देश में नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। बिहार लगभग पूरी तरह से नक्सल आतंक से मुक्त हो चुका है और झारखंड में नक्सल बहुल क्षेत्र बूढ़ा पहाड़ नक्सलियों से मुक्त हो गया है।
केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के महानिदेशक (डीजी) कुलदीप सिंह ने बुधवार को यहां एक प्रेसवार्ता में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 से वामपंथी उग्रवाद के विरुद्ध एक विशेष रणनीति अपनाई जा रही है। केंद्रीय तथा राज्यों के सुरक्षा बलों तथा संबंधित एजेंसियों के समन्वित प्रयासों से चलाये गये अभियानों से वामपंथी उग्रवाद के विरुद्ध लड़ाई में अप्रत्याशित सफलता मिली है।
उन्होंने बताया कि सुरक्षा बल बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्य प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों में भी अनेक ऑपरेशन चलाते रहे हैं। कुल 578 माओवादियों को पकड़ा गया और उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया, जिसमें बिहार से 36, छत्तीसगढ़ से 414, झारखंड से 110 और महाराष्ट्र से 18 शामिल हैं।
डीजी सीआरपीएफ ने कहा कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय के इन अभियानों में तेजी लाने के प्रयासों के परिणामस्वरूप बिहार से सुरक्षा वैक्यूम को समाप्त करने में सफलता मिली है। झारखंड तथा ओडिशा में भी सुरक्षा वैक्यूम को समाप्त करने में बहुत हद तक सफल हुए हैं तथा इन राज्यों में वामपंथी उग्रवादियों के गढ़ों को ध्वस्त करते हुए सुरक्षा वैक्यूम को पूर्ण रूप से भर लिया जाएगा। इसी रणनीति को अपनाते हुए अन्य राज्यों में सुरक्षा वैक्यूम भरने की कार्य योजना है। हिंसा की घटनाओं और इसके भौगोलिक प्रसार दोनों में लगातार गिरावट आई है।
गृह मंत्रालय के अनुसार इस अभियान का अंतिम चरण में पहुंचना इस बात से साबित होता है कि 2018 के मुकाबले 2022 में वामपंथी उग्रवाद संबंधी हिंसा की घटनाओं में 39 प्रतिशत की कमी आई है, सुरक्षा बलों के बलिदानों की संख्या में 26 प्रतिशत की कमी आई है, नागरिक हताहतों की संख्या में 44 प्रतिशत की कमी आई है, हिंसा की रिपोर्ट करने वाले जिलों की संख्या में 24 प्रतिशत की कमी आई है और इन जिलों की संख्या 2022 में सिमट कर सिर्फ 39 रह गयी है।
मंत्रालय के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति के परिणामस्वरूप पहली बार छत्तीसगढ़ व झारखंड के बॉर्डर के बूढ़ा पहाड़ और बिहार के चक्रबंधा एवं भीमबांध के अति दुर्गम क्षेत्रों में प्रवेश करके माओवादियों को उनके गढ़ से सफलतापूर्वक निकालकर वहां सुरक्षाबलों के स्थायी कैंप स्थापित किये गए हैं। यह सभी क्षेत्र शीर्ष माओवादियों के गढ़ थे और इन स्थानों पर सुरक्षाबलों द्वारा भारी मात्रा में हथियार, गोला बारूद, विदेशी ग्रेनेड, एरोबम व आईडी बरामद किया गया।
वर्ष 2022 में वामपंथी उग्रवादियों के विरुद्ध लड़ाई में सुरक्षा बलों को ऑपरेशन ऑक्टोपस, ऑपरेशन डबल बुल, ऑपरेशन चक्रबंधा में अप्रत्याशित सफलता प्राप्त हुई है । छत्तीसगढ़ में 7 माओवादी मारे गए और 436 की गिरफ़्तारी व आत्मसमर्पण हुआ है। झारखंड में 4 माओवादी मारे गये और 120 की गिरफ्तारी व आत्मसमर्पण हुआ। बिहार में 36 माओवादिओं की गिरफ़्तारी व आत्मसमर्पण हुआ। इसी प्रकार मध्यप्रदेश में 3 माओवादियों को सुरक्षाबलों द्वारा मार गिराया गया है। यह सफलता इसलिए भी और महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि इनमें से मारे गए कई माओवादियों के सिर पर लाखों-करोड़ों के ईनाम थे जैसे मिथलेश महतो पर 1 करोड़ का इनाम था।
मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2014 से पहले की तुलना करें, तो वामपंथी उग्रवाद की हिंसा की घटनाओं में 77 प्रतिशत की कमी आई है। 2009 में हिंसा की घटनाएं 2258 के उच्चतम स्तर से घटकर वर्ष 2021 में 509 रह गईं हैं। हिंसा में होने वाली मृत्यु दर में भी 85 प्रतिशत की कमी आई है। वर्ष 2010 में ये 1005 के उच्चतम स्तर पर थी, जिससे वर्ष 2021 में मृतकों की संख्या घटकर 147 रह गई और इनके प्रभाव क्षेत्र में ख़ासी कमी आई है। इसके साथ ही माओवादियों के प्रभाव क्षेत्र में भी काफी कमी आई है और वर्ष 2010 में 96 जिलों से सिकुड़ कर 2022 में माओवादियों का प्रभाव केवल 39 जिलों तक सीमित रह गया।
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