भारत के विभाजन में एक नए राष्ट्र का गठन हुआ, जिसने इस्लाम स्वीकार किया। जबकि भारत गणराज्य एक संप्रभु, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप घोषित हुआ। यहां बहुसंख्य हिंदू थे, पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ क्रूरतम व्यवहार हुआ, जिसके पश्चात वहां से बड़े स्तर पर पलायन हुआ। इन हिंदुओं का निवास भारत बना वहीं दूसरी ओर बंटवारे के बाद के भारत में रहनेवाले मुसलमान भारत में ही टिक गए, उन्होंने अपना घर नहीं छोड़ा। परिणामस्वरूप, अल्पसंख्यकों के रूप में तत्कालीन सरकार और उसके बाद की सरकारों द्वारा भारत में रहनेवाले मुसलमानों की सेवा सुशुश्रा होने लगी। मुसलमानों को भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म पर आधारित अल्पसंख्यकों का दर्जा दिया गया, मुसलमानों की संपत्तियों की रक्षा के लिए वक्फ बोर्ड को 1955 में स्थाई रूप से दर्जा दे दिया गया। इसके उलट इस्लाम देश पाकिस्तान में बंटवारे के समय 22 प्रतिशत के लगभग हिंदू हुआ करते थे, जो अब घटकर 1.6 प्रतिशत पर पहुंच गए हैं। वहीं, सरकार द्वारा पिछले 75 वर्षों से पोषित मुसलमान इस स्थिति में आ गए हैं कि, वे हिंदुओं के गांव, सदियों पुराने मंदिरों पर कब्जा जमाने से बाज नहीं आ रहे हैं। जानकार इसे सीधे-सीधे मुस्लिम ब्रदरहुड का हिस्सा मानते हैं और वक्फ बोर्ड को मुस्लिम ब्रदरहुड का चैरिटी सिस्टम कहते हैं।
क्या है वक्फ बोर्ड?
भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद भारत में रहनेवाले मुसलमानों की काफी जनसंख्या पाकिस्तान चली गई, लगभग 10 प्रतिशत मुसलमान फिर भी भारत में ही रहे। उस समय पाकिस्तान से हिंदू भी आए थे, वहां के हिंदुओं की संपत्तियों को पाकिस्तान सरकार ने अधिग्रहित कर लिया, भारत में तत्कालीन सरकार में बैठे नेताओं ने मुसलमानों की संपत्तियों को सरकार द्वारा अधिग्रहित नहीं करने दिया, बल्कि इस संपत्ति को वक्फ के हवाले कर दिया। इस संपत्ति में लाखो हेक्टेयर भूमि का समावेश था।
भारत में गणतंत्र की स्थापना के पश्चात वर्ष 1955 में वक्फ बोर्ड को सरकार ने अंतिम रूप दे दिया। मुसलमानों की वह संपत्तियां जो, इस्लाम के नाम पर या ‘अल्लाह’ के नाम पर दान कर दी जाती हैं, उनकी देखरेख के लिए वक्फ बोर्ड को अंतिम रूप दिया गया। वक्फ बोर्ड इन संपत्तियों का रखवाला बना, वह इसका उपयोग इस्लाम के प्रचार, शिक्षा, धार्मिक कार्यों के लिए कर सकता है। वक्फ बोर्ड में सूचित कोई भी संपत्ति बिना वक्फ बोर्ड की अनुमति के किसी को नहीं दी जा सकती है। वक्फ बोर्ड के पास अनुमानत 6 लाख संपत्तियां हैं, जिनका मूल्य लगभग 12 लाख करोड़ के आसपास है। इसके बाद भी भारत सरकार वक्फ बोर्ड को अनुदान देती रही है।
वक्फ बोर्ड की संरचना
देश में एक केंद्रीय वक्फ बोर्ड है, इसके अलावा राज्यों के अपने वक्फ बोर्ड भी हैं। प्रत्येक बोर्ड में सात सदस्य होते हैं। जिनका मुस्लिम होना अनिवार्य है।
कांग्रेस सरकार ने दिये विध्वंसकारी अधिकार
वर्ष 1995 में वक्फ कानून को अतिरिक्त अधिकार सौंप दिये गए। जिसमें वक्फ बोर्ड के सीईओ को वक्फ कानून के सेक्शन 28 के अंतर्गत किसी भी जिलाधिकारी को आदेश देने का अधिकार प्रदत्त किया गया है। इसके आलावा वक्फ की संपत्ति के लिए स्वतंत्र सर्वेयर की नियुक्ति करने का प्रावधान है, जो मुस्लिम होना चाहिए और वक्फ कानून के सेक्शन 4 के अंतर्गत उसे यह अधिकार है कि, यदि किसी संपत्ति के सर्वेक्षण में उसे लगता है कि, संबंधित संपत्ति वक्फ बोर्ड की है तो वह नोटिस जारी कर सकता है।
वक्फ कानून के सेक्शन 40 के अंतर्गत यदि वक्फ बोर्ड को लगता है कि, संपत्ति उसकी है तो वह नोटिस जारी कर सकता है। इसके लिए संबंधित पक्ष को वक्फ ट्रिब्यूनल के पास ही जाना होगा। ट्रिब्यूनल का निर्णय इस संबंध में अंतिम माना जाएगा।
वक्फ कानून के सेक्शन 83 के अनुसार वक्फ ट्रिब्यूनल में दो जज होंगे, जो मुस्लिम समाज के ही होने चाहिये। यदि किसी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड ने दावा किया है तो संबंधित पक्ष को ट्रिब्यूनल का निर्णय मानना होगा। सेक्शन 85 ट्रिब्यूनल को यह अधिकार देता है कि, उसका निर्णय ही अंतिम होगा। यानी वक्फ बोर्ड के दावे का निर्णय भी उसी की ट्रिब्यूनल करेगी। वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल के निर्णय को दीवानी न्यायालय या उच्च न्यायालय में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है।
डेढ़ हजार वर्ष पुराना शिव मंदिर वक्फ की संपत्ति हो गया?
तमिलनाडु में इस्लामी अराजकता का नया पैंतरा सामने आया है। सदियों पहले बसे एक हिंदू गांव पर इस्लामी संपत्ति की नियंत्रक संस्था वक्फ बोर्ड ने कहा है कि, वह गांव वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। इस गांव में चोला साम्राज्य द्वारा निर्मित शिव मंदिर है, जो पिछली पंद्रह सदी (पंद्रह सौ वर्ष) से हिंदू पताका का वाहक है, वक्फ बोर्ड के मालिकाना दावा क्षेत्र में अब यह मंदिर भी आ गया है।
वक्फ का अस्तित्व 67 वर्ष पुराना है, जबकि सुंदरेश्वर शिव मंदिर 1,500 वर्ष पुराना है। इन तथ्यात्मक परिस्थितियों के बाद भी तमिलनाडु के तिरुचेंदुरई गांव के लोग प्रताड़ित किये जा रहे हैं। इस गांव में वर्तमान जनसंख्या के पुनर्वास का इतिहास लगभग 1927-28 के मध्य का है, जिसकी प्रविष्टि सरकारी लेखागार में उपलब्ध है। गांव में मुसलमानों का कोई साक्ष्य नहीं है और न ही इस गांव में मुसलमानों का निवास रहा है। ऐसी स्थिति में वक्फ बोर्ड द्वारा स्वामित्व का दावा करना हिदुंओं के विरुद्ध बड़ा षड्यंत्र नहीं तो क्या है।
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