अफगानिस्तान के आठ पड़ोसी देशों का एक चौथा सम्मेलन ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में इस हफ्ते हुआ। इस सम्मेलन में कजाकिस्तान, किरगीजिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान ने तो भाग लिया ही, उनके साथ रूस, चीन, ईरान और भारत के प्रतिनिधि भी उसमें गए। यह सम्मेलन इन देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों का था। भारत से हमारे प्रतिनिधि अजित दोभाल थे। उनके साथ विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव जेपी सिंह भी थे लेकिन पिछली बार जब यह सम्मेलन भारत में हुआ था तो चीनी प्रतिनिधि इसमें सम्मिलित नहीं हुए थे। उन्होंने कोई बहाना बना दिया था। पाकिस्तान न तो उस सम्मेलन में आया था और न ही इस सम्मेलन में आया। क्यों नहीं आया? क्योंकि एक तो इसमें भारत की उपस्थिति ऐसी है, जैसे किसी ड्राइंग रूम में हाथी की होती है। भारत इन देशों में चीन के बाद सबसे बड़ा देश है। भारत आतंकवाद का शिकार हुआ है। पाकिस्तान के लिए वह सिरदर्द बन सकता है लेकिन इस बार चीन दुशांबे में तो आया लेकिन दिल्ली में नहीं आया। क्यों नहीं आया, क्योंकि वह दिल्ली आता तो पाकिस्तान नाराज हो सकता था।
पाकिस्तान और चीन की दोस्ती मामूली नहीं है। इस्पाती है। इसके बावजूद भारत और ताजिकिस्तान ने अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकवादियों की भर्त्सना की और काबुल में सर्वसमावेशी सरकार की मांग की। ताजिकिस्तान वही देश है, जहां काबुल से भागकर राष्ट्रपति अशरफ गनी पहुंच गए थे। अफगानिस्तान के फारसी भाषी ताजिक लोग उसका सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह है, जबकि तालिबान मुख्यतः गिलजई पठान हैं। ताजिकिस्तान में बैठकर ही अहमद शाह मसूद ने काबुल की रूस परस्त सत्ता को हिला रखा था। काबुल पर तालिबान का कब्जा होते ही मसूद के बेटे और भाई दुशांबे में बैठकर तथाकथित प्रवासी सरकार चला रहे हैं।
तालिबान इसलिए है बाहर
इस सम्मेलन से तालिबान इसलिए भी बाहर है कि एक तो उनकी सरकार को किसी ने भी मान्यता नहीं दी है और दूसरा वे ताजिक दखलंदाजी के खिलाफ हैं। चाहे जो हो, इस सम्म्मेलन में रूस और चीन की उपस्थिति बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि पुतिन का रूस अब ब्रेजनेव वाला रूस नहीं रहा और चीन को अपने शिनच्यांग में चल रहे उइगर मुसलमानों से बहुत परेशानी है। लाखों उइगर मुसलमानों को चीन ने यातना शिविरों में बंद कर रखा है। इस दृष्टि से भारत और चीन की चिंताएं लगभग एक जैसी हैं। जैसे हमारे कश्मीर और पंजाब में वैसे ही शिनच्यांग में आतंकवादी काफी सक्रिय हैं। पाकिस्तान को इस सम्मेलन में सबसे अधिक सक्रिय होना चाहिए, क्योंकि आतंकवाद सबसे ज्यादा उसी का नुकसान कर रहा है। इस सम्मेलन ने आतंकवाद विरोध और सर्वसमावेशी सरकार की जमकर मांग की लेकिन महंगाई, बेरोजगारी और अभाव से ग्रस्त जनता की मदद के लिए ये सभी राष्ट्र कोई बड़ी घोषणा करते तो बहुत अच्छा रहता।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)