान को हम आज भी याद करते हैं और उनका योगदान हमें हमेशा प्रेरित करता है।
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नमन और प्रणाम
आज, वीर सावरकर जी की पुण्यतिथि पर हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और संकल्प लेते हैं कि उनके संघर्ष और यशगाथा को हम आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएंगे। सुदर्शन परिवार वीर सावरकर जी को बारंबार प्रणाम करता है और उनके योगदान को नमन करता है। वीर सावरकर जी अमर रहें।
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