यूक्रेन पढ़ने गए मेडिकल छात्रों के लिए वहां की स्थिति अब पहले से अलग है। उन्हें विश्वास नहीं होता कि उन्होंने इस देश को अपने करियर के लिए बेहतरीन डेस्टिनेशन के रूप में चुना था। अब वहां के लोगों का व्यवहार बदला हुआ है। एक तरफ भारत सरकार जहां उनको बदतर व्यवस्था से निकालने में जुटी हुई है, वहीं यूक्रेनियन नागरिकों और सेना का व्यवहार उन सबके लिए अप्रत्याशित है। वहां मची अफरातफरी के बीच भारतीय छात्रों को ट्रेन में घुसने तक नहीं दिया जा रहा है और अपमानित करते हुए उनका सामान तक छीन लिया जा रहा है।
रायबरेली के कुछ छात्रों ने वहां की अपनी आपबीती सुनाई और सरकार को धन्यवाद दिया कि वे सब उनके प्रयास से यूक्रेन से सुरक्षित स्वदेश आ गए हैं।
यूक्रेन में अब सब बदल गया है
रायबरेली के सलोन के तीन मेडिकल छात्र यूक्रेन छोड़कर दूसरे देशों के शरण कैंप में रुके हुए थे और उन्हें भारत लाया गया है। बोगो मेलेट्स मेडिकल कॉलेज फर्स्ट ईयर की छात्रा श्रुति रस्तोगी को वहां का माहौल 15 दिन में ही भा गया था, यूक्रेनियन का व्यवहार उन सबके लिए बहुत अच्छा था, लेकिन अब सब बदल गया है। उन्होंने बताया कि वे अन्य छात्रों के साथ कीव शहर को छोड़कर 11 घंटे की ट्रेन से खड़े होकर लंबी यात्रा करने के बाद स्लोवाकिया बॉर्डर पर पहुंच गईं। जहां से इनके साथ कई भारतीय बच्चों का समूह बस द्वारा स्लोवाकिया देश के शरण कैंप में जाकर रुका हुआ था।
3 मार्च को हुई स्वदेश वापसी
3 मार्च को वे भारत पहुंच गई हैं। श्रुति ने बताया कि कीव शहर छोड़ने के बाद ट्रेन में वहां की यूक्रेनी नागरिक भारतीयों को घुसने तक नहीं दे रहे थे। वे धक्का देकर बाहर निकाल रहे थे। उनका बैग और खाने-पीने का सामान सब फेंक दिया गया। ये लोग कैसे भी जान बचाकर भूखे प्यासे 11 घंटे ट्रेन में खड़े होकर यूक्रेन के औजार्ड शहर पहुंचे थे। ट्रेन में धक्का-मुक्की में कई बच्चों को चोटें भी आईं। श्रुति के भी पैर में चोटें आई हैं। ओजार्ड से बस द्वारा ये लोग स्लोवाकिया देश पहुंचे।
प्रधानमंत्री की सराहना की
श्रुति ने बताया कि 13-13 बच्चों के ग्रुप बनाए गए थे, जो बच्चे पहले से ग्रुप में थे, उनको पहले भेजा जा रहा था। उसके बाद में बाकी लोगों का नंबर आएगा। हालांकि श्रुति भारत सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों के खुश हैं और इन हालात में वापसी पर उन्हें धन्यवाद दिया।
अंशदीप ने भी बताया अपना अनुभव
वहीं कस्बे के रहने वाले अंशदीप को भी यूक्रेनियन का पहले ऐसा व्यवहार कभी देखने को नहीं मिला था। वे इस समय लवीव से बस द्वारा हंगरी देश के शरण कैंप में पहुंच गए हैं। अंशदीप के पिता गुरचरन सिंह उर्फ राजू सरदार ने बताया कि अंशदीप ने मैसेज कर बताया था और बस की फोटो भी भेजे थे कि हम बस द्वारा हंगरी जा रहे हैं, जहां शरण कैंप में रहेंगे। वहां से जब भारत के लिए फ्लाइट आएगी तब हम भारत आएंगे।