भारत को मिला हाइपरसोनिक पावर, तिरछी की आंख तो दिखा देंगे औकात

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मुंबई। देश तकनीकी क्षेत्र में एक बड़े चरण को प्राप्त कर लिया। इसमें सोमवार को डीआरडीओ ने हारपरसोनिक कार का सफलता पूर्ण परिक्षण किया। इस तकनीकी क्षमता का लाभ देश को मिसाइल तकनीकी में मिलेगा जिसमें दुश्मन ने भारत की तरफ आंख भी तिरछी की तो पलक झंपकते साफ हो जाएगा।
आत्मनिर्भर भारत सफलता का एक नया झंडा फहरा रहा है। हाइपरसोनिक कार न देश को विश्व के मानचित्र में चौथा ऐसा देश बना दिया है जिसके पास यह तकनीकी है। इसे वैज्ञानिकीय भाषा में ‘हाइपरसोनिक टेस्ट डिमॉन्स्ट्रेशन व्हीकल’ (एचएसटीडीवी) कहा जाता है। स्वदेशी वैज्ञिनिकों द्वारा विकसित स्क्रैमजेट इंजन की सहायता से कार उड़ान के दौरान ध्वनि की गति से 6 गुना अधिक गति प्राप्त कर लेती है।
दुश्मन रहे मस्ती में और आग गई बस्ती में…
यह तकनीकी पलक झंपकते ही दुश्मन के क्षेत्र को राख के ढेर में बदल देती है। यानी दुश्मन अपने ऊपर आनेवाले संभावित खतरे से निडर होकर मस्ती में जब होता है तो ये हथियार उसके इलाकों को राख कर देती है। इस कार की विशेषता यह है कि इसकी तिव्र गति होने के कारण दुश्मन देश के वायु रक्षा प्रणाली को इसकी भनक तक नहीं लगती और उसका काम तमाम हो जाता है। आम मिसाइलें बैलेस्टिक ट्रेजरी पर काम करती हैं, जिसका मतलब है कि उनके रास्ते को आसानी से ट्रैक किया जा सकता है। इससे दुश्मन को तैयारी और जवाबी हमला का मौका मिलता है जबकि हाइपरसोनिक हथियार प्रणाली का कोई पूर्व निश्चित मार्ग नहीं होता और इसके कारण दुश्मन को अंदाजा भी नहीं लग पाता कि उस पर बज्रपात कहां से होनेवाला है।
एक सेकंड में दो किमी की गति
रक्षा मंत्रालय के अनुसार परीक्षण के दौरान एचएसटीडीवी ने आवाज से छह गुना ज्यादा तेज गति यानी दो किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से दूरी तय की और 20 सेकेंड तक हवा में रहा। इसकी सहायता से लंबी दूरी तक मार करनेवाले मिसाइल सिस्टम विकसित किये जा सकते हैं। इस तकनीकी की सहायता से कम लागत में अंतरिक्ष में उपग्रह भी लांच किया जा सकता है साथ ही इस तकनीकी पर आधारित मिसाइल से दुनिया के किसी भी कोने में दुश्मन के ठिकानों को घंटे भर के भीतर ही निशाना बनाया जा सकता है।

डर के रहना रे बाबा… हाइपरसोनिक तकनीकी शौर्य का संकेत
डीआरडीओ ने किया विकसित
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने एचएसटीडीवी का विकास किया है, जो हाइपरसोनिक प्रणोदक तकनीक पर आधारित है। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि डीआरडीओ ने सोमवार को सुबह 11:03 बजे पर ओडिशा के बालासोर तट के पास व्हीलर द्वीप पर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम लांच कांप्लेक्स से इसका सफलतापूर्वक परीक्षण किया। डीआरडीओ के चेयरमैन डॉ.जी. सतीश रेड्डी ने इसे महत्वपूर्ण तकनीक सफलता करार दिया है। उन्होंने कहा कि भारत उन चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो गया है, जिन्होंने इस तकनीक का सफल परीक्षण किया है।
आत्मनिर्भर भारत की दिशा में महत्वपूर्ण कदम : रक्षामंत्री
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इसे ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए इसके सफल परीक्षण पर डीआरडीओ को बंधाई दी है। उन्होंने ट्वीट किया, “मैं डीआरडीओ को पीएम के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को साकार करने वाली इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर बधाई देता हूं। मैंने इस प्रोजेक्ट से जुड़े विज्ञानियों से बात की और उन्हें इस महान उपलब्धि पर बधाई दी। भारत को उन पर गर्व है।”

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