waqf board: सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और ‘पीआईएल मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से मशहूर अश्विनी उपाध्याय ने 31 अगस्त को कोलकाता में ‘राष्ट्रीय चेतना मंच’ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि देश के लोगों को धर्म और रिलिजन (मजहब) के बीच के अंतर का ज्ञान नहीं है। उन्होंने कहा कि “धर्म जोड़ता है जबकि रिलिजन (मजहब) तोड़ता है,” और जज और सरकारें भी कई बार इस मुद्दे पर भ्रमित हो जाती हैं।
संविधान में वक्फ का कहीं भी संवैधानिक जिक्र नहीं
अश्विनी उपाध्याय ने इस्लामी कट्टरपंथ पर सवाल उठाते हुए कहा कि हमें बचपन से यह पढ़ाया जाता है कि ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’, लेकिन सच्चाई यह है कि मजहब ही सिखाता है आपस में बैर रखना। उन्होंने कहा कि भारत में धर्म की स्वतंत्रता को धर्मांतरण की स्वतंत्रता के रूप में समझा लिया गया है, जो कि संविधान के खिलाफ है। उन्होंने जोर देकर कहा कि “संविधान में वक्फ का कहीं भी संवैधानिक जिक्र नहीं है,” लेकिन 1954 में जवाहरलाल नेहरू ने इसकी नींव रख दी और तब से इस प्रक्रिया ने जोर पकड़ लिया।
वक्फ के पास 10 लाख एकड़ जमीन
उन्होंने वक्फ बोर्ड पर तीखे हमले करते हुए कहा कि “1947 में वक्फ बोर्ड के पास 45 हजार एकड़ जमीन थी, जबकि आज उनके पास 10 लाख एकड़ जमीन है।” उन्होंने कहा कि “वक्फ बोर्ड को इतनी शक्ति दे दी गई है कि किसी भी जमीन पर अगर मुस्लिम आकर कहे कि यह उनकी वक्फ बोर्ड की संपत्ति है क्योंकि यहां मुगल साम्राज्य के किसी का घोड़ा घास खाता था, तो इसकी सुनवाई कोर्ट में नहीं बल्कि वक्फ ट्रिब्यूनल में होगी, जहां जज और जांचकर्ता उनके अपने ही होते हैं और वही फैसला करते हैं।”
वरिष्ठ कर (टैक्स) सलाहकार नारायण जैन ने अंग वस्त्र पहनकर अश्वनी उपाध्याय का स्वागत किया। कार्यक्रम में कई वरिष्ठ टैक्स कंसलटेंट सहित अन्य गण्यमान्य लोग उपस्थित रहे।
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बांग्लादेश से सबक लेने की जरुरत
उपाध्याय ने हिंदू समुदाय से अपील करते हुए कहा कि उन्हें “1947 से लेकर 1990 के कश्मीर और फिर 2024 के बांग्लादेश से सबक सीख लेना चाहिए।” उन्होंने चेतावनी दी कि “अगर हिंदू अब भी एकजुट और संगठित नहीं रहे, तो उनके बच्चे हिंदू नहीं रहेंगे।” अश्विनी उपाध्याय का भाषण एक तरह से समाज के लिए चेतावनी थी, जो सांप्रदायिकता और धर्मांतरण के मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए दिया गया था।