क्या विपक्ष बंगाल पैटर्न पर लड़ेगा 2022 के विधानसभा चुनाव? जानने के लिए पढ़ें ये खबर

देश के दिग्गज नेता और राजनीति के चाणक्य शरद पवार 2022 के चुनाव को लेकर काफी सक्रिय दिख रहे हैं। हालांकि वे बोल कम रहे हैं लेकिन उनके एक्शन से उनकी रणनीति का खुलासा हो रहा है।

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देश में कोरोना की दूसरी लहर का कहर ठहरता हुआ दिख रहा है, लेकिन इसके नए वैरिएंट डेल्टा प्लस के बढ़ने के साथ ही तीसरी लहर के खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता। देश की मोदी सरकार के साथ ही राज्य सरकारें अपने-अपने हिसाब से अलर्ट मोड पर दिख रही हैं लेकिन लोग प्रतिबंधों में ढील मिलते ही लापरवाह हो रहे हैं। इस बीच 2022 में देश के पांच राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनाव को लेकर राजनैतिक पार्टियों में हलचल तेज होने लगी है। सभी पार्टियों में काबिल नेताओं की पूछ बढ़ गई है, जबकि निष्क्रिय और ठंडे नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने या किसी कोने में बैठाने का कार्यक्रम तेज हो गया है।

राजनीति के चाणक्य और योद्धा सब चुनाव क्षेत्र में उतरने की तैयारी में जुटे हुए हैं। इस बीच भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल और केरल के चुनावों से सबक लेते हुए चुनावी चक्रव्यूह रचने में जुट गई है, वहीं विपक्षी पार्टियों में भी हलचल बढ़ती नजर आ रही है।

पवार दिखाएंगे पावर
देश के दिग्गज नेता और राजनीति के चाणक्य शरद पवार इस चुनाव को लेकर काफी सक्रिय होते दिख रहे हैं। हालांकि वे बोल कम रहे हैं लेकिन उनके एक्शन से उनकी रणनीति का खुलासा हो रहा है। पवार 10 जून से अब तक विख्यात चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से तीन बार मिल चुके हैं। इसके साथ ही वे विपक्षी पार्टियों के कई नेताओं से भी दिल्ली स्थित अपने आवास पर संवाद कर उनके मन को टटोलने की कोशिश कर चुके हैं। हालांकि उन्होंने अभी तक ज्यादा कुछ बातें मीडिया से साझा नहीं की हैं, लेकिन समझा जा रहा है कि फिलहाल वे विभिन्न पार्टियों के रुख को समझने की कोशिश कर रहे हैं। भले ही इस बारे में उन्होंने खुलकर कुछ ज्यादा नहीं कहा हो, लेकिन हाल ही में उन्होंने एक प्रेस कॉनफ्रेंस में इस ओर इशारा जरुर किया था।

पवार का इशारा
उन्होंने कहा था कि फिलहाल वैकल्पिक ताकत को लेकर कोई रणनीति नहीं बनाई गई है, लेकिन अगर बनती है तो सभी विपक्षी पार्टियों को साथ लेकर चलना होगा। उन्होंने कांग्रेस को भी साथ लेकर चलने की बात कही। इसके साथ ही विपक्षी गठबंधन के चेहरा को लेकर कोई विवाद पैदा न हो, इसलिए उन्होंने इस बारे में सामूहिक नेतृत्व की बात कही।

इन राज्यों के चुनावों पर विपक्ष की नजर
सच पूछें तो पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पार्टी की बंपर जीत के कारण विपक्षी पार्टियों के हौसले बुलंद दिख रहे हैं। वे उस पैटर्न पर पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में  2022 में होने वाले चुनाव लड़ सकती हैं। हालांकि यह जितना कहने और सुनने में आसान लगता है, उतना है नहीं। लेकिन राजनीति को संभावनाओं का खेल कहा जाता है और शरद पवार जैसे दिग्गज राजनीति के खिलाड़ी से बेहतर इस खेल को कौन समझ सकता है। उनका प्रशांत किशोर से एक महीने के भीतर तीन बार मिलने का उद्देश्य भी यही है।

प्रशांत किशोर का जलवा
ये प्रशांत किशोर वही हैं, जिन्होंने हाल ही में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी को 213 सीटों पर जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। करीब 35 दिग्गज नेताओं के पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में जाने के बावजूद टीएमसी को इतनी बड़ी जीत दिलाने का सबसे ज्यादा श्रेय प्रशांत किशोर को ही जाता है। यहां तक कि उन्होंने यह भी भविष्यवाणी कर दी थी कि भाजपा 100 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल नहीं कर पाएगी। उनकी यह भविष्यवाणी भाजपा के तमाम दावों को गलत साबित करते हुए सही साबित हुई और वह मात्र 77 सीटों पर थम गई। ऐसे में समझा यही जा रहा है कि पवार प्रशांत किशोर की रणनीति पर विपक्ष को एकजुट कर उसे भाजपा के खिलाफ खड़ा कर सकते हैं। यही नहीं, 2022 के पांच राज्यों में अगर उनकी रणनीति काम कर जाती है तो वे 2024 के लोकसभा चुनाव में भी इसे आजमा सकते हैं।

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क्या है पश्चिम बंगाल पैटर्न चुनाव?
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने अपनी ताकत झोंकी थी, उससे देश के बड़े-बड़े राजनैतिक विशेषज्ञों को भी लगने लगा था कि इस बार ममता बनर्जी की पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ेगा। यही नहीं, भारतीय जनता पार्टी ने टीएमसी के कम से कम 35 बड़े नेताओं को भी तोड़ने में सफलता प्राप्त की थी। यहां तक की ममता बनर्जी के पास उनके भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी के आलावा चुनाव प्रचार के लिए कोई चेहरा तक नहीं  बचा था, लेकिन प्रशांत किशोर की रणनीति और ममता बनर्जी की मेहनत रंग लाई।

भाजपा से घबरा गए मुसलमान मतदाता
ममता बनर्जी ने जहां बंगाल के मुस्लिम मतादाओं को टीएमसी को मतदान करने पर मजबूर कर दिया, वहीं कांग्रेस तथा वामपंथी पार्टियों ने भी अपना चुनाव प्रचार कमजोर कर दिया। यहां तक कि पश्चिम बंगाल में पूरे चुनाव के दौरान सिर्फ एक बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी चुनाव प्रचार करने गए। कहा जा सकता है कि वामपंथियों पार्टियों और कांग्रेस ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए टीएमसी को समर्थन दे दिया।

टीएमसी को मिली बंपर जीत
परिणाम यह हुआ कि तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने 294 सीटों में से जहां 213 सीटों पर जीत हासिल की, वहीं भाजपा 77 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी। हालांकि उसके लिए 3 से 77 सीटों पर पहुंचना भी घाटे का सौदा नहीं था। इस स्थिति में नुकसान कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों को ही हुआ।

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भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
अब सवाल यह है कि क्या पश्चिम बंगाल पैटर्न को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में अपनाया जा सकेगा? जहां तक पंजाब की बात है तो वहां पहले से ही कांग्रेस की सरकार है और कैप्टन अमरिंदर सिंह वहां के मुख्यमंत्री हैं। पार्टी की अंदरुनी कलह के बावजूद कैप्टन अभी भी पंजाब में मजबूत स्थिति में हैं। ऐसे में वहां विपक्ष के लिए कोई ज्यादा स्कोप नहीं है। हालांकि इस बार भाजपा बिना किसी के साथ गठबंधन के अपने दम पर सभी 117 सीटों पर मैदान में उतरने का एलान किया है, लेकिन सीटें गिनी-चुनी ही मिलने की संभावना है। उसके लिए चार राज्यों में अपनी सरकार को फिर से स्थापित करना बड़ी चुनौती होगी। अगर इसमें कोई फेरबदल होता है तो विपक्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में उसे उखाड़ फेंकने के लिए एकजुट होकर मोर्चा खोल सकता है।

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