बीजेपी ने अब पश्चिम बंगाल पर पूरा ध्यान केंद्रित कर लिया है। इसी के अनुरूप वरिष्ठ क्रम के नेताओं का बंगाल पहुंचना शुरू हैं। डीनर डिप्लोमैसी जारी है तो उधर तृणमूल कांग्रेस में टूट का सिलसिला भी जारी है। तृणमूल से टूट कर नेताओं का बीजेपी में जुड़ना भी शुरू है। इससे यह चर्चा है कि दल-बदलुओं से कितना और किसका भाग्य बदलेगा?
पश्चिम बंगाल में दो प्रमुख दल आशा और असंतोष को भुनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। लोकसभा चुनावों में मिली सफलता ने बीजेपी को बंगाल में अपनी जड़ जमाने के लिए प्रेरित किया है। बीजेपी सत्ता की आशा लगाए बैठी है तो तृणमूल कांग्रेस असंतोष से निपटने के लिए एंड़ी चोटी का जोर लगा रही है। पार्टी में नंबर दो और ममता बनर्जी के भतीजे डायमंड हार्बर से सांसद अभिषेक बनर्जी के कारण भी नेता नाराज हैं। इसके अलावा टीएमसी की नैया पार लगानेवाले राजनीतिक रणनितिकार प्रशांत किशोर से भी नाराजगी कम नहीं है। इन घटनाओं से दो बड़ा परिवर्तन बंगाल की सियासत में देखने को मिल रहा है जिसमें एक तो वाम दल और कांग्रेस सिमट कर रह गई है तो दूसरा है कि तृणमूल कांग्रेस के एकछत्र राज्य को टक्कर मिल रहा है। इस परिवर्तन से जमीनीस्तर पर बड़ी ऊहापोह की स्थिति देखने को मिली। सियासत की गर्मी से जमीनीस्तर पर रक्तरंजित विरोध शुरू हो गए। बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ही कहा है कि उनके 130 कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमले हुए हैं। हमलों का अनुभव तो खुद जेपी नड्डा और बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय को भी डायमंड हार्बर के दौरे में हो चुका है। बीजेपी को बंगाल से बहुत आशा है। उसे लोकसभा में 18 सीटों की विजय से संजीवनी मिली है। जबकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने कुनबे को बीजेपी की हलचल से अप्रभावित रखने के लिए लगातार प्रयत्न कर रही हैं। लेकिन उनके किले में सेंध लग चुकी है।
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पलायन से पस्त
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेताओं के पलायन से परेशान है। ममता बनर्जी के खास और सरकार में मंत्री रहे शुवेंदु अधिकारी ने टीएमसी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। उनके साथ चार विधायकों ने भी पार्टी छोड़ दी है। इसके पहले टीएमसी के हैवीवेट नेता मुकुल रॉय पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम चुके हैं। उन्हें बीजेपी ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है। बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में ये झटके तणमूल के लिए परेशानी बन सकते हैं।
बंगाल में 2016 के विधान सभा चुनाव के बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में मत प्रतिशत तेजी से बदला है। 2016 में 10.16 प्रतिशत मत लेकर 3 तीन सीटों पर जीतनेवाली बीजेपी ने लोकसभा चुनावों में 40.3 प्रतिशत मत हासिल किया और वो 18 संसदीय सीटों पर जीती है। इसमें सबसे बड़ा नुकसान ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को झेलना पड़ा है। लोकसभा चुनाव परिणामों के अनुसार टीएमसी को 164 विधानसभा में बढ़त मिली थी तो बीजेपी 121 विधानसभाओं में लीड कर रही थी। जबकि 60 सीटों पर बीजेपी मात्र 4 हजार मतों से पीछे थी। इस आंकड़े के कारण ममता बनर्जी की नींद हराम हो गई और पार्टी एक्शन मोड में आ गई।
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डिनर डिप्लोमैसी कितनी कारगर
अमित शाह ने अपने नवंबर दौरे में एक मटुआ समुदाय के परिवार के घर पर भोजन किया था। टीएमसी की भगदड़ पर बीजेपी की जितनी नजर है उससे अधिक लक्ष्य मटुआ समुदाय के वोट बैंक पर भी है। पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जाति के अंतर्गत आनेवाला मटुआ समुदाय 23 प्रतिशत वोट बैंक शेयर करता है। कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, विष्णुपुर और बोनगांव के मटुआ बाहुल्य क्षेत्रों में बीजेपी 2019 का लोकसभा चुनाव जीत चुकी है। इस समुदाय से मधुर संबंध ममता बनर्ज के भी हैं। इस समाज की कुलदेवी बीमापाणि देवी के मंदिर का मुख्य संरक्षक ममता बनर्जी को बनाया गया था। जबकि इस समाज के वो लोग जो अब तक शरणार्थी के तौर पर रहते हैं उन्हें बीजेपी सीएए के अंतर्गत नागरिकता देने की कोशिश में है।
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