‘सरदार’ चाहिये! मुंबई कांग्रेस का कौन होगा अगला नाथ? मुंबई में शुरू हुई लॉबिंग

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मुंबई। कांग्रेस को चाहिए मुंबई का सरदार, जो उसकी इमेज को चमका सके और 2022 के महानगरपालिका चुनाव में नैया पार लगा सके। इसके लिए पार्टी ने मुंबई में एक्टिव नेताओं के बारे में विचार करना शुरू कर दिया है। दूसरी ओर यह भनक लगते ही यह पद हथियाने के लिए पार्टी में लॉबिग शुरू हो गई है।
दरअस्ल कांग्रेस के पूर्व सांसद मिलिंद देवड़ा के मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद इस पद पर पार्टी के अनुभवी नेता एकनाथ गायकवाड़ को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि वे पार्टी हाईकमान की पसंद नहीं थे, लेकिन कांग्रेस के महाराष्ट्र प्रभारी मल्लिकार्जुन के कहने पर उसे यह बात माननी पड़ी थी।
एकनाथ गायकवाड का कार्यकाल पूरा हो रहा है
एकनाथ गायकवाड़ पार्टी के उम्रदराज नेता हैं और उनकी सक्रियता पहले से ही काफी कम रही है। लेकिन वे खड़गे के करीबी माने जाते हैं। अब जब उनका कार्यकाल पूरा हो रहा है और सभी पार्टियों की नजर 2022 में होनेवाले बीएमसी चुनाव पर लगी है और उन्होंने इसके लिए अभी से तैयारी भी शुरू कर दी है तो कांग्रेस भी चाहती है कि वह किसी तेज-तर्रार और सक्रिय नेता के हाथ में मुंबई का कमान सौंपे। इस हालत में उसने यह काम महाराष्ट्र कांग्रेस के नये प्रभारी एचके पाटील से फीडबैक मांगी है।
मुंबई में शुरू हुई लॉबिंग
महाराष्ट्र और मुंबई में इसके लिए लॉबिंग शुरू हो गई है। सभी नेता- कार्यकर्ता अपनी-अपनी पसंद के नेता को इस पद पर देखना चाहते हैं। इसके लिए महाराष्ट्र से दिल्ली तक लॉबिंग की जा रही है। फिलहाल पार्टी के अंदर जिन नामों पर मंथन किया जा रहा है, उनमें नसीम खान, सुरेश शेट्टी ,अमरजीत मन्हास, अमीन पटेल, भाई जगताप, मधु च्वाहाण आदि के नाम शामिल हैं।
क्या जागेगा सुरेश या नसीम का नसीब?
पार्टी के अंदरुनी सूत्रों के अनुसार नसीम खान और सुरेश शेट्टी इस पद की दौड़ में आगे हैं। इसका कारण यह है कि नसीम खान जहां अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं, वहीं उत्तर भारतीय लोगों में भी उनकी लोकप्रियता है। जहां तक सुरेश शेट्टी की बात करें तो वे मूल रुप से दक्षिण भारतीय हैं। उनकी पकड़ दक्षिण भारतीय मतदाताओं के साथ ही उत्तर भारतीय और मराठी मतदाताओं पर भी है। मंत्री रह चुके शेट्टी पार्टी के सक्रिय नेता हैं।
मनपा चुनाव में बनेंगे नये समीकरण
2022 के महानगरपालिका चुनाव की बात करें तो नये समीकरण के साथ यह काफी दिलचस्प हो सकता है। अभी जिस तरह की राजनीति चल रही है, उसके मुताबिक तो यही लग रहा है कि सरकार में शामिल तीनों पार्टियां शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन रहेगा और भारतीय जनता पार्टी को सिर्फ रामदास आठवले की आरपीआई का साथ मिलेगा। इस हाल में भाजपा के लिए मुकाबला काफी कड़ा हो सकता है।
दिल्ली से गल्ली तक चाहिए सरदार
दरअस्ल दिनोंदिन कमजोर होती कांग्रेस को दिल्ली से गल्ली तक ऐसे नेताओं की दरकार है, जो उसकी डूबती नैया को पार लगा सके। इसलिए उसने अनौपचारिक रुप से एक्टिव लीडर हंट कार्यक्रम शुरू कर रखा है। लेकिन सवाल यह है कि जब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही डावांडोल है तो दूसरे नेता कितने प्रभावशाली हो सकते हैं। जिस वृक्ष की जड़ ही कमजोर हो, उसकी टहनियां कितनी मजबूत हो सकती है, यह समझना मुश्किल नहीं है।
सवाल यह भी है कि बिहार में विधानसभा चुनाव नवंबर में ही होने की संभावना है। इस हालत में कांग्रेस को वहां सक्रियता दिखानी चाहिए, लेकिन वह इस मामले में गंभीर नहीं दिख रही है और अपनी ऊर्जा इधर-उधर बर्बाद कर रही है।

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