पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान तो अभी तक नहीं हुआ है, लेकिन सभी पार्टियां अपना पक्ष मजबूत करने में एड़ी-चोटी का जोर लगाने में जुटी हैं। इसके लिए वे साम, दंड, भेद, भाव जैसे राजनैतिक हथकंडे अपना रही हैं। इस वजह से टकराव बढ़ने के साथ ही राजनैतिक हिंसाएं भी बढ़ती नजर आ रही हैं। लोकसभा चुनाव में 2 से 18 पर पहुंची भारतीय जनता पार्टी के हौसले बुलंद दिख रहे हैं, तो वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस पार्टी भी दबंगई के साथ मुकाबला करने का दम भर रही है। इनके आलावा कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के साथ ही असदुद्दीन औवैसी की पार्टी आईएसएमआईएम का भी आगाज होने जा रहा है।
लगभग तीन दशक तक पश्चिम बंगाल में एकछत्र राज करनेवाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को इस बार के चुनाव में काफी उम्मीद दिख रह है। वह अपनी खोई जमीन प्राप्त करने के लिए मैदान में कमर कसकर उतरने का मन बना चुकी है।
त्रिकोणीय संघर्ष की संभावना
अगर वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल के राजनैतिक हालात का विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट है कि इस बार यहां ज्यादातर सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष होने की संभावना है। भारतीय जनता पार्टी और टीएमसी के साथ ही तीसरी ताकत कांग्रेस-वामपंथी पार्टियों के भी मजबूती से चुनाव मैदान में उतरने की संभावना है। कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों में गठबंधन होने से उनकी ताकत को कमतर आंकना किसी भी राजनैतिक दल के लिए जोखिमभरा हो सकता है।
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भाजपा की रणनीति
फिलहाल यहां भाजपा की रणनीति ममता बनर्जी की टीएमसी को मात देकर सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने की है। ममता बनर्जी भले ही बड़ी-बड़ी बातें कर रही हों, लेकिन सच्चाई यह है कि वे खतरे को भांप रही हैं। इसलिए उन्होंने कांग्रेस औक कम्यूनिस्ट पार्टियों को अपने साथ आने का ऑफर दिया था, लेकिन उन्हें अपनी इस रणनाति में सफलता नहीं मिली।
ओवैसी से दीदी की दूरी
औवैसी से ददी ने हाथ मिलाने से इनकार कर दिया है, क्योंकि ओवैसी के ज्यादातर मतदाता अब तक टीएमसी के ही मतदाता रहे हैं। इस वजह से उन्हें औवैसी से हाथ मिलाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। ममता बनर्जी को मुसलमानों के मतों पर भहुत भरोसा है, इसलिए हाल ही में पीएम के साथ मंच शेयर करने के दौरान जय श्री राम के नारे सुनकर वह नाराज हो गई थीं और मंच छोड़कर चली गई थीं।
भाजपा इस तरह बढ़ा रही है ताकत
इस बीच भारतीय जनता पार्टी अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटी है। उसे मालूम है कि मुसलमानों का एक प्रतिशत मत भी उसे प्राप्त नहीं होगा, इसलिए उसने अपना फोकस पूरी तरह सवर्णों के साथ ही अन्य हिंदू समाज के मतों पर कर रखा है।
मटुआ समुदाय को साथ लाने की कोशिश
अपनी रणनीति के तहत पार्टी के चाणक्य कहे जानेवाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में मटुआ समुदाय की रैली को संबोधित किया था। काफी पहले से ही उनकी नजर इस समाज के मतदाताओं पर है, इसलिए कुछ माह पहले उन्होंने समाज के एक किसान के घर खाना खाकर डीनर डिप्लोमेसी के सिद्धांत पर भी अमल किया था।
मटुआ समाज महत्वपूर्ण
बंगाल में 23 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति की है। इनमें मटुआ समुदाय सबसे प्रमुख है। अब तक समुदाय का समर्थन टीएमसी को मिलता रहा है, लेकिन इस चुनाव में परिस्थिति बदलती नजर आ रही है। भाजपा का कहना है कि वह सीएए के माध्यम से समुदाय के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान करना चाहती है। इस वजह से समुदाय भाजपा की ओर आकर्षित हो रहा है।
टीएमसी के कई नेता भाजपा में शामिल
अबतक ममता बनर्जी की पार्टी के कम से कम 100 मंत्री- नेता और कार्यकर्ता भारतीय जनता पार्टी में शामिल कर भाजपा ने दीदी की पार्टी की नींव को कमजोर करने का काम किया है। हाल ही में टीएमसी के राज्य सभा सांसद दिनेश त्रिवेदी ने सदन में ही अपना इस्तीफा देकर ममता बनर्जी को करारा झटका दिया है। समझा जा रहा है कि चुनाव से पहले वे भाजपा में शामिल हो जाएंगे।
कौन बनेगा बंगाल का बाजीगर?
कहना न होगा कि अभी तक के परिदृश्य को देखकर भाजपा का पलड़ा भारी लग रहा है। लेकिन अभी से कुछ भी मानकर चलना जल्दबाजी होगी।