भारत का पहला मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस यूएवी 2023 तक बनेगा, जिसका उपयोग भारतीय थल सेना, वायु सेना और नौसेना करेगी। इस मानव रहित विमान की परिकल्पना 2016 में की गई थी जिसके पूरा होने में सात साल लगेंगे। हिंदुस्थान एयरोनॉटिकल लिमिटेड (एचएएल) शुरुआत में 76 यूएवी बनाएगा। स्वदेशी ड्रोन निर्मित के बाद इस क्षेत्र में भारत की विदेशी अवलंबिता समाप्त हो जाएगी।
निर्माण प्रक्रिया
एचएएल के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक आर माधवन ने बताया कि तापस बीएच-201 ड्रोन का मूल्यांकन परीक्षण करने के लिए 6 एयरफ्रेम बनाने का काम जल्द शुरू होगा, जिसका उपयोग सशस्त्र बल मिशन के लिए करेंगे। उन्होंने बताया कि शुरुआत में 76 ड्रोन सशस्त्र बलों में शामिल किए जाएंगे, जिसमें सेना को 60, वायु सेना को 12 और नौसेना को 04 यूएवी मिलेंगे। तीनों सेनाएं इसका इस्तेमाल 24 घंटे के हवाई निगरानी मिशनों में करेंगी। यह भारत का पहला मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस यूएवी होगा जिसकी परिकल्पना 2016 में की गई थी। इस परियोजना के 2023 में पूरा होने की उम्मीद है।
एयरफ्रेम निर्माण में क्या होगा?
एचएएल के मुताबिक ड्रोन या मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) के एयरफ्रेम में इसके पंख, पूंछ और मुख्य शरीर शामिल हैं। यह हवाई निगरानी के लिए मध्यम ऊंचाई तक उड़ने वाला ड्रोन है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के तहत एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) ने यूएवी की अंतिम डिजाइन को लगभग पूरा कर लिया है, जिसे एचएएल को सौंप दिया जाएगा। यह एचएएल और डीआरडीओ की संयुक्त परियोजना है। तापस बीएच-201 ड्रोन 30 हजार फीट की ऊंचाई पर 16 घंटे से अधिक का समय आकाश में बिताकर अपनी उपयोगिता साबित कर चुका है।
ये भी पढ़ें – अधीर रंजन के बयान पर हंगामा, लोकसभा में ईरानी- सोनिया के बीच चले शब्दों के तीर
दिन रात करेगा चौकसी
डीआरडीओ के अधिकारियों का कहना है कि एयरफ्रेम का उपयोगकर्ता परीक्षण होने के बाद ड्रोन का उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा। एक बार एयरफ्रेम तैयार हो जाने के बाद इन सभी को यूएवी पर फिट किया जाएगा। तापस ड्रोन की 30 हजार फीट की ऊंचाई से मारक क्षमता 250 किमी है और यह दिन और रात के मिशन में सक्षम है। यह 350 किलोग्राम तक का पेलोड ले जा सकता है। इसे भारतीय सशस्त्र बलों के लिए खुफिया, निगरानी, टोही मिशन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह अपने मिशन के दौरान विस्तृत क्षेत्र में छोटे लक्ष्यों की पहचान करके उन्हें मार गिराने में सक्षम है। पिछले साल डीआरडीओ की लैब ने इस यूएवी के लिए ‘ट्राइसिकल नोज व्हील टाइप रिट्रैक्टेबल लैंडिंग गियर सिस्टम’ विकसित किया था।