भारतीय सेना के जवान भयंकर मानसिक दबाव में हैं। इसके कारण प्रति वर्ष आत्महत्याओं के मामले बढ़ रहे हैं और देश दुश्मन से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होनेवाले जवानों की अपेक्षा अधिक जवान खो रहा है। यह रिपोर्ट सैन्य मामलों की थिंक टैंक युनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (यूएसआई) की रिपोर्ट में सामने आई है।
जवानों की आत्महत्याओं के संदर्भ में यूएसआई ने पिछले माह एक रिपोर्ट वेबसाइट पर अपलोड की थी। जिसके अनुसार जवानों की आत्महत्याओं के पीछे परिचालन और गैर परिचालन संबंधी कारण हैं। भारतीय सेना के जवानों का आतंकवाद विरोधी (काउंटर टेरोरिज्म) और जवाबी कार्रवाईयों (काउंटर इंसर्जेंसी) के दौरान तनाव का स्तर बढ़ता जा रहा है। यूएसआई की ये रिपोर्ट सीनियर रिसर्च फेलो कर्नल एके मोर द्वारा किए गए शोध के अनुसार, 2019-20 में सामने आई है। इस अध्ययन के अनुसार वर्तमान में आधे से अधिक भारतीय सेना के जवान गंभीर तनाव में हैं।
https://usiofindia.org/publication/usi-journal/stress-management-in-the-armed-forces-2/
जवानों के तनाव को खत्म करने के लिए सेना कई उपाय कर रही है लेकिन इसके बावजूद दिक्कतें हैं। सैनिकों की यूनिट के तनाव में रहने के कारण अनुशासनहीनता, ट्रेनिंग में असंतुष्टि, अपर्याप्त साजो सामानों की मरम्मत और मनोबल में गिरावट सेना के युद्ध की तैयारियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।
ये भी पढ़ें – एक हो गई जल-थल और नभ की शक्ति!
इस अध्ययन के अनुसार संस्थागत तनावों के मुख्य कारणों में अधिकारियों में नेतृत्व क्षमता की कमी, अधिक कार्य का दबाव, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाना, प्रमोशन आदि के मामलों में देरी और छुट्टियां न मिलना मुख्य कारण है। इसके अलावा मनोरंजन के साधनों में कमी, मोबाइल के उपयोग में प्रतिबंध, गरिमा की कमी भी इसमें और बढ़ोतरी कर रहे हैं।
ये भी पढ़ें – इनके भी दर्द को सुनो सरकार!
प्रतिवर्ष लगभग 100 सैनिक इसके कारण जान से हाथ धो रहे हैं। यानी हर तीसरे दिन एक सैनिक की जान जा रही है। यह क्षति परिचालन में होनेवाली क्षति से अधिक है। इसके अलावा बड़ी संख्या में सैनिक रक्तचाप, हृदयरोग, मनोविकृति और न्यूरोसिस से पीड़ित हैं। जिसका नुकसान सेना को उठाना पड़ रहा है।
Join Our WhatsApp Community