पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तीसरी बार वापसी हो गई है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने यहां से उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तक ने न जाने की कितनी रैलियां और जन सभाएं कीं लेकिन वे टीएमसी को हरा नहीं पाए और पिछली बार से ज्यादा मजबूती के साथ ममता की तीसरी बार वापसी हो गई। नंदीग्राम मे भले ही दीदी को सुवेंदु अधिकारी ने मात देने में सफलता हासिल की, लेकिन यह हार उनकी पार्टी की जीत के आगे कुछ भी नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी के लिए भी निराश होने वाली कोई बात नहीं है। तीन से 78 सीटों पर पहुंच जाना उसके लिए संतोषजनक बात है।
भाजपा के दिग्गज नेता भी हार गए
इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान तो कांग्रेस और वाम मोर्चा को हुआ है। इनका तो यहां से लगभग सफाया ही हो गया है। ममता की ताकत का इसी से अंदाजा लगया जा सकता है कि केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, भाजपा सांसद लॉकेट चटर्जी, स्वपन दासगुप्ता जैसे भाजपा के नेता हार गए। इसके साथ सिंगुर जैसी महत्वपूर्ण सीट पर भी टीएमसी ने कब्जा कर लिया।
आखिर भाजपा की इतनी मेहनत और कोशिश उसे मनचाही सफलता क्यों नहीं दिला पाई? यहां हम इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
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बंगाली अस्मिता और बाहरी जैसे मुद्दे
ममता बनर्जी ने इस चुनाव में बाहरी बनाम स्थानीय मुद्दे को बहुत ही भावनात्मक तरीके से उठाया। उनके बंगाल की बेटी, बंगाली अस्मिता जैसे मुद्दों ने भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। ममता बनर्जी की इस जीत ने उन्हें केंद्रीय राजनीति में भाजपा के विपक्ष की सबसे बड़े नेता के रुप में स्थापित कर दिया है।
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दक्षिण के किले में सेंध लगाने में भाजपा असफल
भाजपा के लिए ममता के दक्षिण के किले में सेंध लगाना संभव नहीं हो सका। इस क्षेत्र में 109 सीटें हैं। वैसे, उत्तर कोलकाता व दक्षिण कोलकाता की सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों ने तृणमूल के उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर जरुर दी। लेकिन 11 में से 11 पर टीएमसी ने जीत हासिल कर अपने किले को बचाने में सफलता हासिल की।
टीएमसी की जीत के कारण
– ममता बनर्जी का चेहरा
-बंगाली अस्मिता, संस्कृति, खुद को बंगाल की बेटी बताना
-दुआरे सरकार, स्वास्थ्य साथी, कन्याश्री जैसी योजनाएं
-भाजपा को बाहरी पार्टी बताना
-मुस्लिम वोटबैंक की एकजुटता
-ममता का मंदिर जाना और चंडी पाठ करना
भाजपा की हार के कारण
-सीएम का चेहरा न होना
-उम्मीदवारों के चयन में गड़बड़ी
-स्थानीय नेता व कार्यकर्ताओं की नारजगी
-वोट ध्रुवीकरण की राजनीति सफल नहीं होना
-शीतलकूची फायरिंग में चार मुस्लिमों की मौत और उस पर भाजपा नेताओं की बयानबाजी
-अंतिम तीन चरणों में कोरोना संक्रमण बढ़ना
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